अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज के 9वें दीक्षा दिवस पर श्रीफल जैन न्यूज में उन्हीं की कलम से उनकी जीवनगाथा प्रस्तुत की जा रही है। पाठकों को इस लेखनमाला की एक कड़ी हर रोज पढ़ने को मिलेगी, आज पढ़िए इसकी सातवीं कड़ी….
7. संघ के प्रति नकारात्मकता
10 फरवरी, 1998 को बिजौलिया क्षेत्र के पंचकल्याणक में दोनों भैया(राजू और विजय ) की दीक्षा के बाद संघ ने बिजौलिया शहर की ओर विहार किया और संघ कुछ दिन वहीं पर रुका। पंचकल्याणक में आर्यिका विशुद्ध मति माता जी (एटा) का भी सानिध्य था। बिजौलिया शहर में पहुंचने के बाद मैं आहारचर्या में आचार्य श्री के साथ जाने लगा। मेरा उद्देश्य यह देखना था कि आचार्य श्री को दवाई कैसे देते हैं, आहार कैसे होता है। संघ की दीदियां बारी-बारी से से आचार्य श्री के साथ आहार में जाती थीं। उनके साथ मैं भी चला जाता था।
एक दिन मैंने आहार के कपड़े वहीं सुखा दिए, जहां दीदियां सुखाती थीं। मुझे नही पता था कि कपड़े कहां सुखाने हैं। उसे लेकर संघ में दीदियों में बहुत बातें हुईं। वे सभी मिलकर मुझ पर कटाक्ष कर रही थीं। उस दिन मेरा मन बहुत खराब हुआ। यह सब इसलिए भी हुआ कि उस समय दोनों भैया की दीक्षा के बाद कोई और भैया संघ में नहीं थे, जो मुझे यह बताए कि क्या करना और कैसे करना है। यह बात आर्यिका वर्धित मति माता जी को पता चली तो उन्होंने सभी दीदियों को बहुत डांटा और आचार्य श्री तक जब यह बात पहुंची तो वह भी बहुत नाराज हुए। आचार्य श्री और माता जी मुझे बहुत समझाया कि यह सब होता रहता है। इन्हें ही किसी को अच्छे से रखना नहीं आता। तुम अब दीदियों से दूर ही रहा करो। कोई बात हो तो या कुछ चाहिए तो उन्हें या माता जी को कह देना। बहरहाल उस दिन मुझे अच्छा नहीं लगा और न ही मैंने अच्छे से भोजन किया।
मेरे मन में आया कि यह सब क्या हो रहा है संघ में। यह सब होता है तो फिर घर और संघ में क्या अंतर है। इस प्रकार की कई बातें मन में आ रही थीं। इस कारण दिमाग में बहुत सी नकारात्मक बातें आ रही थीं। इसी बात की लेकर आचार्य श्री और माता जी ने दीदियों से कहा कि यह सब क्या है। दीदियों ने मुझे कहा कि हमने तो इसलिए कहा था कि कहीं तुम कपड़े बदलो और अचानक से कोई दीदी आ जाए तो ठीक नहीं रहता। हो सकता है कि हमारे कहने का तरीका गलत हो। मैं जब उस दिन उदास था। तब आचार्य श्री और माताजी ने बहुत समझाया। तब जाकर दिमाग से नकारात्मक बातें बाहर निकलीं।
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