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भाव पूर्वक की गई प्रभु भक्ति से दु:ख तनाव दूर होता है: आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने संयम, तप और साधना का दिया संदेश


आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के सानिध्य में धरियावद के श्री चंद्रप्रभु जिनालय में प्रतिदिन धार्मिक अनुष्ठान पंचामृत अभिषेक पूजन किए जा रहे हैं। यहां वे धर्मसभा में देशना भी दे रहे हैं। प्रातः कालीन सभा में आचार्य श्री ने उपदेश भी दिए। पढ़िए धरियावद से यह खबर…


 धरियावद। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी 52 साधु सहित धरियावद श्री चंद्रप्रभु जिनालय में विराजित हैं। आचार्य श्री के सानिध्य में प्रतिदिन धार्मिक अनुष्ठान पंचामृत अभिषेक पूजन किए जा रहे हैं। प्रातः कालीन सभा में आचार्य श्री ने उपदेश में बताया कि जैन धर्म अनादिनिधन धर्म है। संसार में रहने वाला प्राणी धन ऐश्वर्य चाहता है। इसके लिए पुरुषार्थ कर धन अर्जित करता है। भौतिक अर्जित संपदा से दान देकर पुण्य कमाना चाहिए। चक्रवर्ती जो कि 6 खंडों के अधिपति होते हैं। महान पुरुष शलाका पुरुषों ने भी ऐश्वर्य,धन, दौलत, परिवार राज्य को छोड़कर संन्यास दीक्षा धारण की। आचार्य, साधु, परमेष्ठी पीड़ा, कष्ट, रोग दूर करने का उपाय बताते हैं। रत्नत्रय धर्म रूपी औषधि से कुष्ठ रोग सहित, पीड़ा, तनाव कष्ट दूर होते हैं। यह धर्म देशना पंचम पता आदेश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने धर्म सभा में प्रकट की। ब्रह्मचारी वीणा दीदी, गजुभैया, राजेश पंचोलिया के अनुसार आचार्य श्री ने उपदेश में आगे कह कि रोग,पीड़ा होने पर बुद्धि और धैर्य के साथ भाव सहित किए धर्म कार्यों से रोग संकट दूर होते हैं।

मनुष्य जीवन सार्थक करने का पुरुषार्थ करें

पंडित विशाल के अनुसार आचार्य श्री सहित 52 साधुओं के सानिध्य में 7 से 14 मार्च तक सिद्धचक्र महामंडल विधान चयनित सौभाग्यशाली परिवारों द्वारा सिद्ध भगवान का पूजन उनके गुणों की आराधना की जाएगी। आचार्य श्री ने उपदेश में आत्महत्या करने, गर्भपात कराने का परिणाम बताया कि इससे अगले जीवन में आयु कम प्राप्त होती है। इसलिए धैर्य और बुद्धि पूर्वक धर्म का आश्रय लेकर दुर्लभ मानव पर्याय जैन कुल में समय का सदुपयोग कर दीक्षा, संयम, तप से मनुष्य जीवन सार्थक करने का पुरुषार्थ करना चाहिए।

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