लेखिका – संघस्थ बाल ब्रह्मचारिणी आर्यिका श्री विश्वयशमति
संकलन – राजेश पंचोलिया, इंदौर
साधना और मंगल भावना की संपूर्णता का नाम है पूज्य आर्यिका 105 श्री सृष्टि भूषण माताजी जी, पूज्य माता जी ने भारतवर्ष के मध्य प्रदेश प्रांत की मुंगावली की धरा पर 23 मार्च, 1964 को श्रद्धेय पिताश्री कपूर चंद जी एवं माता श्री पदमा देवी की बगिया में जन्म लिया। नामकरण किया सुलोचना। यह परिवार की तीसरी संतान थीं। इसे विधि का विधान कहें कि इनसे पूर्व जन्मे दोनों ही पुत्र अल्प समय में ही इस मनुष्य पर्याय से पलायन कर गए। दोनों संतानों के चले जाने के बाद आपका जन्म हुआ।
सपनों के माध्यम से आदेशित
आपके जन्म से पहले ही आपकी मातृश्री को सपनों के माध्यम से आदेशित किया गया कि इस संतान को अपने पास ना रख कर कहीं और परवरिश कराई जाए अन्यथा संतान भी काल के में विलीन हो जाएगी। बड़े ही व्याकुल क्षण थे। इतना सुन मां ने अपने हृदय और भावनाओं पर पत्थर रखा। आपको जन्म के कुछ क्षणों बाद आपको श्रीमती रामप्यारी बाई को सौंप दिया, जो आपके गांव की एक वरिष्ठ महिला थीं। उनके पति का देहांत भी उनके विवाह के मात्र 6 महीने बाद ही हो गया था। उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी, अत: उन्होंने आपको हृदय से लगाकर अपनी खुद की संतान से भी ज्यादा प्यार देकर पाला-पोसा और संस्कारित किया।
सभी के आकर्षण का केंद्र थीं
पूरे गांव की लाडली सुलोचना पूरे कुटुंब का आकर्षण थीं। मेधावी छात्र को शिक्षकों ने भरपूर स्नेह दिया। इन्होंने आत्मीयता से शिक्षा को सम्पन्न किया।
संन्यास की ओर बढ़ते कदम
मुंगावली की इस कन्यारत्न को संपूर्ण धरा को ही वर्ण करना था और आभूषणों बनाना था। आपके गांव में 40 वर्षों के अंतराल के बाद एक जैन संत पूज्य ज्ञान सागर जी महाराज का आगमन हुआ। आचार्य श्री ने उनके विचारों को सुना और उनकी उपयोगिता का अनुभव किया। जीवन में आए इस बदलाव ने उन को संसार से विरक्त कर संन्यास की ओर अग्रसर होने की ओर प्रेरित किया।
नहीं रुकेगी घर में
उनका बचपन का एक प्रसंग याद आता है। बचपन में सुलोचना जी ने आर्यिका श्री सुपार्श्वमति माताजी के दर्शन परिजनों के साथ किये थे, तब ज्योतिष की जानकार आर्यिका माताजी ने कहा कि यह बालिका बड़ी होने पर किसी साधु के दर्शन करेगी तो घर पर नहीं रुकेगी। संन्यास मार्ग पर आगे बढ़ जाएगी। इस डर के कारण परिजन इन्हें साधु आगमन पर घर से निकलने नहीं देते थे लेकिन होनहार को कौन बदल सकता है। आपके परिवार का स्नेह आपको बांध नहीं सका। आपने अलौकिक शिक्षा में ग्रेजुएशन पूरी कर 19 वर्ष की अल्पायु में ही संन्यास के मार्ग पर कदम बढ़ा दिये। और आप स्वयं में जागरण के मार्ग पर बढ़ चलीं एवं 10 वर्ष के संन्यासी जीवन के अभ्यास एवं जैन धर्म एवं अन्य शास्त्रों में निपुणता प्राप्त कर आपने गुरु आचार्य 108 श्री सुमति सागर जी महाराज एवं आचार्य 108 विद्याभूषण सन्मति सागर महाराज के वरदहस्त से 26 मार्च, 1994 को सुलोचना से आर्यिका 105 श्री सृष्टि भूषण माताजी बन गईं। आपने अपने साधु जीवन को अपनी साधना संयम व्रत एवं तपस्या से तेजोमयी बनाया और अपनी सरल हृदयता से भक्तों के हृदय में भी स्थान प्राप्त किया।आपकी मंगल वाणी से बहती भक्ति गंगा में अवगाहन कर भक्तों ने स्वयं को धन्य किया। जहां-जहां भी आपका पद विहार हुआ, भक्तों का विशाल प्रभुत्व आपके चरण रज को स्पर्श करने के लिए बढ़ता चला गया।
