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यम सल्लेखना : श्री मेरु भूषण जी महाराज की उत्कृष्ट साधना समाधि सम्मेद शिखर जी में 


पूज्य मुनिराज मेरु भूषण जी ने अन्न-जल का हमेशा के लिए त्याग कर दिया है। इसे ही यम संल्लेखना कहते हैं। पढ़िये निर्मल डोशी की विशेष रिपोर्ट … 


सम्मेद शिखर। परम पूज्य क्षपक मुनि श्री मेरु भूषण जी महाराज की उत्कृष्ट साधना समाधि सम्मेद शिखर जी में चल रही है, जिसमें परम पूज्य मुनिराज मेरु भूषण जी ने अन्न-जल का हमेशा के लिए त्याग कर दिया है। इसे ही यम संल्लेखना कहते हैं। जो व्यक्ति यम संल्लेखना करता है, वह व्यक्ति दो या तीन भाव में मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। यदि दो या तीन भाव में मोक्ष नहीं जाता है तो अधिक से अधिक सात या आठ भव में मोक्ष चला जाता है।

परम पूज्य मुनिराज मेरु भूषण जी ने अपने जीवन में तप त्याग संयम की आराधना करते हुए दिगंबर जैन मुनि पद को प्राप्त किया। आचार्य पद से सुशोभित हुए इन्होंने अपने जीवन काल में संयम की आराधना करते हुए अपने जीवन को संयमित किया। जैन धर्म में संल्लेखना जीवन का अंतिम लक्ष्य होता है, जो परम आवश्यक होता है। साधु पद का महत्व संयम से और संल्लेखना से ही होता है। संल्लेखना में मन को इंद्रियों को कषाय को कृष करना संल्लेखना कहलाती है।

यह संल्लेखना पांच प्रकार की होती है और 17 तरह से होती है, जिसमें उत्कृष्ट संल्लेखना पांच प्रकार की मानी गई है। परम पूज्य आचार्य भूषण जी महाराज 12 वर्ष की संल्लेखना पहले से ले ली और उसमें अब जीवन के अंतिम पड़ाव की ओर यम संल्लेखना पूर्वक सभी प्रकार का रस, पानी, अन्न आदि का त्याग करके 3 दिन से सभी कुछ त्याग कर दिया है। वह आत्म ध्यान में लीन हैं, आत्म चिंतन में लीन हैं, आत्मा को निकट देख रहे हैं, जीते जागते संयम को पालन कर रहे हैं, अपने आपको मरण करते हुए देख रहे हैं, यह जैन धर्म में ही होता है। संल्लेखना बड़े पुण्य के उदय से कोई कोई व्यक्ति कर पाता है। मेरु भूषण जी महाराज जागृत अवस्था में संल्लेखना धारण करने वाले वर्तमान के प्रथम मुनिराज हैं, जिन्होंने सम्मेद शिखर की पावन धरा पर अनंतानंत परमेष्ठी जहां से मोक्ष को पधारे, उसी पावन स्थली को चुना है।

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