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अहिंसकाहार पद्धति प्रकृति के सिद्धान्तों पर आधारित : भारतीय संस्कृति संरक्षण के लिए खान-पान शुद्धि की आवश्यकता


भारतीय संस्कृति में शुद्ध खान-पान का विशेष महत्व रहा है। जैन संस्कृति में अहिंसा का विशेष महत्व है। अहिंसा सिद्धान्त के सम्बन्ध में हमारे तीर्थंकरों, आचायों ने विशेष उपदेश व योगदान दिया है और जीवन शैली में युग-युगों से आहार शुद्धि का विशेष महत्व रहा है। आहार का सम्बन्ध जीवन से जुड़ा है बह किसी भी सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ नहीं है। पढ़िए उदयभान जैन का विशेष आलेख….


भारतीय संस्कृति में शुद्ध खान-पान का विशेष महत्व रहा है। जैन संस्कृति में अहिंसा का विशेष महत्व है। अहिंसा सिद्धान्त के सम्बन्ध में हमारे तीर्थंकरों, आचायों ने विशेष उपदेश व योगदान दिया है और जीवन शैली में युग-युगों से आहार शुद्धि का विशेष महत्व रहा है। आहार का सम्बन्ध जीवन से जुड़ा है बह किसी भी सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ नहीं है। भगवान महावीर ने आत्मा प्रधान मानी और शरीर गौण। अहिंसा की परिक्रमा करने वाली चेतना उसी स्वास्थ्य को, उसी आहार को मूल्य दे सकती है, जिसके कण-कण में आत्मा की सहज स्मृति हो। अहिंसकाहार पद्धति प्रकृति के सिद्धान्तों पर आधारित होने के कारण, अधिक प्रभावशाली वैज्ञानिक, मौलिक व निर्दोष होने के साथ-साथ जैन सिद्धान्तों की रक्षक होती है। खान-पान शुद्धि का संदेश स्पष्ट एवं प्रत्यक्ष रूप में कोरोना काल में देखने में आया, सम्पूर्ण भारत देश उस समय बाजार की बनी बस्तुएं खाने में डरने लगा, भयभीत था।

खानपान शुद्धि की महत्वपूर्ण भूमिका इस कारोना काल में चारों ओर देखने में आयी, गृहणियों ने तरह-तरह के व्यंजन बनाकर यह बता दिया कि घर की बनी वस्तुएं ही शुद्ध होती हैं। अहिंसक आहार को हम इस प्रकार समझ सकते हैं जैसे ‘अ’ अमृतमय, हि हिंसा रहित, स संतुलन, क कल्याणकारी, आ आत्मिक, हा – हज़मेदार, और – रसदार। अहिंसक आहार से लाभ, महत्व गुण प्रकृति ने मानव शरीर का अहिंसकाहार के योग्य बनाया है जिससे बह स्वस्थ्य, सुन्दर सबल व सुखी रह सकता है। अहिंसकाहार सहज, शक्ति शाली, स्वास्थ्यकारी है। इससे मनुष्य जीवन बिशुद्ध रहता है। यह औषधि प्रदाता है। मानवता प्रदान करता है। नई उमंगें, नई तरंगें प्रदान करता है। अहिंसा एक मधुर वार्तालाप बन जाती है।

जैनाचार में आहार का महत्व 

जैनाचारों ने अहिंसक आहार, शुद्ध आहार पर विशेष उपदेश दिये हैं उन्होंने स्पष्ट रूप से अहिंसक आहार ग्रहण किया है। वे 24 घन्टे में एक बार ही जल, भोजन आदि लेते हैं यह आहार पूर्ण शुद्धता से तैयार होता है।परम पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी, देश के आचार्यों, मुनियों एवं आर्यिकाओं ने हमेशा शुद्ध आहार पर जोर दिया उन्होंने खानपान की शुद्धता पर जोर दिया, पूज्य माताजी का तो हमेशा चिंतन आहार शुद्धता पर रहता है। आपको बताना उचित समझता है कि प्रो. नीलधर बरिष्ठ वैज्ञानिक ने परीक्षण के आधार पर बताया कि अहिंसक भोजन, शक्ति, स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त करने में सहायक होता है। प्रो. रिचेट ने प्रायोगिक आधार पर यह प्रमाणित किया कि अहिंसक आहार रक्त-रस सम्बन्धी रोगों को उत्पन होने से रोकता है। यह कटु सत्य है कि अहिंसक आहार ही महत्वपूर्ण आहार है। महानुभाव खानपान शुद्धि सर्वप्रथम अपने आप में ही निहित है। आज भौतिकयादी युग में भारतीय संस्कृति में पश्चिमी संस्कृति का साम्राज्य इस कदर बढ़ गया है कि अब इसको रोकपाना बहुत कठिन समस्या हो गयी है।

