अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज के 9वें दीक्षा दिवस पर श्रीफल जैन न्यूज में उन्हीं की कलम से उनकी जीवनगाथा प्रस्तुत की जा रही है। पाठकों को इस लेखनमाला की एक कड़ी हर रोज पढ़ने को मिलेगी, आज पढ़िए इसकी दूसरी कड़ी….
2. यात्रा
जनवरी 1998 की बात है। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के संघ में विजय और राजू भाई दोनों ब्रह्मचारी थे। उनकी 10 फरवरी, 1998 में दीक्षा होनी थी। उनमें से विजय भैया मेरे मामा के लड़के थे। उनकी गोद भराई हमारे गांव पिपलगोन में हुई। उसी दिन मैं उनके साथ उनकी दीक्षा में जाने के लिए उनके साथ निकल गया। उस समय मेरी उम्र करीब साढ़े 17 साल की रही होगी। हम पिपलगोन से निकल कर सनावद पहुंचे, जो दोनों भैया का जन्मस्थान भी था। वहां 8 -10 दिन दीक्षा के उपलक्ष्य में धार्मिक कार्यक्रम हुए, उसके बाद हम वहां से इंदौर आए।
यहीं से दीक्षा स्थल बिजौलिया (राजस्थान) जाना था। यहां दोनों भैया के मन में न जाने क्या आया, पता नही लेकिन इन्होंने बस का समय गलत बता दिया। जब मैं इंदौर के बस स्टैंड पहुंचा तो वहां से कोटा की बस निकल चुकी थी। पता किया कि धोती-लुपट्टे में दो लोग अभी एक बस में निकल गए हैं। मैंने भी मन सोच लिया कि अब तो जाना ही है तो मैं दूसरी बस में कोटा के लिए निकल गया। अगले दिन सुबह-सुबह कोटा बस स्टैंड पर उतर कर वहां से आगे बिजौलिया की बस लेने टिकिट काउंटर पर पहुंचा तो विजय और राजू भैया भी टिकिट लेने लाइन में लगे थे। मैंने पूछा कि मुझे क्यों गलत समय बताया तो कुछ असंतुष्ट सा जवाब मिला। फिर भी हम सब एक साथ कोटा से बिजौलिया के लिए निकल गए। सुबह-सुबह दोनों भैया जी के साथ बिजौलिया क्षेत्र पर आचार्य श्री के दर्शन किए। मन में बहुत खुशी थी कि आज इतने बड़े आचार्य श्री के दर्शन हुए हैं। उनका प्यार, वात्सल्य मिला तो मन और भी आनंदित हुआ। वहीं पर आचार्य श्री की संघस्थ आर्यिका श्री वर्धित मति माता जी के दर्शन हुए।
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