लाखों की संख्या में भक्त
आज लाखों की संख्या में आपके भक्त हैं पर फिर भी आप में वही सरलता वात्सल्य सभी के प्रति रहती है। चाहे व्यक्ति किसी वर्ग से हो, आपके लिए सब समान हैं सर्वोपरि। आपका दीप्तिमान जीवन प्रतिक्षण प्राणी मात्र के कल्याण के लिए तत्पर है। आपके और आपके आशीर्वाद से आसपास अंधियारे को प्रकाश की किरण मिटाकर दुखियारों के आंचल को सुख समृद्धि एवं मुस्कान से भर रही है।
25 हजार किलोमीटर पदयात्रा
आपने अपने 29 वर्षीय संयमी जीवन में करीब 25000 किलोमीटर की पदयात्रा पूरी की। जिसमें दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा ,गुजरात आदि के प्रांतों के नगर एवं महानगर सम्मिलित हैं। आपने दीर्घ जीवन अपने लोगों के जीवन को निकटता से देखा है। आपने ना सिर्फ किताबों अखबारों के माध्यम से बल्कि लोगों के बीच में रहकर उन को होने वाली समस्याओं को नजदीक से देखा एवं महसूस किया है। तब आपने निर्णय लिया कि आप समाज एवं राष्ट्र में शांति मानवता एवं खुशहाली स्थापित करेंगी।
आपके कार्य हैं ये
आपके द्वारा महानगर दिल्ली समेत सिद्ध क्षेत्र श्री सम्मेद शिखरजी झारखंड, सिद्ध क्षेत्र सोनागिर जी मध्य प्रदेश, अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी राजस्थान मैं भक्तों के सहयोग से श्री सृष्टि मंगलम फाउंडेशन जैसी संस्थाओं की स्थापना करवाई। जिसके माध्यम से हर वर्ग के लोग लाभान्वित हो सकें। साथ ही प्यारी आत्माओं जो संयम के मार्गदर्शक हैं, निर्विकल्प अपनी संयम साधना कर सकें। ऐसी व्यवस्था प्रदान की गई है और भविष्य में भी की जाती रहेंगी। आपके आशीर्वाद से एवं निर्देशन में जगह जगह निशुल्क भोजनालय खुलवाए गए। छात्रवृत्ति शिक्षण शिविर, संस्कार शिविर, पूजन विधान शिविर, वस्त्र वितरण ट्राई साइकिल, बैसाखी, कानों की मशीन, सिलाई मशीन, कंबल, निशुल्क दवाइयों के वितरण के साथ- साथ असहाय गरीब लड़कियों की शादी करवाना एवं साथ-साथ बेरोजगार परिवारों को कार्य दिलवाने के कार्य किए जा रहे हैं। कैंसर और थैलेसीमिया जैसी दो बड़ी बीमारियों को ध्यान में रखते हुए आप की प्रेरणा से गठन हुआ श्री आदि सृष्टि कैंसर ट्रस्ट का।
अनेक सेमिनार और जागरूकता शिविर आयोजित
अल्प समय मे ही देश के विभिन्न प्रांतों-जिलों, गांव-कस्बों के साथ विदेशों में भी जांच शिविर सेमिनार एवं जागरूकता अभियान शुरू किए गए। शासन प्रशासन का भरपूर सहयोग मिला। सरकारी योजनाओं के द्वारा लाभान्वित लोगों इलाज कराया गया एवं उसकी विस्तृत रूप में जानकारी दी गई। समाज की दान भक्ति का एक साथ सम्मेलन हुआ। आपके पुण्य प्रताप से पूरे भारतवर्ष के नामी गिरामी डॉक्टर्स का साथ मिलता चला गया। हजारों रोगियों को इसका लाभ मिलना प्रारंभ हो गया। अनेक कैंसर पीड़ित रोगियों की जीवन के प्रति निराशा एक बार फिर से आशा में प्रभावित हुई। आपने जनमानस के जीवन में मुस्कान बिखेरने का जो संकल्प रूपी बीज अपने हृदय में पल्लवित किया, वृक्ष का रूप लेकर लाखों लोगों को छांव प्रदान कर रहा है।
