मुनि श्री सुधासागर जी महाराज ने गुरुवार को धर्म सभा में अपने प्रवचन में जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश दिया। उन्होंने जीवन का सार समझाया। कटनी से पढ़िए राजीव सिंघई की यह खबर…
कटनी। निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने बहोरीबंद अतिशय तीर्थ में अपने प्रवचनों के माध्यम से जैन समाज को उपयोगी मार्गदर्शन दिया। उन्होंने कहा कि अच्छाइयों को समझ लेने से हम अच्छे बन जाएंगे, ये उम्मीद मत रखना, मंजिल को समझ लेने से हमें मंजिल मिल जाएगी, ये उम्मीद मत करना। रोटी मिल जाएगी तो तुम खा लोगे, ये मत समझना। पानी पी लोगे तो प्यास बुझ जाएगी ये मत समझना। भगवान, गुरु मिल जाएंगे तो कल्याण हो जाएगा। ये मत समझ लेना। उच्च कुल, वज्र वृभषनाराच संहनन मिल जाएगा तो मत समझना कि तुम्हारा कल्याण हो जाएगा। ये सब पॉजिटिव एक पक्ष है और एक पक्ष से नदी नहीं बहती है। हमारी जितनी लग्न मोक्ष के प्रति है, उतनी लगन यदि तुम मोक्ष मार्ग के प्रति लगा लो तो मंजिल के प्रति लगन न होते हुए भी मंजिल मिल जाएगी। हर व्यक्ति अमीर बनना चाहता है लेकिन, कोई ये पूछने नहीं आता कि ये अमीर क्यों बना, कैसे बना, पूछना ही नहीं चाहता और बताएं तो सुनना नहीं चाहता। ये अमीर इसलिए बना है क्योंकि, इसने बहुत दान दिए हैं, बहुत करुणा की है, मंदिर बनाए हैं, धर्मशाला खोली, गरीबों की सहायता की है। इसलिए आज अमीर बना।
गरीबी क्यों है इसकी खोज
जब दो व्यक्ति जबरदस्त लड़ रहे हो तो लड़ते हुए व्यक्तियों को नाग की उपमा दी कि ये नाग हैं, जब दो नाग लड़ रहे हो तो उन्हें अलग करने का प्रयास मत करना, वे दोनों नाग मिलकर के तुम्हें निपटा देंगे। फिर वो लड़ेंगे। ऐसे ही मानी, मायाचारी और लोभी व्यक्ति को मत समझना, चारों कषायों की जब तीव्रता हो, तब आप धर्म का उपदेश नहीं देना, यदि दुर्जन है तो, उसकी कषाय मंद पड़ने दो। मध्यम कषाय वाले को ही शांति से समझाया जाता है, उपदेश दिया जाता है। हम साध्य के प्रति बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते है। रोने से किस्मत अच्छी नहीं हो जाएगी, ये विचार करो कि किस्मत क्यों खराब है। गरीबी का रोना रोने से गरीबी दूर नहीं होगी, कितने ही रोते रहना, कितने ही विधान, पंचकल्याणक करते रहना, गरीबी क्यों है इसकी खोज करो। क्यों पर विचार नही करते, इसलिए हमारा भगवान, गुरु पर से विश्वास उठ जाता है।
5 रुपये कम खर्च करके 5 रूपए का दान करो
बचे हुये पैसे से पाप मत करना, अपने उपभोग में से कांटकर करना हो तो कर लेना क्योंकि, बचा हुआ पैसा नियम से तुम्हारें पुण्य कर्म से बचा है। मानकर चलिए तुम्हारा सौ रुपये निश्चित है तो 5 रुपये कम खर्च करके 5 रूपए का दान करो। तुम्हे और भी अनाव सनाव पैसा खर्च करना है तो अपने उपयोग में से कम कर दो, एक आवश्यक वस्तु कम खरीदो लेकिन, बचे हुए पैसे से पाप मत करना, वह तुम्हारे पुण्य की मेहरबानी है, अन्यथा पैसा बच ही नहीं सकता। तुमने वहाँ पुण्य किया है, जहाँ मंदिर में जरूरत नहीं थी, फिर भी तुमने कहा मैं तो मंदिर में दान दूँगा। भगवान को पीतल का छत्र लगा है, जरूरत नही है लेकिन मैं तो छत्र सोने का चढ़ाऊँगा।
जानने के लिए चरित्र पढ़ना
भगवान को जानने के लिए भगवान का चरित्र नहीं पड़ना, भगवान कैसे बने हैं उसको जानने के लिए चरित्र पढ़ना। भगवान का स्वरूप तो बहुत 2 मिनिट में आ जाएगा। अब सारी जिंदगी में समझ में आ जाए कि भगवान बनने की विधि क्या है? उस विधि को सीखों। महानुभाव एक पाप का भी त्याग नहीं है और तुम अपने आपको भगवान मान रहे हो तो तुम्हारी दशा उसी शराबी जैसी है, जिस भिखारी ने शराब की बोतल लगा ली और कहता है- आई एम गॉड।
नौ बार णमोकार मंत्र पढ़ो
एक दान होता है- जरूरत का दान, मंदिर में जो जरूरत है वो दे देना, मंदिर बन रहा है इस मंदिर में मेरा कुछ न कुछ लगेगा। दूसरा जो कहता है जरूरत नही है तो भी मैं मंदिर में दान दूँगा। हर व्यक्ति को अच्छे समय में तैयारी करना है कि बुरा समय आ जाए तो क्या तैयारी है? आप यात्रा पर जा रहे हो गाड़ी नहीं है लेकिन रास्ते में पंचर हो गई तो क्या तैयारी है? पक्ष की ही नहीं विपक्ष की भी तैयारी रखो, यदि इससे उल्टा हुआ तो क्या तैयारी है? रात में सकुशल सो रहे हो, कुछ भी नही, यदि रात में सोते-सोते मर गए तो क्या तैयारी है? जैन दर्शन है कहता है उस एक प्रतिशत की तैयारी करो। नौ बार णमोकार मंत्र पढ़ो, जब तक मेरी निद्रा है तब तक मैं सब कुछ अन्न जल परिग्रह का त्याग करता हूँ, प्रभु मेरे व तेरे अलावा कोई नही, अब निद्रा में मर भी जाएगा तो वही गति होगी जो एक त्यागी की होती है, जो णमोकार मंत्र पढ़ते पढ़ते मरने वाले की गति होती है, ये है समझदार व्यक्ति।
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