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समर्पण की भावना बनाइए, समर्पण से शब्द भी अपने लगते हैंः आचार्य सुन्दर सागर जी महाराज

  • समर्पण कीजिए, बदले में क्या मिलेगा, यह मत सोचिए

न्यूज़ सौजन्य- कुणाल जैन

प्रतापगढ़। आचार्य सुन्दर सागर जी महाराज ने धर्मप्रेमी श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा है कि यदि कोई भारत का निवासी है तो देश उसका है। सम्पत्ति में उसने अपना अधिकार मांगा है तो दायित्व भी उसका ही है। समर्पण की भावना बनाइए, समर्पण से शब्द भी अपने लगते हैं। आप भारतीय हैं तो ये धरती आपकी मां है। मां एक जन्म देने वाली, दूसरी धरती मां। इंडिया शब्द हमारा नहीं है, यह ब्रिटिश इंडिया की देन है। हमारी संस्कृति तो भारत है और मातृभाषा हिन्दी है। हिन्दी आपकी अपनी भाषा है। यदि आप भारतीय हैं और यहां की सम्पत्ति में अपना हक जताते हैं तो इसकी भाषा भी अपनाइए। हिन्दी, भारत शब्द दिल को सुकून देता है।
आचार्य सुन्दर सागर जी महाराज ने आगे कहा कि तीर्थंकर आदिनाथ के पुत्र भरत के नाम से भारत देश पड़ा। भारत की धरा पर राम ने जन्म लिया। भगवान आदिनाथ ने रहना सिखाया। कृषि कैसे करते हैं, यह बताया। पहले पेड़-पौधे इतने थे। फल-फूल थे, कि ऑक्सीजन की कमी नहीं थी। आज ऑक्सीजन की कमी है। सिलेंडर का जमाना आ गया है। सामने वाला क्या सोचता है, यह भी आप ही सोचोगे तो फिर सामने वाला क्या सोचेगा। आप समर्पण कीजिए, बदले में क्या मिलेगा, यह मत सोचिए। पहले दूध की नदियां बहती थीं, आज दूध टंकियों में आ गया। स्वदेशी अपनाने का नारा लगाना काफी नहीं, नारा लगाने से पहले देखो कि क्या आपने स्वदेशी को अपनाया है।
आचार्य सुन्दर सागर जी महाराज ने यह भी कहा कि खाना विदेशी, कपड़ा विदेशी, रहन-सहन विदेशी तो फिर कहते हो-मेरा भारत महान। क्या सिर्फ बोलने से भारत महान सकता है क्या? इंडिया नहीं, भारत बोलो, शाकाहार अपनाओ, स्वदेशी अपनाओ, देश में विकास लाओ।

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प्रकाश श्रीवास्तव

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