कथांश जैन का प्रथम जन्म दिवस तीर्थराज सम्मेदशिखर जी की पावन भूमि पर मनाया गया। गुणायतन शिखर जी में 1008 श्री चंदप्रभु भगवान का प्रथम अभिषेक और शांतिधारा की गई। संगीतमय गणधर विलय विधान धूमधाम से हुआ। इस विधान में 1008 श्री चंद्रप्रभु भगवान के चरणों मे 48 अर्घ्य चढ़ाए गए। कोडरमा से पढ़िए राजकुमार अजमेरा की यह खबर…
कोडरमा। जहां लोग अपने बच्चों के जन्मदिन मनाने होटल और पिकनिक जाते हैं। वहीं कोडरमा निवासी दिल्ली प्रवासी अशोक-मंजू अजमेरा के पौत्र सुमित-नेहा अजमेरा के पुत्र कथांश जैन का प्रथम जन्म दिवस तीर्थराज सम्मेदशिखर जी की पावन भूमि पर मनाया गया। सुबह गुणायतन शिखर जी में 1008 श्री चंदप्रभु भगवान का प्रथम अभिषेक और शांतिधारा का सौभाग्य मुंबई के सुभाष मोनिका साह, चंदेरी जैन समाज, पुणे सुरेखा जुगमंदर साह, कोडरमा अशोक विनोद अजमेरा, हजारीबाग अजित पाटोदी, नरेश-उषा जैन रांची, इंदौर से राकेश-रजनी गोधा, गुणायतन के सुभाष जैन, जयपुर से नंदलाल जैन, कोडरमा वीरू-संगीता छाबड़ा, कोटा के कपूर जैन परिवार, अजमेरा परिवार कोडरमा, पाटोदी परिवार हजारीबाग को भी प्राप्त हुआ। इसके बाद गुणायतन के दीपक पंडित के निर्देशन में भक्ति भाव के साथ संगीतमय गणधर विलय विधान धूमधाम से कराया गया। इस विधान में 1008 श्री चंद्रप्रभु भगवान के चरणों मे 48 अर्घ्य चढ़ाए गए।
विधान में यह समाजजन मौजूद रहे
विधान के बाद जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर 1008 सुपार्श्वनाथ भगवान का पूजन के साथ निर्वाण लड्डू चढ़ाया गया। मंगलवार को फागुन कृष्ण सप्तमी के दिन इसी सम्मेदशिखर जी के प्रभास टोंक से योग निरोध कर निर्वाण को प्राप्त किए थे। तभी से पूरे विश्व मे मोक्ष कल्याणक के रूप में मनाया जा रहा है। गुणायतन के ट्रस्टी वीरेंद्र-संगीता जैन छाबड़ा ने विधान पुर्ण्याजक परिवार का माला और तिलक लगाकर स्वागत किया। इस विधान में विशेष रूप से शामिल होने वाले कथांश के छोटे दादू राज कुमार अजमेरा, हजारीबाग अजित-किरण पाटोदी, आशीष पाटोदी, शकुन जैन, कोलकोत्ता से विमल सेठी आदि अनेक लोग इस विधान में शामिल हुए।
इन्होंने दी बधाई
कोडरमा से विनोद अजमेरा, हजारीबाग से रोहित पाटोदी, बेंगलोर से अशोक-मंजू, पुनीत-नूपुर, अर्हम अजमेरा,गुवाहाटी से मनोज-आशा गंगवाल, कोलकोत्ता से विभोर-रुचिका सेठी, बाराबंकी से सुशील-शिम्पी सेठी आदि कई ने बधाई दी। कोडरमा की वार्ड पार्षद पिंकी जैन ने कहा कि सभी को अपना जन्मदिन कोई भी तीर्थ क्षेत्र में मनाना चाहिए। जिससे उसमे धर्म के संस्कार मिलते रहे। इस अवसर पर विशेष आशीर्वाद आचार्य श्री संभव सागर जी महामुनिराज और आर्यिका पुनीत श्री माता जी का मिला।
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