जैन धर्म के 19वें तीर्थंकर भगवान श्री मल्लिनाथ जी का गर्भ कल्याणक 30 मार्च रविवार को पारंपरिक धार्मिक श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा। भगवान का गर्भ कल्याणक कैलेंडर तिथि के अनुसार चैत्र शुक्ल एकम को आ रहा है। इस दिन भगवान के अभिषेक, शांतिधारा, विधान, पूजन, आरती आदि के कार्यक्रम जिनालयों में किए जाएंगे। श्रीफल जैन न्यूज की विशेष श्रृंखला में आज उपसंपादक प्रीतम लखवाल की यह संयोजित प्रस्तुति पढ़िए…
इंदौर। जैन धर्म के 19वें तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ जी ने अपनी माता रक्षिता देवी के गर्भ में चैत्र शुक्ल एकम के दिन अपराजित विमान से प्रवेश किया। भगवान का गर्भ कल्याणक तिथि अनुसार इस बार 30 मार्च रविवार को आ रहा है। इस दिन देशभर के जिनालयों, चैत्यालयों समेत दिगंबर जैन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। यह तो सभी को ज्ञात है कि जिन धर्म भारत का प्राचीन धर्म और संप्रदाय है। जैन धर्म के उन्नीसवें तीर्थंकर भगवान श्री मल्लिनाथ जी ने चैत्र शुक्ल एकम के दिन अपनी माता के गर्भ में प्रवेश किया। भगवान का जन्म मिथिलापुरी के इक्ष्वाकुवंश में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी को अश्विन नक्षत्र में हुआ था। इनकी माता रक्षिता देवी और पिता राजा कुंभराज थे। इनके शरीर का वर्ण नीला था जबकि, इनका चिन्ह कलश था। इनके यक्ष का नाम कुबेर और यक्षिणी का नाम धरणप्रिया देवी था। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार भगवान श्री मल्लिनाथ जी स्वामी के गणधरों की संख्या 28 थी। जिनमें अभीक्षक स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
भगवान को केवल ज्ञान की प्राप्ति
19 वें तीर्थंकर भगवान श्री मल्लिनाथ जी ने मिथिलापुरी में मार्गशीर्ष माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को दीक्षा की प्राप्ति की थी और दीक्षा प्राप्ति के 2 दिन बाद खीर से इन्होनें प्रथम पारण किया था। दीक्षा प्राप्ति के बाद एक दिन-रात तक कठोर तप करने के बाद भगवान श्री मल्लिनाथ जी को मिथिलापुरी में ही अशोक वृक्ष के नीचे कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
भगवान श्री मल्लिनाथजी का निर्वाण
भगवान श्री मल्लिनाथ जी ने हमेशा सत्य और अहिंसा का अनुसरण किया और अनुयायियों को भी इसी राह पर चलने का संदेश दिया। फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को 500 साधुओं के संग इन्होंने सम्मेद शिखर पर निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया था।
भगवान मल्लिनाथ का इतिहास
भगवान का चिन्हः- उनका चिन्ह कलश है
जन्म स्थानः- मिथिलानगरी
जन्म कल्याणकः- मगसिर शुक्ल 11
केवल ज्ञान स्थानः- पौष कृष्ण 2, श्वेतवन
दीक्षा स्थानः- श्वेतवन
पिताः-महाराजा कुंभराज
माताः-महारानी प्रजावती
देहवर्णः- तप्त स्वर्ण सदृश
मोक्षः- फाल्गुन शुक्ल 5, सम्मेद शिखर पर्वत
भगवान का वर्णः- क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
लंबाई और ऊंचाई- 40 धनुष
आयुः- पचपन हजार (55000)वर्ष
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