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जैन समाज में शोक की लहर : आचार्य विद्यासागर महाराज का समतापूर्वक समाधिमरण


 जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज का समतापूर्वक समाधिमरण हो गया है। शनिवर रात 2.35 बजे आचार्य विद्यासागर महाराज अंतिम सांस ली। आचार्य श्री पिछले कई दिनों से बीमार थे और लगभग 6 महीने से वे डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में ही रुके हुए थे। पूज्य गुरुदेव ने विधिवत संल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण करली थी। पढ़िए यह रिपोर्ट…


डोंगरगढ़। जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज का समतापूर्वक समाधिमरण हो गया है। शनिवर रात 2.35 बजे आचार्य विद्यासागर महाराज अंतिम सांस ली। आचार्य श्री पिछले कई दिनों से बीमार थे और लगभग 6 महीने से वे डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में ही रुके हुए थे। पूज्य गुरुदेव ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण करली थी। पूर्ण जागृतावस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए 3 दिन के उपवास गृहण करते हुए आहार एवं संघ का प्रत्याख्यान कर दिया था एवं प्रत्याख्यान व प्रायश्चित देना बंद कर दिया था और अखंड मौन धारण कर लिया था। गुरुवारश्री जी का डोला चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ में दोपहर 1 बजे निकाला जाएगा एवं चन्द्रगिरि तीर्थ पर ही पंचतत्व में विलीन किया जावेगा। संल्लेखना के अंतिम समय श्रावकश्रेष्ठी अशोक पाटनी आर के मार्बल, किशनगढ, राजा भाई सूरत, प्रभात जी मुम्बई, अतुल शाह पुणे, विनोद बडजात्या रायपुर, किशोर जी डोंगरगढ भी उपस्थित रहे।

बता दें कि छत्तीसगढ़ दौरे के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने भी डोंगरगढ़ पहुंचकर जैन मुनि विद्यासागर महाराज के दर्शन किए थे।

धरती के जीवित भगवान थे

आप बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धारी थे। आपकी मातृभाषा कन्नड़ थी।। आपने कक्षा नवमी तक मराठी माध्यम से अध्ययन किया। इसके उपरांत आपका लौकिक पढ़ाई से मन उचट गया और आप अलौकिक आत्म तत्व की खोज में लग गये। चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी के प्रवचन सुनकर 9 वर्ष की बाल उम्र में आपके हृदय पर वैराग्य का बीज अंकुरित हो गया। 12 वर्ष की उम्र में आचार्य श्री देशभूषण जी के सान्निध्य में आपका मूंजी बंधन संस्कार हुआ। अपनी मित्र मंडली के साथ खेल-खेलते समय आपको मुनि श्री महाबल जी के दर्शन हुए। आपकी तीक्ष्ण प्रज्ञा से प्रभावित होकर उन्होंने आपको बाल्यावस्था में ही तत्वार्थ सूत्र और सहस्रनाम कण्ठस्थ करने की प्रेरणा दी। आपके पिता ने भी आपको घर में धार्मिक शिक्षण प्रदान किया।

युवा अवस्था में ब्रह्मचारी

20 वर्ष की अवस्था में जुलाई 1966 में आपने सदा-सदा के लिए सदलगा त्याग दिया और राजस्थान प्रांत अंतर्गत जयपुर पहुंचकर आचार्य श्री देशमुख जी से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर लिया। 1967 में श्रवणबेलगोला में श्री बाहुबली भगवान के महामस्ताकाभिषेक के समय आप आचार्य संघ के साथ पदयात्रा करते हुए वहां पहुंचे और वहीं आपने आचार्य श्री देशभूषण जी से सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये। आपकी ज्ञान पिपासा ने आपको मुनि श्री ज्ञानसागर जी के पास पहुंचा दिया। आपको सुपात्र जानकर श्री ज्ञानसागर जी ने यह कहकर आपकी परीक्षा ली-विद्याधर जब नाम है तो विद्याधरों की तरह विद्या लेकर उड़ जाओगे, फिर मैं श्रम क्यों करूं ? गुरू के यह वचन सुनकर आपने आजीवन वाहन का त्याग करके अपनी गुरुभक्ति एवं समर्पण का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया।

गुरु ने बनाया गुरु

आषाढ़ शुक्ल पंचमी 30 जून 1968 को अजमेर की पुण्यभूमि पर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने आपको दिगम्बरी दीक्षा प्रदान की। आपकी उत्तम पात्रता एवं प्रखर प्रतिभा से प्रभावित होकर आपके गुरु ने आपको अपना गुरु बनाया। 22 नवम्बर, 1972 को नसीराबाद की पुण्यधारा पर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने अपना आचार्य पद आपको सौंपकर आपका शिष्यत्व स्वीकार कर, आपके चरणों में अपनी संल्लेखना की भावना व्यक्त की।

परिवार ने किया अनुसरण

आपके दीक्षित होते ही आपके माता-पिता एवं भाई-बहिनों ने भी आपके मार्ग का अनुसरण किया। यह इस सदी की प्रथम घटना है। जहां एक ही परिवार के आठ सदस्यों में सात सदस्य, सात तत्वों का चिंतन करते हुए मोक्ष मार्ग पर आरूढ़ हो गए। मां श्रीमंती ने आर्यिका व्रत ग्रहण कर आर्यिका श्री समयमति नाम पाया, तो पिता श्री मल्लप्पा जी ने मुनिव्रत अंगीकार कर 108 मुनि श्री मल्लिसागर नाम पाया। दोनों अनुज भ्राता मुनि श्री समयसागर जी एवं मुनि श्री योगसागर जी के नाम से वर्तमान में आचार्य संघ की शोभा बढ़ा रहे हैं। दोनों बहनें शांता एवं सुवर्णा आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत से अलंकृत होकर धर्म साधना में रत हैं।

विराट है संघ

आपके पवित्र कर कमलों से अभी तक 130 मुनि दीक्षा, 172 आर्यिका दीक्षा, 56 ऐलक दीक्षा, 64 क्षुल्लक दीक्षा एवं 3 क्षुल्लिका दीक्षा सम्पन्न हो चुकी है। वर्तमान में विराट संघ है। आपकी निर्दोष चर्या से प्रभावित होकर 1000 से अधिक युवा-युवतियां आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण करने वाले ये सभी भाई-बहिन उच्च शिक्षित एवं समृद्ध परिवार से हैं। तीर्थंकर प्रकृति के बंध के कारणभूत लोक कल्याण की भावना से अनुप्राणित होकर आपने अपने लोकोपकारी कार्यों हेतु अपनी प्रेरणा व आशीर्वाद प्रदान किया।जैसे जीवदया के क्षेत्र में सम्पूर्ण भारत वर्ष में संचालित गौ शालाएं, चिकित्सा क्षेत्र में भाग्योदल चिकित्सा सागर, शिक्षा क्षेत्र में-प्रतिभा स्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ जबलपुर (म.प्र.) डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) एवं रामटेक (महाराष्ट्र), शांतिधारा दुग्ध योजना बीना बारहा, पूरी मैत्री, हथकरघा आदि लोक कल्याणकारी संस्थाएं आपके आशीर्वाद का ही सुफल हैं।

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