समाचार

धर्मसभा में दिए प्रवचन : जिसके पास जो है, उसको अनमोल कर दो- निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज


धर्मसभा में मुनि श्री सुधासागर महाराज ने कहा कि देखने में आता है कि कभी व्यक्ति बहुत ऊंचाई पर बैठा दिखता है तो कभी वो धूल में पड़ा हुआ दिखता है, कभी अमीर दिखता है तो गरीब। वह संसार में जो चाहता है उसे सबकुछ दुर्लभ दिखता है। हर व्यक्ति को संसार में जीना सरल नहीं लगता, बच्चा गर्भ में बड़ी दुर्लभता से आता है, आ जाए तो 9 महीने व्यतीत करना दुर्लभ होता है, जन्म ले ले तो बचपना निकालना दुर्लभ होता है, जबान हो जाये तो दुर्लभता आती है, पूरी जिंदगी जीने के लिए दुर्लभता का अनुभव होता है। पढ़िए राजीव सिंघई मोनू की रिपोर्ट…


सागर। धर्मसभा में मुनि श्री सुधासागर महाराज ने कहा कि देखने में आता है कि कभी व्यक्ति बहुत ऊंचाई पर बैठा दिखता है तो कभी वो धूल में पड़ा हुआ दिखता है, कभी अमीर दिखता है तो गरीब। वह संसार में जो चाहता है उसे सबकुछ दुर्लभ दिखता है। हर व्यक्ति को संसार में जीना सरल नहीं लगता, बच्चा गर्भ में बड़ी दुर्लभता से आता है, आ जाए तो 9 महीने व्यतीत करना दुर्लभ होता है, जन्म ले ले तो बचपना निकालना दुर्लभ होता है, जबान हो जाये तो दुर्लभता आती है, पूरी जिंदगी जीने के लिए दुर्लभता का अनुभव होता है। हर समय एक ही चीज लगी रहती है कि किस समय यह व्यक्ति मर जाएगा और ये सब छूट जाएगा।

दुर्लभ है अच्छा परिवार, सुखी काया, धन दौलत पाना, ये संसार मे जीने के लिए बहुत दुर्लभताये है, परमार्थ की दुर्लभताये नही है। दो घटनाये क्यों घटती है कि एक तो सुख के बाद दुख क्यों आता है और संसार की हर वस्तु सुलभ क्यों नही है। ऐसे लोग हैं दुनिया में उनकी जिंदगी बहुत सुलभ है, उनको मरण का भय नही होता, वो मरते नही। जो कभी बीमार नही होते, जो कभी बूढ़े नही होते, अकाल में नही मरते, जो अमीर होने के बाद गरीब नही होते, एक भव की अपेक्षा से। दूसरे जीवन मे यह सब मिलेंगे कोई नियम नही, जिसे हम देव पर्याय या भोगभूमियां जीव कहते है।

कर्म का उदय समझो

वही चीज जो कल सुलभ थी, वो आज दुर्लभ हो जाती। सुलभता के बाद दुर्लभता आना ये कौन से कर्म का उदय है। कभी धूप तो कभी छांव। जब जब धर्म हमेशा सुलभ हुआ, हमने उसकी उपेक्षा की। जो चीज हमें प्राप्त हुई, हमारी दृष्टि में उसका मूल्य कम हो गया। देव, नारकी, तिर्यंच, मनुष्य तरस रहे है देव पर्याय को। इतना तरसतें हैं कि सौधर्मेंद्र कहता है कि हम स्वर्ग की सारी संपदा को छोड़ देंगे, बस मुझे मनुष्य पर्याय दे दो। जब तुम मुनि को आहार देते हो तो सारे देवता अंदर ही अंदर जलते हैं, रोते है, उनको अति वेदना होती है, मैंने ऐसा कौन सा कर्म बांध लिया कि मेरे पास सबकुछ है लेकिन मैं मुनिराज की अंजलि में एक ग्रास नही दे सकता। वे अविरतसम्यकदृष्टि मनुष्य और यहाँ तक तिर्यंचों को भी नमस्कार करते है। तिर्यंच बनना श्रेयस्कर है कम से कम पंचमगुणस्थान को तो प्राप्त हो जाता है। देवताओं के पास तो संयम की गंध नही, दान नही दे सकते।

