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भारतीय इतिहास और संस्कृति मे ऋषभदेवः ऑनलाइन व्याख्यान माला में ऋषभदेव की महत्ता पर प्रकाश डाला


जैन एकेडमी ऑफ स्कालर्स और श्री आदिनाथ मेमोरियल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान मे आयोजित भारतीय संस्कृति के विकास में जैन धर्म का योगदान विषयक मासिक ऑनलाइन व्याख्यान माला में ऋषभदेव जन्म कल्याणक के उपलक्ष्य में आयोजित की गई। सभी वक्ताओं ने अपने सारगर्भित विचारों को साझा किया। पढ़िए दिल्ली से शैलेन्द्र जैन की यह पूरी खबर….


दिल्ली। 25 तारीख को ऋषभदेव जन्म कल्याणक (23 मार्च) के उपलक्ष्य में जैन एकेडमी ऑफ स्कालर्स और श्री आदिनाथ मेमोरियल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान मे आयोजित भारतीय संस्कृति के विकास में जैन धर्म का योगदान विषयक मासिक ऑनलाइन व्याख्यान माला आयोजित की गई। जिसमें भारतीय इतिहास में ऋषभदेव विषय पर लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ दिल्ली के शोध छात्र पारस जैन ने सारगर्भित व्याख्यान दिया।

ऋषभदेव की महत्ता पर प्रकाश डाला

जैन ने बताया कि ऋग्वेद आदि वैदिक साहित्य मे सौ से अधिक जगहों पर ऋषभदेव का उल्लेख मिलता है। जैसा स्वरूप जैन दर्शन में ऋषभदेव का बताया गया है। उसी प्रकार भागवत पुराण में भी उनको दिगम्बर ही बताया है और मोक्षमार्ग के प्रस्तोता कहा है। जिस प्रकार जैन धर्म में 24 तीर्थंकर होते है उसी प्रकार वैष्णव धर्म मे 24 अवतारों में ऋषभदेव विष्णु का आठवां अवतार स्वीकार किया गया है। साथ ही इनके सौ पुत्रों में ज्येष्ठ भरत के नाम से भारत पडा।

आधुनिक विज्ञान के साथ सामंजस्य बैठाएं 

साहित्य पुरातत्व में अनेक प्रमाण उपलब्ध है जिनसे ऋषभदेव की ऐतिहासिकता स्वयं सिद्ध है। जे ए एस निदेशक डॉ. नरेंद्र भंडारी ने कहा कि आपने इस विषय पर गहन अध्ययन किया है और एक अच्छा व्याख्यान दिया है जो सराहनीय है। लेकिन जब तक इन ऐतिहासिक संदर्भाे को आधुनिक विज्ञान के साथ सामंजस्य बैठाना भी आवश्यक है। तभी आप वैश्विक स्वीकार्यता को पा सकते हैँ। अध्यक्षता कर रहे डॉ. शिशिर जैन ने कहा कि मैंने अध्ययन के दिनों मे सिन्धु घाटी का उत्खनन किया है इसके पुरातत्व और स्तूप से जैन परंपरागत मान्यता का समर्थन होता है, पारस ने काफी विस्तार से ऋषभदेव के इतिहास और पुरातत्व के माध्यम से जानकारी दी है।

ऋषभदेव की अनेक नाम और रूपों में पहचान 

संयोजक शैलेन्द्र जैन ने बताया कि भारतीय संस्कृति के मूर्तमान विग्रह है और सभी धर्म और परंपरा में ऋषभदेव अनेक नाम और रूपों से पहचाने जाते है। जिसकी चर्चा विद्वान अपने लेख, व्याख्यान तथा पुस्तकों मे वैदिक काल से करते है। व्याख्यान के उपरांत डॉ. ज्ञानचंदजी, डॉ. रमेशजी, पवन जैन, शोनाली शाह आदि के प्रश्नों का पारस ने उत्तर दिया। अंत मे शैलेन्द्र जैन एवं पूर्वी ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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