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द्वितीय तीर्थंकर भगवान अजितनाथ का मोक्ष कल्याण: तिथि के अनुसार इस बार 2 अप्रैल को मनाया जाएगा 


भगवान अजितनाथ जैन धर्म के दूसरे तीर्थंकर हैं और भगवान अजितनाथ जी का मोक्ष कल्याणक चैत्र शुक्ल पंचमी को है। यह तिथि इस बार 2 अप्रैल को आ रही है। इस दिन नगर सहित देश के विभिन्न जिनालयों में शांति धारा और अभिषेक के कार्यक्रम होंगे। निर्वाण लाडू चढ़ाए जाएंगे। श्रीफल जैन न्यूज की ओर से यह स्पेशल रिपोर्ट उपसंपादक प्रीतम लखवाल के संयोजन से।


इंदौर। भगवान अजितनाथ जैन धर्म के दूसरे तीर्थंकर हैं। इनक मोक्ष कल्याणक चैत्र शुक्ल पंचमी के दिन हुआ था। उन्होंने बाह्य और अभ्यंतर के सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली थी। जब उनके अंतिम क्षण निकट आ रहे थे तब भगवान अजितनाथ सम्मेद शिखर पर चले गए। एक हजार अन्य तपस्वियों के साथ उन्होंने अपना अंतिम ध्यान किया। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ। जब चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में था। प्रातःकाल के समय प्रतिमा योग धारण करने वाले भगवान अजितनाथ ने मुक्ति पद प्राप्त किया। भगवान अजितनाथ का जन्म माघ शुक्ल 10 को अयोध्या के इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय राज परिवार में हुआ था।

अयोध्या नगरी के सेहतुक वन में भगवान का तप कल्याणक हुआ। भगवान के मंदिरों में अभिषेक और शांतिधारा सहित महामस्तकाभिषेक के धार्मिक आयोजन पूरी भक्ति भावना से किए जाते हैं। जैन धर्म ग्रंथों में वर्णित संदर्भों के अनुसार भगवान अजितनाथ ने जैन धर्म को आगे बढ़ाते हुए अपने संदेशों और उपदेशों के माध्यम से देशनाएं दी। ज्ञात स्रोतों के अनुसार भगवान अजितनाथ के पिता जितशत्रु थे और माता विजया देवी थीं। इनका चिन्ह हाथी है।

भगवान अजितनाथ की आयु 72 लाख पूर्व की वर्णित है। जेठ महीने की अमावस पर जब रोहिणी नक्षत्र का कला मात्र से अवशिष्ट चंद्रमा के साथ संयोग था। तब ब्रह्म मुहूर्त के पहले महारानी विजयसेना ने चौदह स्वप्न देखे थे। महारानी विजया ने देखा कि हमारे मुख कमल में एक मदोन्मत्त हाथी प्रवेश कर रहा है।

सुबह महारानी ने जित शत्रु महाराज से स्वप्नों का फल पूछा उन्होंने उनका फल बतलाया कि तुम्हारे स्फटिक समान निर्मल गर्भ में विजय विमान से तीर्थंकर पुत्र अवतीर्ण हुआ है। वह पुत्र, निर्मल तथा पूर्वभव से साथ आने वाले मति-श्रुत-अवधिज्ञान रूपी तीन नेत्रों से देदीप्यमान है। भगवान् आदिनाथ के मोक्ष चले जाने के बाद जब 50 लाख करोड़ सागर वर्ष बीत चुके तब द्वितीय तीर्थंकर का जन्म हुआ था।

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