खान-पान अशुद्धता का बाताबरण बारों और फैल चुका है। जाने-अनजाने में फास्ट फूड व विदेशी व्यंजनों के स्वादों में पड़ कर देश का बहुत बड़ा भाग खानपान को अशुद्ध, अपबित्र बनाकर मन को भी अशुद्ध करता हुआ घोर पाप का संचय कर रहा है। इस कार्य में हम सभी दोषी है, हमारी ही समाज की महिलाओं में अनदेखी व आलसी वृति, फैशन का बहुत बड़ा योगदान देखा जा रहा है।

आहार में अशुद्धता

जो नारी अपने घर की बेटी-बहू-मां, बहिन के रूप में घर के अन्दर अपने बच्चों से लेकर वृद्ध माता-पिता, सास-ससुर सबके लिए प्रातः काल दूध और नाश्ता उसके साथ ममता-प्रेम और अपनत्व का रस घोलकर सबको परोसती थी आज वही नारी अब रेडीमेड, बाजार का बना हुआ, अशुद्ध में अशुद्ध पिज्जा, बर्गर, डबल रोटी, बिस्किट आदि लेकर बच्चों व पति, भाई, बेटा आदि का टिफिन तैयार करती हैं और स्वयं होटल, क्लब, किटी पार्टियों की ओर दौड़ती है और वहां स्वयं भी इसी प्रकार का अशुद्ध भोजन करती है। अब हम यह कहना चाहते हैं कि देश में भारतीय व जैन संस्कृति को जीवंत रखने के लिए शुद्ध भोजन की परम्परा डालनी होगी अन्यथा देश की मानव शक्ति का विनाश होना निश्चित हो जायेगा।

यदि हम देश में खान-पान को नहीं सुधारेंगे तो देश खोखला होगा। देश का युवा यदि ऐसी मिलावटी, अशुद्ध वस्तुए खायेगा तो उसका दिमाग कमजोर होना स्वाभाविक ही है। अब यहां विशेष रूप से महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि अहिंसक आहार शुद्ध रहे, जिसके लिए सर्वप्रथम नारी जगत और उसके पश्चात् पुरुष जगत को चितन करना होगा, चेतना होगा और भारतीय व जैन संस्कृति को जीवंत करना होगा।

रोक सकती है सरकार

आप और हम सुनते हैं कि हर वस्तुओं में अशुद्धता बढ़ती जा रही है, अधिकांशतः खाद्य सामग्री में मिलावट बढ़ रही है, केन्द्र सरकार हो या राज्यों की सरकार हो उन सब को यह जानकारी है कि खाद्य सामग्री सुरक्षा व मानक प्राधिकरणों के मानक के अनुरूप नहीं है। इस मिलावटी कृत्य को वर्तमान शासन, सरकार ही रोक सकती है। अपने बजट में यह प्रावधान रखे कि देश को शुद्ध खाद्य सामग्री उपलब्ध करायी जायेगी और इसके लिए स्वयं सरकार ध्यान दे और जनता जागरूक हो तभी ये मिलावटी कूल्य रुक सकता है। सरकार जाँच एजेन्सियों को प्रयोगशाला व जाँच कार्य का अमला को बढ़ायें। मिलावट के कारण पदार्थों को पोष्टिकता, प्रकृति, गुण में भी काफी बदलाव आते हैं। प्रायः खाद्य सामग्री में हानिकारक पदाथों की मिलावट की जाती है जो स्वाध्य के लिए बहुत ही हानिकारक होती है। मिलावट के विरुद्ध आवाज उठनी चाहिए। जनता को सतर्क होकर जन-जागरण बलाना चाहिए।

हों ठोस कानून

राज्य सरकार व केन्द्र सरकार मिलावट करने वाले के खिलाफ ठोस कानूनी प्रावधान तय करने चाहिए। सरकारें इस महत्वपूर्ण बिन्दु पर चिन्तन करें, इस कार्य में भ्रष्टाचार को दूर रखे तभी यह अभियान सफल हो सकता है। जिस प्रकार अपने देश की रक्षा के लिए करोड़ों करोड़ बजट का प्रावधान रखा जाता है, ठीक इसी प्रकार मिलावट खोरी को समाप्त करने के लिए देश की युवा पीढ़ी को बचाने, भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए “शुद्ध के लिए बुद्ध” अभियान प्रभावी रूप से चलना चाहिए और जनता को भी स्वार्थ छोड़कर, जागरुक होकर मिलावटी सामग्री व भ्रष्ट लोगों के विरूद्ध आवाज उठाने की आवश्यकता है।

अतः भारतीय व जैन संस्कृति को बचाने के लिए खान-पान शुद्धि की अत्यन्त आवश्यकता है।

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