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णमोकार मंत्र में ताकत नहीं है, मेरे णमोकार मंत्र में ताकत है- मुनि श्री सुधासागर जी महाराज


प्रतिक्षण और प्रति समय कुछ नया जीने का कला हमारे अंदर होनी चाहिए; बासी खाना हमें पसंद नहीं होना चाहिए। जो लोग किस्मत के भरोसे जिंदगी जीते हैं, उन्हें मोक्षमार्ग नहीं मिलता, जैसे स्वर्गीय देवता और भोगभूमि के जीव। हमें इस तरह चलना चाहिए कि हर कदम पर रास्ता बन जाए; लीक पर चलना हमें पसंद नहीं है। यह बात मुनि श्री सुधासागर महाराज ने धर्मसभा में कही। पढ़िए राजीव सिंघाई की विशेष रिपोर्ट…


सागर। प्रतिक्षण और प्रति समय कुछ नया जीने का कला हमारे अंदर होनी चाहिए; बासी खाना हमें पसंद नहीं होना चाहिए। जो लोग किस्मत के भरोसे जिंदगी जीते हैं, उन्हें मोक्षमार्ग नहीं मिलता, जैसे स्वर्गीय देवता और भोगभूमि के जीव। हमें इस तरह चलना चाहिए कि हर कदम पर रास्ता बन जाए; लीक पर चलना हमें पसंद नहीं है। यह बात मुनि श्री सुधासागर महाराज ने धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा कि किस्मत अक्सर अपराधियों की होती है, जबकि निरपराधियों की कोई किस्मत नहीं होती। जैसे-जैसे व्यक्ति निरपराधी होता है, उसकी किस्मत बनना बंद होती है, और जैसे-जैसे वह अपराधी होता है, उसकी किस्मत बनना चालू रहती है। जब भी किस्मत लिखी जाती है, वह अपराध का प्रतीक होती है-चाहे किस्मत में पुण्य लिखा हो या पाप। किस्मत हमारे अतीत के दुष्परिणाम का फल है। पुण्य का उदय भी हमें सजा के रूप में देखना चाहिए। मिथ्यादृष्टि पाप से नहीं, बल्कि पाप के फल से भागती है, और पुण्य के फल से भी भागना अज्ञानी का लक्षण है। जो कहता है, “मैं पाप करूंगा लेकिन उसके फल को भोगने को तैयार रहूँगा,” मैं उसे सजा नहीं, बल्कि प्रायश्चित्त मानता हूँ। मुझे सजा मिलनी चाहिए, क्योंकि मैंने खोटा कर्म किया है।

 अनुभव और आगम एक-दूसरे के विपरीत

उन्होंने कहा कि आनंद कैसे आता है अशुभ कर्मों के उदय में? जिनवाणी मां कहती हैं कि तुम अमर हो, लेकिन अनुभव कहता है कि सांप काटेगा तो तुम मर जाओगे। अनुभव और आगम एक-दूसरे के विपरीत हैं। धर्मात्मा कहता है, “यह मेरी चुनौती है, मैं धर्म से कभी अलग नहीं होऊँगा।” मैं हमेशा कहता हूँ कि भगवान में ताकत नहीं है, लेकिन मेरे भगवान में बहुत ताकत है। गुरु में भी ताकत नहीं, लेकिन मेरे गुरु में ताकत है। णमोकार मंत्र में ताकत नहीं, लेकिन मेरे णमोकार मंत्र में ताकत है। इसी दम पर महारानी चेलना ने अपने पति को सम्यकदृष्टि और अहिंसक बना दिया। महानुभाव, यदि तुम्हें गृहस्थी में फंसना पड़े, तो शादी को जेल जाने के समान समझो। अगर शादी करनी पड़े, तो कहो, “मैं जेल जाऊँगा, लौटते समय 500 मुनिराजों को ले आऊँगा,” जैसे जम्बुकुमार। बेटियों, तुम भली आर्यिका बना पाओ या नहीं, जो तुम्हारी गोदी में आए, उसे जरूर महाराज और आर्यिका बना देना। यही तुम्हारा प्रायश्चित्त होगा। तुम साधु बन पाओ या न पाओ, तुम्हारी गृहस्थी में जो फल लगे, उन्हें दो-दो बना देना। यदि तुम्हें जेल जाना पड़े, तो वहां रहकर तुम जेली मत बन जाना। जेल में रहकर सारे जेलियों को अहिंसक बना देना। इस तरह, तुम्हारा जो अपराध था, वह सब माफ हो जाएगा, क्योंकि तुमने कितने अपराधियों को निरपराधी बना दिया है।

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