मानव रत्न से अलंकृत
प्रख्यात मानव सेविका एवं जिनधर्म प्रभाविका आर्यिका 105 श्री सृष्टि भूषण माताजी को मानव कल्याणार्थ किए गए अति विशिष्ट कार्यों के लिए इंटरनेशनल न्यूज एंड व्यूज कॉर्पोरेशन द्वारा मानव रत्न अलंकरण से सम्मानित किया गया है। उनको यह अलंकरण, कैंसर पीड़ित व्यक्तियों की सेवा के लिए चलाए जाए जा रहे आदि सृष्टि कैंसर सेवा ट्रस्ट के संचालन के लिए दिया गया है। कॉर्पोरेशन के मानव रत्न अवार्ड सिलेक्शन कमेटी के समन्वयक डॉ डीपी शर्मा, जो कि यूनाइटेड नेशंस की संस्था आईएलओ के अंतरराष्ट्रीय परामर्शक एवं भारत सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के राष्ट्रीय ब्रांड एंबेसडर हैं, ने बताया कि यह पुरस्कार सेवा के क्षेत्र में अति विशिष्ट कार्यों के लिए परंपरा से परे भागीरथ प्रयासों के लिए दिया जाता है। यह पुरस्कार उन्हें 29 सितंबर, 2019 को दिल्ली के राजवाडा पैलेस में एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया है।
वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री का वात्सल्य
प्रसंग है कि1993 में श्री बाहुबली भगवान के महामस्तकाभिषेक के दौरान, तब माताजी की दीक्षा नही हुई थी, वह ब्रह्मचारिणी थीं। वह भी 93 में मस्तकाभिषेक देखने संघ की अन्य दीदियों के साथ गई थीं। उन्होंने पंचम पट्टा धीश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी से संघ के साथ अभिषेक देखने का निवेदन किया। आचार्य श्री ने सहज स्वीकृति देकर अगले दिन दोपहर को सामायिक के बाद का समय दिया। आचार्य श्री संघ समय पर बड़े पहाड़ के गेट तक पहुंच गए। किंतु दीदियों के नही पहुंचने पर इंतजार कर बुलाने भेजा और संघ के साथ लेकर चले गए। घटना छोटी है किंतु यह अन्य संघ के प्रति वात्सलय को दर्शाती है कि सचमुच आचार्य श्री का हृदय कितना विशाल एवं करुणामय है।
उपाधियां
आपको इन महान कार्यों के लिए निम्न उपाधियां भी पूर्व में सम्मान स्वरूप प्रदान की गई हैं…
हरियाणा समाज द्वारा सन 1998 – हरियाणा उद्धारक (200 देशों के शंकराचार्यों की उपस्थिति में) अजमेर समाज द्वारा सन 2005 – जिनधर्म प्रभाविका गुडगांव समाज द्वारा सन 2011 कविमना बूंदी राजस्थान समाज द्वारा सन 2012 -वात्सल्य मूर्ति महावीर जी समाज द्वारा सन 2016 समता शिरोमणि नजफगढ़ समाज द्वारा सन 2018 -वात्सल्य निधि, आचार्य अतिवीर जी महाराज जी द्वारा सन 2015 – गणनी पद की उपाधि दी गई है।
भक्तों को सन्देश
आपने अपने साथ जुड़े लाखों भक्तों को एक ही सन्देश दिया है-
‘‘मेरा तो है बस एक ही सपना,
स्वस्थ सुखी हो जीवन सबका’’
और आपकी इसी मंगल भावना और आशीर्वाद को साथ लेकर संकल्पित और समर्पित हैं आपके सभी भक्तगण।
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