न्यूज़ सौजन्य-राजकुमार अजमेरा
सम्मेदशिखर । तीर्थराज सम्मेद शिखर की अतिशयकारी, सिद्ध भूमि, अनन्तानंत आत्माओं की मोक्षस्थली अनादि निधन है,, जहां श्रद्धा, भक्ति, आस्था की अद्भुत त्रिवेणी सतत् प्रवाह मान है। तीर्थराज सम्मेद शिखर की एक वन्दना, जीवन के समस्त पापों के पहाड़ को पुण्य, पुरुषार्थ, भाग्य, सौभाग्य में तब्दील कर देते हैं।
अन्तर्मना उवाच
अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महामुनिराज ने अपनी मौन वाणी से सम्मेदशिखर जी आने वाले भक्तों को संदेश देते हुए कहा कि
इस सदी की सबसे ताकतवर तीन चीजें पुण्य, पुरुषार्थ और भाग्य है जो जीवन के हर सुख, सौभाग्य, प्रेम प्रसन्नता के कारण बन जाते हैं।
तीर्थराज की एक वन्दना करने से 33 कोटी, 234 करोड़, 74 लाख उपवास का फल मिलता है। जिस सिद्ध भूमि की वन्दना करने से नरक पशु गति में जाने से बच जाते हैं।
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जिस सिद्ध भूमि से 20 तीर्थंकरों के 86 अरब, 488 कोडाकोडी, 140 कोड़ी, 1027 करोड़, 38 लाख, 70 हजार 323 मुनियों ने कर्मों का नाश करके मोक्ष प्राप्त किया है। इसी पावन सिद्ध भूमि से आज पारसनाथ भगवान ने निर्वाण सुख को पाया।
– तीर्थराज की वन्दना धन से नहीं – धर्म के प्रभाव से, पुण्य से नहीं – सातिशय पुण्य से और अनन्त जन्मों के शुभ फल से प्राप्त होती है। यह सिद्ध भूमि जीव मात्र के लौकिक-पारलौकिक, सर्व मनोरथों को पूर्ण करने में निमित्त बनती है।
सभी यात्रियों से आत्मीय निवेदन –
1. मन्दिर के गर्भगृह में पुरुष – धोती दुपट्टा में और माता बहने – साड़ी में ही प्रवेश करें। अन्यथा दर्शन वन्दन गर्भगृह के बाहर से ही करें।
2. गर्भगृह में द्रव्य सामग्री ना चढ़ाएं, ना ही कपूर जलाएं।