नगर गौरव आर्यिका श्री सृष्टिभूषण माताजी का 32 वर्षों के संयम साधना के बाद प्रथम नगर प्रवेश हुआ। इस अवसर पर उन्होंने आर्यिका श्री विश्वयश मति माताजी एवं क्षुल्लिका आप्त मति माताजी के साथ नगर में प्रवेश किया। धर्म सभा में आर्यिका श्री सृष्टि भूषण माताजी ने अपने प्रवचन में कहा कि गुरु से जीवन की शुरुआत होती है, और गुरु हमें संसार रूपी समुद्र से पार कराते हैं। पढ़िए यह विशेष रिपोर्ट…
मुंगावली। नगर गौरव आर्यिका श्री सृष्टिभूषण माताजी का 32 वर्षों के संयम साधना के बाद प्रथम नगर प्रवेश हुआ। इस अवसर पर उन्होंने आर्यिका श्री विश्वयश मति माताजी एवं क्षुल्लिका आप्त मति माताजी के साथ नगर में प्रवेश किया। धर्म सभा में आर्यिका श्री सृष्टि भूषण माताजी ने अपने प्रवचन में कहा कि गुरु से जीवन की शुरुआत होती है, और गुरु हमें संसार रूपी समुद्र से पार कराते हैं। उन्होंने मुनि और संतों की महिमा को बताते हुए कहा कि मुनि संत डॉक्टर के समान होते हैं, जो जीवन रूपी अस्पताल में हमारी मोह और कर्मों की चिकित्सा करते हैं। माताजी ने बताया कि सभी नगर एक जैसे होते हैं, जन्म नगरी विशेष नहीं होती है। यदि दिल और मन अच्छे हों, तो हर घर और हर नगर एक मंदिर बन जाता है। संत के सामने दुनिया झुकती है, क्योंकि संत आत्म दर्शन और सम्यक दर्शन कराते हैं, वे कभी प्रदर्शन नहीं करते। माताजी ने अशोकनगर के बारे में भी कहा कि “अशोक” शब्द शोक रहित होने का संदेश देता है, और यही संदेश जीवन में सपनों को साकार करने में मदद करता है।
उन्होंने यह भी कहा कि नमस्कार और श्रद्धा करने से चमत्कार होते हैं। इस धर्म सभा में पूज्य माताजी ने टीकमगढ़ के बालक धैर्य के जीवन परिचय की भी प्रशंसा की। बालक धैर्य की अलौकिक प्रतिभा का जिक्र करते हुए माताजी ने कहा कि उसे 200 से अधिक साधु संतों के जीवन परिचय याद हैं, और उसका पुण्य इतना प्रबल है कि वह तीसरी मंजिल से गिरने के बावजूद सुरक्षित रहा।
वात्सल्यमय संस्मरण सुनाए
आर्यिका श्री सृष्टि भूषण माताजी के प्रवचन से पहले उनकी संघस्थ शिष्या, आर्यिका श्री विश्वयश मति माताजी ने गुरु माता के साथ अपने वात्सल्यमय संस्मरण सुनाए, जिससे सभी श्रद्धालु अभिभूत हो गए। इसके बाद मुनि श्री निरापद सागर जी महाराज और मुनि श्री निश्चल सागर जी महाराज ने भी प्रवचन दिए। नगर गौरव मुनि श्री सौम्य सागर जी ने अपने प्रवचन में कहा कि साधु अलग-अलग परंपरा के होते हैं, लेकिन उनके नेगेटिव (संस्कार) एक जैसे होते हैं, अर्थात वे सब एक समान होते हैं। मुनि श्री ने उदाहरण देते हुए बताया कि डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर में मौन रहता है, जबकि नर्स मरीज की सेवा करती है, और यही कार्य संतों का होता है—वे समाज के लिए सेवा करते हैं।
आहारचर्या हुई संपन्न
आर्यिका श्री सृष्टि भूषण माताजी का नगर प्रवेश कुंदन वाटिका से दोपहर को प्रारंभ हुआ। इससे पूर्व, प्रातःकाल कुंदन वाटिका में माताजी और उनके संघ की आहारचर्या संपन्न हुई। भारत के विभिन्न राज्यों से माताजी के हजारों भक्तों ने इस आयोजन में भाग लिया। विशेष रूप से, टीकमगढ़ नगर से सैकड़ों भक्तों का जुलूस शोभा यात्रा के रूप में उपस्थित हुआ, जिसमें महिलाएं और पुरुष दोनों शामिल थे। सभी भक्त हाथों में माताजी के उपदेश वचन और नगर गौरव के चित्र लेकर चल रहे थे। शोभायात्रा का समापन स्थानीय मंदिर में हुआ, जहां मुनि संघ के सानिध्य में धर्म सभा का आयोजन हुआ। यह उल्लेखनीय है कि मुनि श्री सौम्य सागर जी और आर्यिका श्री सृष्टि भूषण माताजी नगर मुंगावली के गौरव हैं। स्थानीय दिगंबर जैन समाज ने बाहर से आए हुए अतिथियों का नगर की परंपरा अनुसार स्वागत किया।
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