पैसे से किताबें ला सकते है पर ज्ञान नहीं ला सकते।
न्यूज सौजन्य-कुणाल जैन
प्रतापगढ़। संसार की चर्चा करते करते कई काल बीत चुके, कई जन्म बीत चुके। इस पंचम काल में हमें भगवान महावीर के शासन में अपनी आत्मा की चर्चा व चर्या करने का अवसर मिला है। किसी भी समुदाय में आत्मा की चर्चा या चर्या का विषय नहीं आता। जैन शासन में ही नित अपनी आत्मा की चर्चा होती है यह बात आचार्य सुंदर सागर जी ने प्रतापगढ़ स्थित नया मंदिरजी में दिव्य तपस्वी आचार्य श्री सुंदर सागर जी गुरुदेव संसघ के सानिध्य चल रहे सिद्धचक्र महामंडल विधान में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही। आचार्य ने आगे कहा कि जैन शासन कहता है पैसे से बड़े बन सकते है, विधान करा सकते है, पूजन करा सकते है पर पैसे से पूज्यता नहीं पा सकते पूज्यता को वही प्राप्त करते हैं जो अपनी आत्मा में रमते हैं। पैसे से किताबें ला सकते है पर ज्ञान नहीं ला सकते। पैसे से हर चीज मिल सकती है पर परिणाम – भाव नहीं मिल सकते। भाव निर्मल बनाने के लिए देव शास्त्र गुरु मिले हैं। साथ ही कहा कि आत्मा सभी के अंदर है इसलिए सभी परमात्मा बन सकते हैं। परमात्मा बनने के लिए परमात्मा बनने वाले की राह वाले गुरुओं के पास रहना पड़ता है उनकी शरण लेनी पड़ती है।
आचार्य कुंदकुंद देव कहते हैं जिसकी सम्यक दृष्टि नहीं उसकी कभी मुक्ति नहीं। जिसे गुरु के प्रति लगाव नहीं है वह इस जैन कुल में होते हुए भी तिर्यंच के समान है। “जाएगा जब यहां से कोई तो साथ होगा ” इस वाक्य में कोई साथ हो ना हो पर तुम्हारे कर्म हमेशा साथ रहेंगे। आप जैन बने, आपने जैन कुल में जन्म लिया ,जन्म लेकर सब कुछ किया पर जैन कुल में जो काम करना चाहिए वह काम नहीं किया। जीवन भर धन कमाने में लगे रहे पर जैन कुल को पाकर भी देव शास्त्र गुरु की आराधना उपासना नहीं कि, तो जैन कुल में होते हुए भी अपनी आत्मा का कल्याण नहीं कर सकें। जैन कुल साधना करने के लिए मिला है घूमने के,भोगने के लिए नहीं। निर्ग्रन्थ आए थे, निर्ग्रन्थ जाओगे। जैन कुल मिला है, उसे अपने कर्म को काटने के लिए उपयोग करिए। आप सभी धर्म की महिमा समझें और धर्म से जुड़े अपनी आत्मा का कल्याण करें।