जनमानस से अपनी जिंदगी में पांच पेड़ लगाने का आह्वान
न्यूज़ सौजन्य-राजीव सिंघई
ललितपुर। शहर के क्षेत्रपाल मंदिर में निर्यापक पुंगव मुनि श्री सुधासागर जी महाराज के चातुर्मास काल में होने वाली धर्मसभा में अमृत रूपी प्रवचनों का लाभ श्रद्धालुओं को लगातार मिल रहा है। मुनिश्री अपने प्रवचनों में सरकार द्वारा चलाई जा रही जनहितैषी योजनाओं की सार्थकता बताते हुए उनपर अमल करने की भी नसीहत आम जनमानस को दे रहे हैं। उन्होंने धर्मसभा में प्रवचन के दौरान अपने तीर्थक्षेत्र के संपूर्ण विकास करने का भी मंत्र दिया।
धर्मसभा में प्रवचनों के दौरान निर्यापक मुनि श्री सुधा सागड़ जी महाराज ने कहा कि हर इंसान को मरने से पहले अपने ऊपर चढ़े कर्ज को अदा कर देना चाहिए। यदि तुमने ऐसा कर लिया तो समझ लेना कि तुम्हारा जीवन सार्थक हो गया है। प्रवचनों के दौरान उन्होंने प्रकृति के संतुलन हेतु सरकार द्वारा चलाई जा रही वृक्षारोपण योजना को बहुत ही सार्थक योजना बताया। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति जन्म लेने से मृत्यु तक जितनी भी लकड़ी का इस्तेमाल करता है, वह लगभग 5 पेड़ों के बराबर होती है। आज विकास की होड़ में व्यक्ति इतना मतलबी हो गया है कि वह प्रकृति से खिलवाड़ करते हुए लगातार प्रकृति का दोहन कर रहा है और वृहद रूप से वृक्षों को काटकर धरती को बंजर बना रहा है। उन्होंने प्रवचन के दौरान आह्वान किया कि हर व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कम से कम पांच पेड़ लगाए ताकि आप इस प्रकृति का कर्जा चुका सकें। तुम्हें इस धरती माँ का उपकार मानते हुए उसका धन्यवाद करना चाहिए और उसके श्रंगार के लिए वृक्षारोपण जरूर करना चाहिए। यदि इस धरती ने मुझपर उपकार किया है तो मैं धरती का उपकार भी चुकाकर ही मरूंगा। फिर चाहे वह उपकार लकड़ी का हो, जल का हो या फिर हवा का हो। यदि यह भावना आम जनमानस के मन में आ जाए तो कभी भी आपका पतन नहीं होगा और हमारी पृथ्वी संरक्षित रहेगी और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।
पूर्वजों का सम्मान बचाने से ही आपकी इज्जत बचेगी
प्रवचनों के दौरान मुनि श्री ने हर व्यक्ति को दुर्व्यसनों से बचने की सलाह दी। उन्होंने नशा करने वालों से कहा कि अपने पूर्वजों का मान- सम्मान बचाने से ही आपकी इज्जत बचेगी, नहीं तो आपकी इज्जत के साथ साथ आपके पूर्वजों के मान सम्मान पर कलंक लग जाएगा। उन्होंने नसीहत देते हुए कहा कि धन का दुरुपयोग नहीं करना, धन का नाश नहीं करना। धन ने यदि तुम्हारे ऊपर उपकार किया है कि तुम भी धन के ऊपर उपकार करना और उसे सद्कार्यों में लगाकर उसकी इज्जत बढ़ाना। अगर आपने धन को सद्कार्यों में लगाया तो तुमसे कभी धन रूठेगा नहीं और तुम्हारे पास में कभी भी धन की कोई कमी नहीं होगी। मैं सिर्फ दो हो उपदेश देता हूँ। हो सके तो अपने भगवान, अपने धर्म और अपने समाज की इज्जत बढ़ाना और दूसरा उपदेश अपने पूर्वजों की इज्जत पर दाग धब्बा न लगने दें।
इस दौरान उन्होंने तीर्थ क्षेत्रों के चहुंमुखी संपूर्ण विकास का भी मंत्र दिया। उन्होंने कहा कि अधिकार देने से ही जिम्मेदारी का अहसास होता है। जहां अधिकार नहीं, वहां कर्तव्य नहीं। अगर बेटे को अधिकार नहीं दोगे तो वह भी अपना कर्तव्य नहीं निभाएगा। मैं चाहता हूं कि भारतबर्ष की हर संस्था अपने पैर पर खड़ी हो, कोई संस्था किसी के अधीन न हो। इसीलिए अपने तीर्थक्षेत्र और अपनी संस्था का विकास करना है तो उसे सार्वजनिक कर दो। उन्होंने कहा कि अपने बच्चों को संस्कारित भी करना ताकि वह अपनी धर्म- संस्कृति और सभ्यता की रक्षा कर उसे आगे बढ़ा सके। अपने बच्चों को संस्कारित करने के लिए तुम्हें अपने धर्म अनुसार विद्यालय, महाविद्यालय संचालित करने पड़ेंगे, जिसमें सांसारिक शिक्षा के साथ-साथ धर्म की शिक्षा भी दी जाए। यदि आप अपने बच्चों को पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता वाले स्कूलों में पढ़ाते रहेंगे तो आपके धर्म संस्कृति और समाज का पतन निश्चित है।