“आत्म विजयी होना विश्व विजेता होने से भी बड़ा है,” यह महावीर का महान संदेश है। इस संदेश को आत्मसात करते हुए परम पूज्य पंडित रतनलाल जी शास्त्री, जिन्हें आत्मानंद जी महाराज के नाम से भी जाना जाता है, आत्म विजयी होकर आत्मा को परमात्मा में विलीन हो गए। पढ़िए नकुल पाटोदी की विशेष रिपोर्ट…
इंदौर। “आत्म विजयी होना विश्व विजेता होने से भी बड़ा है,” यह महावीर का महान संदेश है। इस संदेश को आत्मसात करते हुए परम पूज्य पंडित रतनलाल जी शास्त्री, जिन्हें आत्मानंद जी महाराज के नाम से भी जाना जाता है, आत्म विजयी होकर आत्मा को परमात्मा में विलीन हो गए। भगवान महावीर के आत्मधर्म के प्रति अडिग श्रद्धा ने पंडित जी को आत्मा की पहचान पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने 14 दिनों तक संयम और साधना के साथ आत्मा की यात्रा की। पंडित जी ने जीवन को इस प्रकार जिया कि वे देह के बंधन से मुक्त हो गए।
उनका यह दिन मृत्यु नहीं, बल्कि मुक्ति का पर्व था। आत्मजयी पंडित जी ने भगवान महावीर की विराट विरासत को अपनाकर “बाहर से छूटो और भीतर जाओ” की साधना की। संयम, तप और कठिन पुरुषार्थ से उन्होंने जैनिज़्म की एक लंबी लकीर खींची और बिना किसी असुविधा के मुक्ति को प्राप्त किया। वे महावीर की मुक्ति के हिमायती और मोक्ष मार्ग के साधक थे। दिगंबर जैन समाज, विशेषकर सामाजिक संसद शीशमहल के अध्यक्ष नरेंद्र वेद, महामंत्री डीके जैन, कोषाध्यक्ष पिंकी टोग्या, युवा अध्यक्ष महावीर जैन, अनामिका मनोज बाकलीवाल और सम्पूर्ण जैन समाज की ओर से परम पूज्य पंडित रतनलाल जी शास्त्री (आत्मानंद जी महाराज) को श्रद्धांजलि अर्पित की है।
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