छहढाला के रचयिता का परिचय
अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज की कलम से
पंडित दौलतराम जी का जन्म हाथरस निवासी टोडरमल जी के यहा पर हुआ था । जाति पल्लीवाल और गोत्र गंगीरीवाल थी । आप का जन्म लगभग 1855 या 1856 का है। कपड़े पर छपाई का काम करते थे । छपाई करते करते आप गोम्मटसार,त्रिलोकसार आदि ग्रंथों की 70-80 गाथाएं भी याद कर लेते थे । कहा जाता है पंडित जी को अपनी मृत्यु का ज्ञान मरने से 6 दिन पहले हो गया था । उन्होंने अपने परिवार के लोगो को एकत्र कर कहा था की आज से 6 दिन बाद मेरी मृत्यु हो जाएगी । संवत् 1923 मार्गशीर्ष कृष्ण अमावस्या को दिल्ली में प्राणों का त्याग कर दिया था । आपकी दो रचनाएं उपलब्ध हैं । 1 छहढाला 2 पदसंग्रह । छहढाला ग्रंथ एक ऐसी कृति है जिसने गागर में सागर भर दिया । एक कृति में संसार का दर्शन करवा कर मोक्ष का मार्ग बता दिया है।
छहढाला की रचना 1819 में अक्षय तृतीया के दिन पूर्ण हुई थी ।। छहढाला ग्रंथ में छोटे छोटे 6 अध्याय है जिसे ढाल कहा गया है । प्रथम ढाल में चारों गति के दुःख का वर्णन 16 छंद में किया गया है । दूसरी ढाल में सात तत्त्वों का विपरीत श्रद्धान,मिथ्यादर्शन,मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र आदि का वर्णन 15 छंद में विशेष रूप किया गया है । तीसरी ढाल में सम्यग्दर्शन का सम्पूर्ण वर्णन और मोक्ष मार्ग का वर्णन 17 छंद में किया गया । चौथी ढाल में सम्यग्ज्ञान का वर्णन 15 छंद में किया गया है । पांचवी ढाल में बारह भावनाओं का वर्णन 15 छंद में किया गया है । छठी ढाल में मुनि के चारित्र का वर्णन 15 छंद में उनके भेदों के साथ किया गया ।
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