जैन समुदाय की भागीदारी वाला प्राधिकरण होना ज़रूरी – मनोज कुमार, पर्यटन सचिव, झारखंड
सारांश
श्रीफल जैन न्यूज़ लगातार जैन समाज की चिंताओं को लेकर खबरें और विचार प्रकाशित करता आया है । सम्मेद शिखर जी को लेकर चल रही चर्चाओं में कितनी सत्यता है, कितनी भ्रामक है । इसकी पड़ताल भी हम कर रहे हैं ताकि समाज के बीच सही जानकारी जाए । इसी कड़ी में हमने बात की झारखंड के पर्यटन सचिव मनोज कुमार से एक्सक्लूसिव बात की । टेलीफोनिक साक्षात्कार का वीडियो देखिए और पढ़िए , क्या कहा वरिष्ठ आईएएस एवं झारखंड के पर्यटन सचिव मनोज कुमार ने…
श्रीफल जैन न्यूज़ संवाददाता – जैन समाज उद्वेलित है । ऐसी जरूरत क्यों पड़ी कि आप इसे पर्यटक स्थल बना रहे हैं ?
मनोज कुमार (पर्यटन सचिव,झारखंड सरकार) देखिए, जैन समाज के प्रतिनिधियों के साथ मुख्यमंत्री के सचिव की 26 दिसंबर को बात होने वाली है । इसमें मुख्यमंत्री के सचिव के साथ जैन प्रतिनिधियों की बात होगी । इस बैठक में, मैं भी मौजूद रहूंगा । जितनी भी इसमें शंकाएं है, उन्हें दूर करेंगे । अगर पर्यटन शब्द से आपत्ति है, तो उसे भी हटा लेंगे । लेकिन इस प्रक्रिया के पीछे सरकार की मंशा क्या है, वो भी बताएंगे ।
श्रीफल जैन न्यूज़ संवाददाता – इसमें कुछ छिपाने जैसा तो है नहीं । जो बात आप 26 दिसंबर की बैठक में करने वाले हैं । श्रीफल जैन न्यूज़ से क्यों नहीं शेयर कर सकते । क्या पक्ष है आपका ये बताइए ।
मनोज कुमार (पर्यटन सचिव,झारखंड सरकार) – आपसे अनुरोध है कि इसे हमारे पक्ष से समझने की कोशिश कीजिए । जैन समाज और सरकार की मंशा एक ही है सिर्फ परसेप्शन अलग दिख रहे हैं । सभी मानते हैं कि ये आम पर्यटक स्थल नहीं है । नॉर्मल पर्यटक स्थल और पारसनाथ में बहुत फर्क है । आज से नहीं बल्कि सैंकड़ों सालों से ये एक पवित्र स्थल रहा है । इसे आस-पास के लोग भी अच्छे से जानते हैं ।
आम पर्यटकों के आने के मामले ने तूल संभवत: इसीलिए पकड़ा क्योंकि एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें लोग डांस कर रहे हैं । जैन समाज और स्थानीय लोग मानते हैं कि ये जनरल ट्रेंड नहीं है वहां । किसी ने कुछ अवांछनीय कर दिया तो कौन रोकेगा । इसी मकसद से हमारा प्रयास था कि इस पावन क्षेत्र में एडमिस्ट्रेटिव ऑर्थोरिटी को बढ़ाना ताकि इस पावन स्थल की पवित्रता और श्रद्धालूओं की आस्थाओं को कोई चोट न पहुंचे ।
इसीलिए वहां एक प्राधिकरण बनाना जरूरी है । चूंकि प्राधिकरण बनना है तो वो ट्यूरिस्ट डवलपमेंट एक्ट के तहत बनाया जाता है । ट्यूरिस्ट डवलपमेंट एक्ट के तहत तब काम होता है जब ट्यूरिस्ट स्पॉट बनेगा । वहां प्राधिकरण स्लीपिंग मोड में है । इसे एक्टिव किया जाना है । प्राधिकरण में प्रशासन के साथ नॉन ऑफिशियल्स भी होंगे, स्वाभाविक रूप से जैन समुदाय के लोग इस प्राधिकरण में शामिल होंगे कुछ स्थानीय लोग होंगे ।
जब यह प्राधिकरण बन जाएगा तो अधिकारिक रूप से यहां आने-जाने से संबंध में नियम बनेंगे और उन नियमों की पालना करने के लिए एक एऩफोर्स ऑर्थोरिटी के रूप में प्रशासन रहेगा । इसको इस रूप मे समझिए कि अगर प्राधिकरण के सदस्य, जिसमें सभी पक्ष शामिल हैं। अगर सम्मेद शिखर की व्यवस्थाओं में कुछ परिवर्तन करना तय करते हैं । तो फिर ये प्रशासन इसे लागू करने की जिम्मेदारी उठाएगा ।
जैसे वहां शराब व मीट की दुकानें न खुल पाएं, चैकिंग, पोस्ट बनाना, रजिस्ट्रेशन, अगर प्राधिकरण बताए तो उस स्थान पर छोटी-मोटी बैठने की व्यवस्था करना । 14 किलोमीटर का रास्ता है । अगर प्राधिकरण चाहे तो कई सुविधाएं विकसित करना । अवांछनीय तत्वों और हरकतों पर नियंत्रण जैसे कई काम प्रशासन के जरिए ही होंगे । अगर कोई ऑर्थोरिटी नहीं होगी तो हम कैसे और किसे रोक पाएंगे ?
श्रीफल जैन न्यूज़ संवाददाता – फिर सरकार समय रहते अपनी बात क्यों नहीं समझा पाई ? क्या समस्या आई ?
मनोज कुमार (पर्यटन सचिव,झारखंड सरकार) – मुझे लगता है कि नोटिफिकेशन में पर्यटक स्थल शब्द को लेकर कुछ कन्फ्यूज़न पैदा हुआ है । अगर जैन समाज चाहेगा तो इसे हम जैन धार्मिक पर्यटक स्थल कर देंगे । उसमें कोई विषय नहीं है । जैन समाज की भावनाओं के अनुरुप परिवर्तन संभव है । ऐसा कभी न था और न आगे होगा कि रिसोर्ट बन जाएंगे या अन्य गतिविधियां होंगी ।
वो तो इसीलिए भी संभव नहीं है क्योंकि वो पूरा वन क्षेत्र है, वहां नए निर्माण नहीं हो सकते । बात सिर्फ प्राधिकरण को और मजबूत करने के लिए प्रशासनिक प्रावधानों की थी । जिसमें पर्यटक स्थल शब्द से असमंजस हुआ है । इसके अलावा भी कोई बात होगी कि 26 दिसंबर को होने वाली हमारी बैठक के बाद जैसा मुख्यमंत्री कार्यालय से आदेश होगा, उसी अनुरुप काम कर लिया जाएगा ।