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श्री सुभूषणमति माताजी ने स्व अनुभूत ज्ञान का बताया सार: साधु-संतों के सानिध्य से जीवन पर प्रभाव को रेखांकित किया

अशोक कुमार जेतावत-  श्री सुभूषणमति माताजी ने तीर्थंकर जैसी महान आत्माओं ने भी श्रमणाचार का पालन किया है। ऐसा ही हमारे गुरु माँ जैसे श्रमण हमें आत्मानुभूति का उपदेश देकर उपकार करते हैं। आप भी जितने उत्साह के साथ धन कमाते हैं । उतने ही उत्साह से श्रावक धर्म का पालन करो।

क्रिया, द्रव्य के साथ भाव का समर्पण भी करो। जो कुल परंपरा से चला आ रहा है, उसे कहते हैं कुलाचार और जब उस कुलाचार के साथ अहो भाव भर जाता है अर्थात अहोभाव के साथ जब कुलाचार का पालन किया जाता है तो वह कहलाता है।

श्रावकाचार- ध्यान रखना ! चार प्रकार के दान में से आहार दान में ही पंचाश्चर्य होते हैं और पूर्वाचार्यों ने दान और पूजा को ही श्रावक का मुख्य लक्षण कहा है । कुलाचार तो हम सब कर लेते हैं परन्तु, श्रावकाचार पालन करने के लिए आतुर रहते हैं।

याद रखना शक्कर कहीं भी खाओ, कैसे भी खाओ तो भी शक्कर मीठी ही होती है और साधु भक्ति चाहे मन से करो या तन से वह तो पुण्य बंध का ही कारण है। परंतु जब मन, वचन, काय तीनों योगों से साधु भक्ति करते हैं तो वह अतिशय पुण्य बंध का कारण बनती है।

कुल से चली आ रही परम्पराओं को समय की तराजू पर तौल कर सम्यक आचरण करना श्रमणाचार्य है।

आज की परम आवश्यकता, देव- शास्त्र- गुरु की रक्षा के लिए अपने तीर्थों की रक्षा करो इसकी रक्षा के लिए मन, वचन, काय तीनों लगा दो।।

संकेतों के पैने तीर, घाव करे गंभीर
अपने धर्म और धर्मायतनो के प्रति जागरुकता का यह शंखनाद आमुलचूल परिवर्तन का कारण बनेगा और कालान्तर में सम्यकत्व की उपलब्धि के साथ मोक्ष मार्ग का निरुपण करेगें ।
जोश और होश से ओत प्रोत भक्तों ने गुरु मां के जयकारे से गगन गुंजायमान किया और अपनी कृतज्ञता अर्पित की।

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