औलाद के जीवन में एवं निर्णय लेने में मां-बाप की भूमिका होनी चाहिए और यही भारतीय संस्कृति है। यह बात बड़ी दृढ़ता के साथ परम पूज्य आचार्य श्री सुनील सागर महाराज ने ऋषभ विहार दिल्ली में आयोजित पत्रकार सम्मेलन में कही। उन्होंने कहा कि किसी भी लोभ-लालच या अन्य तरीके से धर्मांतरण नहीं करना चाहिए और इस पर भारत सरकार को कठोर कानून बनाना चाहिए। पढ़िए मनोज नायक की रिपोर्ट…
दिल्ली। भारतीय संस्कृति व सभ्यता में लिव इन रिलेशनशिप रिश्ते की मान्यता नहीं है। बिना किसी से विवाह किए हुए कोई महिला किसी पुरुष के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत करती है तो यह अच्छा नहीं है। लिव इन तो रिश्ता है ही नहीं ये तो पूर्णतया अवैध है। भारत सरकार को ऐसे रिश्तों को अवैध करार देते हुए, बनाए जा रहे कानून को रद्द कर देना चाहिए। युवा होने का मतलब यह नहीं कि आप अपनी मर्जी से अपने मां-बाप को ठुकरा कर उनके अरमानों पर पानी फेर कर कोई भी निर्णय ले लें। मां-बाप का घर कोई धर्मशाला नहीं है, जहां आप अपनी मर्जी से रुकते हैं और चले जाते हैं। औलाद के जीवन में एवं निर्णय लेने में मां-बाप की भूमिका होनी चाहिए और यही भारतीय संस्कृति है। यह बात बड़ी दृढ़ता के साथ परम पूज्य आचार्य श्री सुनील सागर महाराज ने ऋषभ विहार दिल्ली में आयोजित पत्रकार सम्मेलन में जैन पत्रकार महासंघ के राष्ट्रीय सांस्कृतिक मंत्री संजय जैन बड़जात्या कामां के प्रश्न का जवाब देते हुए व्यक्त की। सांध्य महालक्ष्मी के संपादक शरद जैन, प्रवीण जैन, राजस्थान पत्रिका के प्रदीप जैन, राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पत्रकार शोभना जैन, अनुपमा जैन, बुद्धि प्रकाश सहित स्थानीय समाचार पत्रों के पत्रकारों ने अनेकों सवाल आचार्य श्री से किये, जिनके जवाब देकर आचार्य श्री सुनील सागर महाराज ने स्पष्ट कहा कि जब सारे सबूत सामने हों तो कोर्ट को या पुलिस प्रशासन को बिना समय गंवाए अपराधी को सजा देनी चाहिए। श्रद्धा, साक्षी, सरस्वती का जिक्र करते हुए कहा ऐसे मामलों में तुरंत निर्णय आने चाहिए।
सन्तान विदेश में, अभिभावक देश में
अभिभावकों को चेतावनी देते हुए कहा कि जब अपने बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा हेतु बोर्डिंग स्कूल और उच्च शिक्षा हेतु हॉस्टल में एवं विदेश में शिक्षण हेतु भेजते हो और फिर वह विदेश में ही जाकर नौकरी करने लग जाता है तो फिर ऐसी संतान से अंतिम समय में आकर संस्कार में शामिल होने की उम्मीद ना करें क्योंकि गलती अभिभावकों की है। उन्होंने करियर बनाने के चक्कर में अपनी संतान को संस्कार नहीं दिए और यह जिम्मेदारी अभिभावकों की है। जब किसी संतान को अपने माता-पिता का सानिध्य, वात्सल्य प्राप्त नहीं होगा तो उस संतान के मन में अपने अभिभावकों के प्रति भी कोई सम्मान नहीं होगा इसलिए समय रहते चेत जाओ।
जैन श्रमण संस्कृति बोर्ड का हो गठन
प्रत्येक राज्य में जैन श्रमण संस्कृति बोर्ड का गठन होना चाहिए। आचार्य श्री ने कहा कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समक्ष यह बात स्पष्ट रूप से रखी गई थी। इस दिशा में सभी को सकारात्मक प्रयास करने चाहिए। बढ़ रहे धर्मांतरण विषय पर जवाब देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि धर्म परिवर्तन नहीं, व्यक्ति का हृदय परिवर्तन जरूरी है। किसी भी लोभ-लालच या अन्य तरीके से धर्मांतरण नहीं करना चाहिए और इस पर भारत सरकार को कठोर कानून बनाना चाहिए। पत्रकारों के अनेक विषयों यथा दिगंबर त्त्व, समान नागरिक संहिता कानून,सहिष्णुता, अनेकांत वाद, लव जिहाद विषयों पर खुलकर जवाब दिए। संथारा जैसे विषयों पर बोलते हुए कहा कि दो लाइन में कोर्ट को निर्णय कर देना चाहिए यदि वह ना कर सके तो हम जैसे संतों को बुलाना चाहिए कि यह धर्म का विषय है। इसमें कोई रोक नहीं लगाई जा सकती।
पिच्छी साधना का उपकरण
मोर पंख से बनी पिच्छी पर रोक लगाने की चल रही कवायद पर सख्त लहजे में कहा कि कोई इस पर रोक नहीं लगा सकता। यह तो दिगम्बर संतों की साधना का उपकरण है। भारत सरकार के मंत्री राजनाथ सिंह का जिक्र करते हुए कहा कि श्रावकों ने उन्हें अनेकों उपहार दिए, जिनको उन्होंने अपने पीए को पकड़ा दिए किंतु पिच्छी से मोर पंख दिया गया तो उन्होंने कहा कि गुरुदेव यही मेरे लिए सबसे अधिक सम्मानजनक है। कार्यक्रम के अंत में उपस्थित पत्रकारों का ऋषभदेव मंदिर समिति द्वारा सम्मान किया गया व आचार्य श्री ने आशीर्वाद स्वरूप शास्त्र प्रदान किए।
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