पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव 31 अक्टूबर से 04 नवम्बर तक
-जैनेश्वरी दीक्षा सहित विभिन्न कार्यक्रम भी होंगे
रायपुर. राजेश जैन दद्दू । गोल बाजार स्थित चूड़ीलाइन में 110 वर्ष प्राचीन जिनालय को नवीन रूप दिया जा रहा है। इसे अब श्री 1008 चन्द्रप्रभ सदोदय तीर्थ दिगंबर जैन मंदिर के नाम से जाना जाएगा, जिसमें नवीन जिनबिंब की स्थापना की जा रही है। इसका पंचकल्याणक महोत्सव आगामी 31 अक्टूबर से 4 नवंबर तक फाफाडीह गली नं.4 स्थित श्री सन्मति नगर दिगम्बर जैन मंदिर में आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में होगा।
इस पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में 31 अक्टूबर को भगवान की माता की गर्भ कल्याणक की क्रियाएं होंगी। वहीं एक नवंबर को भगवान के जन्म कल्याणक की क्रियाएं होंगी। दो नवंबर को भगवान के तप कल्याणक की क्रियाएं होंगी। तीन नवंबर को भगवान के ज्ञान कल्याणक की क्रियाएं होंगी। इसके बाद चार नवंबर को भगवान मोक्ष महापद को प्राप्त होंगे।
पिच्छी परिवर्तन समारोह पांच अक्टूबर को
दिगंबर मुनिजीवों के रक्षा के लिए संयम का उपकरण मयूर पिच्छी अपने साथ में रखते हैं। मयूर पिच्छी के कढ़ेपन से कंही जीवों को घात न होने लगे, इसलिए दिगंबर संत वर्ष में एक बार अपनी पिच्छी परिवर्तित कर नवीन मयूर पिच्छी ग्रहण करते हैं तथा पुरानी पिच्छिका संयमी परिवार को प्रदान करते हैं। यह पिच्छी परिवर्तन समारोह पांच अक्टूबर को दोपहर दो बजे संपन्न होगा।
जैनेश्वरी दीक्षाएं छह नवंबर को
रायपुर के इतिहास में प्रथम बार 22 साधुओं के मध्य 3 बाल ब्रह्मचारी भैया दिगंबर दीक्षा लेंगे। दीक्षा प्रदाता आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज स्वयं अपने करकमलों से ब्रह्मचारी सौरभ भैया( परतबाड़ा), ब्रह्मचारी निखिल भैया (छतरपुर), ब्रह्मचारी विशाल भैया (भिण्ड) को जैनेश्वरी दीक्षा प्रदान करेंगे, जिसमें हजारों की तादाद में भारतवर्ष के विभिन्न प्रांतो के लोग, विभिन्न संप्रदायों के साधु-साध्वी उपस्थित होकर दीक्षा के साक्षी बनेंगे। यह आयोजन छह नवंबर को दोपहर दो बजे विशुद्ध देशना मण्डप, फाफाडीह गली नं.4 में ही संपन्न होगा।
चातुर्मास सम्पन्न
आचार्य भगवन विशुद्ध सागर जी महाराज ससंघ विशाल संघ (22 साधुओं) का रायपुर की पावन धरा पर प्रथम बार ऐतिहासिक चातुर्मास संपन्न हुआ।चातुर्मास के मध्य में आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ससंघ ने नगर के सभी जिन मंदिरों एवं विभिन्न कॉलोनियों का भ्रमण किया। सभी धर्मात्माओं को गुरुओं की अमृतमयी वाणी (प्रवचन), आहार चर्या, वैयावृत्ती, नवदा भक्ति आदि के माध्यम से पुण्यार्जन करने का अनूठा अवसर प्राप्त हुआ।