दोहों का रहस्य समाचार

दोहों का रहस्य -64 शरीर की बजाय आत्मा के उत्थान पर ध्यान देना चाहिए : हमारा शरीर नाशवान है, इसका अहंकार करना व्यर्थ है


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की 64वीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


हाड़ जले ज्यों लकड़ी, केस जले ज्यों घास।

सब तन जलता देख कर, भया कबीर उदास॥


यह दोहा कबीर जी के द्वारा शरीर की नश्वरता और जीवन की अस्थिरता को दर्शाने के लिए कहा गया है। कबीर जी इस दोहे में शव-दहन (अंतिम संस्कार) का दृश्य देखते हुए कहते हैं कि जैसे लकड़ी जलकर राख हो जाती है, वैसे ही हमारे शरीर की हड्डियाँ भी जलकर समाप्त हो जाती हैं। और बाल (केस) घास की तरह जल्दी जलकर राख हो जाते हैं। यह दृश्य शरीर की क्षणभंगुरता और मृत्यु के आने से पहले के समय की याद दिलाता है।

कबीर जी का संदेश स्पष्ट है कि हमारा शरीर नाशवान है और इसका अहंकार करना व्यर्थ है। लोग जीवन भर अपने रूप, शरीर, सौंदर्य और शक्ति पर गर्व करते हैं, लेकिन जब मृत्यु का समय आता है, तो वह सब कुछ समाप्त हो जाता है। शरीर केवल एक अस्थायी आवास है, जबकि आत्मा शाश्वत और अमर है। मृत्यु के बाद शरीर कुछ नहीं रहता, केवल आत्मा बचती है, जो अपनी शुद्धता और अच्छाई के साथ आत्मा के रूप में शाश्वत रहती है।

कबीर जी यह सिखाना चाहते हैं कि शरीर की नश्वरता को समझकर हमें अहंकार, वासना और मोह से दूर रहना चाहिए और आत्मा की उन्नति के मार्ग पर चलना चाहिए। यह दोहा श्रीमद्भागवत गीता के सिद्धांत से भी जुड़ा हुआ है, जिसमें कहा गया है “शरीर नाशवान है, आत्मा शाश्वत है” (भगवद्गीता 2.22)। गीता के “क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ” सिद्धांत के अनुसार, शरीर (क्षेत्र) नष्ट हो जाता है, लेकिन आत्मा (क्षेत्रज्ञ) अमर रहती है।

कबीर जी के इस दोहे में हमें यह शिक्षा दी जाती है कि जीवन की वास्तविकता को समझकर सांसारिक माया से मुक्त होकर, हमें धर्म, भक्ति, और आत्मज्ञान के मार्ग पर चलना चाहिए। मृत्यु का स्मरण हमें वैराग्य और भक्ति की ओर प्रेरित करता है, ताकि हम ईश्वर के साथ अपने संबंध को समझ सकें।

कबीर जी यह भी बताते हैं कि हमें अपने शरीर को अपना सर्वस्व नहीं मानना चाहिए, क्योंकि यह अस्थायी है। बल्कि हमें आत्मा को पहचानने और जीवन को सच्चे आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की आवश्यकता है, क्योंकि वही हमें मोक्ष की दिशा में ले जाएगा।

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