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बीजारोपण आज फलीभूत हुआ हैः नंदनवन आध्यात्मिक विकास का स्थल उपक्रम है-आचार्यश्री वर्धमान सागरजी


आचार्यश्री वर्धमान सागरजी का संघ सहित धरियावद नगर से विश्व के सबसे छोटे शिखर वाले दिगंबर जैन श्री चंद्रप्रभु जिनालय, नंदनवन में प्रवेश हुआ। समंतभद्र विद्या विहार के विद्यार्थियों ने आचार्यश्री की परिक्रमा लगाकर भव्य मंगल अगवानी की। पढ़िए धरियावद से राजेश पंचोलिया की यह पूरी खबर…


धरियावद। प्रथमाचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज की परंपरा के पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि आचार्यश्री वर्धमान सागरजी महाराज का संघ सहित धरियावद नगर से विश्व के सबसे छोटे 37 शिखर वाले दिगंबर जैन श्री चंद्रप्रभु जिनालय नंदनवन में प्रवेश हुआ। समंतभद्र विद्या विहार के विद्यार्थियों ने गार्ड ऑफ ऑनर के रूप में आचार्यश्री की परिक्रमा लगाकर भव्य मंगल अगवानी की। इस अवसर पर समंतभद्र विद्या विहार के विद्यार्थी सहित हज़ारों समाजजन एवं पंडित हंसमुख शास्त्री ने परिवार सहित आचार्यश्री के चरण प्रक्षालन आरती की।

यह अनादि निधन धर्म है 

इस अवसर पर आयोजित धर्मसभा में आचार्यश्री वर्धमान सागरजी ने देशना में बताया कि जैन धर्म तीर्थंकरों द्वारा दी गई देशना के आधार पर प्रतिपादित धर्म है। यह अनादि निधन धर्म है। श्री विशुद्धमति माताजी ने संलेखना की साधना के लिए इस क्षेत्र का चयन किया था। पंडितजी ने उनके संकेत अनुसार संयम साधना के लिए इस क्षेत्र का निर्माण करवाया।

बीजारोपण आज फलीभूत हुआ है 

वर्षों पूर्व हमने सरसों के दाने डाले थे जो आज फलीभूत होकर उच्च स्तरीय विकास हुआ है। यह हंसमुखजी की चिंतन शक्ति, कुशलता, और कार्य क्षमता का सूचक है। आज वर्षों बाद नंदनवन क्षेत्र प्रवेश पर आनंद की अनुभूति हुई। जो बीजारोपण हमने किया था वह आज फलीभूत हुआ है। नंदनवन देव शास्त्र गुरुओं का स्थल है समाज को आध्यात्मिक लाभ और स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रतिदिन आना चाहिए। आचार्यश्री ने आगे बताया कि आर्यिका विशुद्धमतिजी की समाधि के पूर्व 22 वर्षों पहले इसी स्थल पर हमने कहा था कि माताजी की समाधि के लिए आचार्यश्री शांति सागरजी की परंपरा की 5 पीढ़ी आर्यिका श्री सुपार्श्वमति, श्री विशुद्धमति, हम, आर्यिका शुभमति, श्री पुण्य सागरजी और हमारे शिष्य उपस्थित हैं।

जिनालयों के दर्शनकर नसियाजी में प्रवेश हुआ 

शहर के मध्य में आचार्यश्री शांति सागरजी के शिष्य आचार्य कुंथूसागरजी ने भी संयम समाधि, नसियाजी क्षेत्र में की थी। इनका नंदनवन हिमवन जैसा विकास नहीं हुआ है। समाज को इसमें रुचि लेना चाहिए। इसके पूर्व आचार्यश्री वर्धमान सागरजी, मुनिश्री पुण्य सागरजी सहित सभी साधुओं का धरियावद के सभी जिनालयों के दर्शनकर नसियाजी में प्रवेश हुआ। भगवान श्री आदिनाथ का पंचामृत अभिषेक, शांतिधारा, संघ सानिध्य में संपन्न हुई। उसके पश्चात संघ का विहार नंदनवन के लिए हुआ।

श्रद्धालुओं के नेत्र अश्रुपूर्ण रहे 

संघ से विहार कारण श्रद्धालुओं के नेत्र अश्रुपूर्ण रहे। समाज ने निवास समक्ष आचार्यश्री के चरण प्रक्षालन कर आरती की। नंदनवन में पंडितश्री हंसमुखजी शास्त्री ने अगले कार्यक्रमों की जानकारी देकर बताया कि 27 की शाम को हिमवन में भजन संध्या और संघ का रात्रि विश्राम होगा। आचार्यश्री के आशीर्वाद से नंदनवन तो बन गया है किंतु और तीन वन धरियावद के आसपास बनने है। पांडुक वन, भद्रसाल वन आदि का निर्माण आचार्यश्री के आशीर्वाद बगैर नहीं होगा उसके लिए उन्हें कुछ वर्ष धरियावद ही रुकना होगा। आचार्य संघ का मंगल विहार प्रतापगढ़ मंदसौर की ओर चल रहा हैं।

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