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बीसा हूमड़ भवन से हुआ विहार : धर्म जागृति चेतना से होता है तभी पुण्य का बंध होगा -आचार्य श्री वर्धमान सागर जी


आचार्य वर्धमान सागर ने बीसा हूमड़ भवन से विहार करते हुए कहा कि देव पूजा, जिन दर्शन, जिन अभिषेक दान श्रावकों का मुख्य धर्म है। आप प्रतिदिन भगवान के दर्शन अभिषेक पूजन करते हैं। अभिषेक आप अति उत्साह पूर्वक करते हैं। एक साथ अनेक व्यक्ति एक ही प्रतिमा पर अभिषेक करते हैं। पढ़िए राजेश पंचोलिया की रिपोर्ट…


 

उदयपुर। देव पूजा, जिन दर्शन, जिन अभिषेक दान श्रावकों का मुख्य धर्म है। आप प्रतिदिन भगवान के दर्शन अभिषेक पूजन करते हैं। अभिषेक आप अति उत्साह पूर्वक करते हैं। एक साथ अनेक व्यक्ति एक ही प्रतिमा पर अभिषेक करते हैं। कलश प्रतिमा से टकराने से भगवान की अविनय होती है। इस कारण भगवान के गुण कम होते हैं, आप यह भूल जाते हैं कि आप तीन लोक के अधिपति जिनेंद्र भगवान का अरिहंत भगवान का अभिषेक कर रहे हैं। यह मंगल देशना आचार्य शिरोमणी श्री वर्धमान सागर जी ने बीसा हूमड़ भवन में नगर से विहार के पूर्व प्रगट की। उन्होंने कहा कि अरिहंत भगवान देवों के देव, परम देव, देवाधि देव हैं। अरिहंत भगवान की 1008 से सौधर्म इंद्र, गणधर स्तुति करते हैं। जिनसेनाचार्य ने भी सहस्त्रनाम से भगवान का स्तवन किया है। अरिहंत देव अनंत चतुष्टय गुणों के धारी हैं, जिनमें अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख और अनंत वीर्य विद्यमान है। आपको भगवान की भक्ति मन, वचन, काय कृत, कारित, अनुमोदना 9 कोटि करना चाहिए। भक्ति से मंगल होता है, इससे पुण्य की प्राप्ति होती है। गृहस्थ अवस्था के पापों का प्रक्षालन होता है। आजकल मंदिरों, तीर्थ क्षेत्रों पर ऑनलाइन शांतिधारा प्रमाद का उदाहरण हैं। प्रमाद से धर्म नहीं होता, धर्म जागृति से होता है, तभी पुण्य का बंध होता है।

मर्यादित हो व्यवहार

आचार्य श्री ने कहा कि लगभग 8 माह के उदयपुर प्रवास में आपने पंच कल्याणक महोत्सव, पर्युषण पर्व सहित प्रतिदिन संघ के साधुओं से प्राप्त उपदेशों को ग्रहण कर जीवन में अपनाने का प्रयास करें, तभी जीवन मंगल मय होगा। प्राचीन समय में धर्म सभा में पुरुष-महिलाए खुले सिर नहीं आते थे। बड़ी पगड़ी तथा छोटे टोपी पहनते थे। आज यह विचारणीय स्थिति है कि महिलाएं देव, शास्त्र, गुरुओं के समक्ष खुले सिर रहती हैं। वेशभूषा भी कई बार मर्यादित नहीं होती। सकल दिगंबर जैन समाज के शांति लाल वेलावत, पारस चितौड़ा, सुरेश पद्मावत ने बताया कि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी सहित 32 साधुओं का दोपहर को विहार उदयपुर के अशोक नगर जिनालय हुआ, जहां पर रात्रि विश्राम कर अगले 8 किलोमीटर विहार कर कानपुर में आहार चर्या होगी। आचार्य श्री का विहार अणिंदा पार्श्वनाथ होते हुए साबला के लिए चल रहा है।

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