मनुष्य पर्याय अनमोल

बारह व्रत यदि तुम स्वीकार करते हो तो इन 12 व्रतों के लिए सौधर्मेंद्र नमस्कार करता है, तिर्यंचों की देवताओं ने जय जयकार की, मनुष्य में भी चांडाल कुल में जन्मा है, उसकी भी देवता जयजयकार कर रहे है। एक छोटा सा व्रत लिया, चतुर्दशी को मात्र हिंसा नही करेंगे, यानी देवता चांडाल को नमस्कार करने के लिए तैयार हैं क्योंकि उनके लिए अहिंसाव्रत दुर्लभ है। सारे सम्यकदृष्टि देवता तुम्हारी पर्याय को अनमोल समझ रहे है लेकिन प्राप्त होने के बाद क्या कीमत है तुम्हारी इस मनुष्य पर्याय की। जब तक आपको प्राप्त नहीं हुई थी तब तक आप नरकों में भी तड़पे थे, बस मुझे एक बार मनुष्य पर्याय दे दो, मैं कुछ गड़बड़ नहीं करूंगा, सौ सौ बार सौगंधे खाई हैं। मनुष्य पर्याय में जन्म लेते ही तुम्हें अनुभूति होना चाहिए मेरी मनुष्य पर्याय अनमोल है, तीन लोक में इसका मूल्यांकन नही है। आप इसका मूल्य कीजिए अपनी खुद की दृष्टि में, फिर देखो इस मनुष्य पर्याय का एक एक क्षण कैसे निकलता है। 24 घंटे दूसरे को आशीर्वाद दो या न दो, अपनी पीठ जरुर ठोकते रहना प्रतिमाधारी को, बस आनंद उछले मेरे पास अनमोल निधि है जो तीन लोक की सम्पदा से भी ज्यादा अनमोल है, फिर आपके व्रत में दोष नही लगेगा, अनादर नही होगा। अनादर वही करता है जो अपनी वस्तु को निर्मूल्य कर देता है।

हर दिन पूजा नई लगे

जितनी भी सम्यक्दृष्टि देवियां हैं, वे तरसती हैं स्त्री पर्याय को कि स्त्री पर्याय ही मिलना थी तो काश मैं मनुष्यनि बनती, आज मैं भी प्रतिमाधारी हो जाती, मैं भी आर्यिका बन जाती। क्या रखा है इंद्राणी पद में, एक दिन तो बहुत है, एक क्षण का भी आर्यिका पद अनमोल है। मुनि को भी अपनी दृष्टि में आ जाये कि मेरा पद अनमोल है, मेरा एक एक मूलगुण अनमोल है। जिसके पास जो है, उसकों अनमोल कर दो। मेरी मनुष्य पर्याय अनमोल है, आपसे कोई पाप नही हो सकेगा, आप अपना समय बर्बाद नही करोगे। जब वस्तु सुलभता से मिले, उस समय तुम्हारे लिए अनर्घ्य की प्राप्ति हो जाये, जाओ तुम्हें जन्म जन्म तक ये चीज मिलती रहेगी। सुबह तो भगवान के दर्शन किये, अब शाम को दर्शन करूं, नहीं, हजारों बार दर्शन करने के बाद भी ये भाव आ जाये ऐसा लग रहा है जैसे मैं पहली बार दर्शन कर रहा हूँ, हजारों मूर्तियों के दर्शन मैने किए है, जिनके दर्शन करने के बाद ऐसा लगता है कि पहली बार दर्शन कर रहा हूं। मैंने हजारों बार भक्तामर पाठ पढ़ लिया लेकिन पढ़ते समय ऐसा लगता है कि जैसे पहली बार पढ़ रहा हूँ। इसी तरह दान देते समय यह भाव आवे कि आज तक मैंने ऐसा दान दिया ही नहीं। जब तुम कमाने में तृप्त नही होते हो तो दान में भी तृप्त नहीं होना चाहिए। भोजन करते समय हरदम रोटी नई लगती है तो जब कर्म में ऐसा चमत्कार है तो धर्म के कारण भी एक भूख ऐसी जगाओ कि तुम्हें हर दिन की पूजा नई लगे।

आप को यह कंटेंट कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
+1
0
+1
0
+1
0

About the author

Shreephal Jain News

Add Comment

Click here to post a comment

You cannot copy content of this page

× श्रीफल ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें