विद्वान पंडित रतनलाल शास्त्री जब आत्मानंद सागर जी बने तब वे संल्लेखनारत थे। उनकी समाधि से दिगंबर जैन समाज ने उनके चरणों में श्रद्धांजलि दी है। उनकी विद्वत्ता की कीर्ति पताका यूं ही फहराती रहेगी। इंदौर से हरिहरसिंह चौहान की यह खबर…
इंदौर। दिगंबर जैन समाज के सहज-सरल व्यक्तित्व के धनी, मिलनसार पंडित रतनलाल शास्त्री जी वात्सल्य और स्नेह के साथ खूब आशीष सभी समाजजनों को दिया करते थे। वह ऐसे ज्ञानी सरस्वती पुत्र थे। जिन्होंने बहुत से मुनि महाराज, आर्यिका, दीदियों को शिक्षा दी, जो वर्तमान देश में जिनशासन का गौरव बड़ा रहे हैं। तभी वर्तमान आचार्य श्री समय सागर जी के दिशा-निर्देश पर उन्हें श्री आत्मानंदसागर जी का नाम दिया गया था। उनका (पूर्वनाम पंडित रतनलाल जी शास्त्री) का 2 अप्रैल की रात में सल्लेखना पूर्वक समाधि मरण हुआ।
शताधिक आचार्यों एवं साधु भगवंतों के गुरु रहे, ‘जीवंत जिनवाणी’ कहे जाने वाले पंडित रतनलाल जी के पुण्य प्रताप का ही परिणाम है कि उनकी समाधि के लिए अनेकों साधु भगवंतों का उपदेश और सानिध्य सतत् उन्हें मिलता रहा। 2 अप्रैल की शाम 6 बजे ही मुनिश्री आदित्य सागर जी ससंघ ने पंडित जी को संबोधन प्रदान किया था और इस ही रात में उत्कृष्ट भावों के साथ उनका समाधि मरण हुआ। संपूर्ण दिगंबर जैन समाज, इंदौर के सभी वरिष्ठ समाजजनों ने संत आत्मानंदसागर महाराज के समता पूर्ण समाधि पर उनके चरणों में श्रद्धांजलि दी है।
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