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दोहों का रहस्य -47 आत्मचिंतन, साधना और भक्ति ईश्वर की प्राप्ति के लिए जरूरी : बाहर से सहायता मांगने की बजाय अपने भीतर की शक्ति को पहचानें


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की 47वीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


जो तिल माही तेल है, जो चकमक में आग।

तेरा साई तुझमें, बस जाग सके तो जाग।


कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से आत्मबोध का संदेश देते हैं। जिस प्रकार तिल में तेल और चकमक पत्थर में अग्नि पहले से ही विद्यमान होती है, उसी प्रकार परमात्मा हमारे भीतर ही विद्यमान हैं। लेकिन जब तक हम जागरूक नहीं होते, तब तक हम इस सत्य को पहचान नहीं पाते। यह दोहा हमें आत्मज्ञान और आत्मदर्शन की ओर प्रेरित करता है।

जैसे तिल को पेरने पर ही तेल निकलता है और चकमक पत्थर को रगड़ने पर ही आग प्रकट होती है, वैसे ही जब तक मनुष्य आत्मचिंतन, साधना और भक्ति नहीं करता, तब तक वह ईश्वर और आत्मज्ञान की अनुभूति नहीं कर सकता। यह दोहा हमें यह प्रेरणा देता है कि केवल ज्ञान की बातें करने से कुछ नहीं होगा, बल्कि उसे अनुभव करना और उसके लिए प्रयास करना आवश्यक है।

मनुष्य के भीतर अज्ञानता रूपी अंधकार छाया रहता है, जिसके कारण वह अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचान पाता। यह दोहा हमें बताता है कि जैसे ही हम अपने भीतर के अज्ञान को दूर करते हैं, वैसे ही हमारे भीतर छिपी आध्यात्मिक शक्ति और ज्ञान प्रकट हो जाता है।

इस दोहे का एक महत्वपूर्ण व्यावहारिक संदेश यह भी है कि मनुष्य के भीतर असीमित क्षमता होती है। यदि वह अपनी शक्तियों को पहचान ले और उनका सही उपयोग करे, तो वह किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। हमें बाहर से सहायता मांगने की बजाय अपने भीतर की शक्ति को पहचानकर जागरूक होना चाहिए।

कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से हमें आत्मबोध, आत्मनिर्भरता, ईश्वर की निकटता और आध्यात्मिक जागरूकता का संदेश देते हैं। जब तक हम अपने भीतर की शक्ति को नहीं पहचानते और उसे जाग्रत नहीं करते, तब तक हम अपने सच्चे स्वरूप और ईश्वर के अस्तित्व को नहीं समझ सकते। यह दोहा हमें आत्मचिंतन, साधना, जागरूकता और आत्मज्ञान की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

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