सारांश
मुरैना में माताजी स्वस्तिभूषण की धर्मसभा का आयोजन हुआ। सोमवार को माताजी ने राग और वीतराग पर अपनी व्याख्या की। मुरैना से ज्यादा जानकारी के लिए पढ़िए मनोज नायक की रिपोर्ट….
मुरेना में माताजी ने कहा कि – “ राग छूट गया तो वीतराग हो गया। मान लो आपको किसी से राग है और आपकी उससे लड़ाई हो जाये । उससे राग छूट जाये तो क्या आप वीतराग हो गए ? नहीं, राग और द्वेष दोनों के छूटने का नाम ही वीतराग है।“ गणिनी आर्यिका श्री स्वस्तिभूषण माताजी बड़े जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित कर रहीं थी।
आज की धर्मसभा में पूज्य गुरुमां गणिनी आर्यिका माताजी ने राग और वीतराग के संदर्भ में सारगर्वित उदबोधन देते हुए कहा कि “वैराग्य में रागद्वेष को छोड़ने का प्रयास, पुरुषार्थ चल रहा है, पर वीतराग में पुरुषार्थ फलित ही रहा है । चौथे गुण स्थान में इसके बीज पड़ने हैं । पांचवे गुणस्थान में अणु रूप में शुरू होता है ।
चौथे में भावना में आया, पांचवे में गुणस्थान में आचरण का प्रारम्भ है । छः गुणस्थान पुरुषार्थ की पराकाष्ठा है और सातवें में इसकी स्थिरिता है । तेरहवे गुणस्थान में यह पूर्णरूप से प्रगट अवस्था है, जहां वापिस नहीं आता। आठ कर्म में वीतराग प्रगट मोहनीय के उपसम सय सयोपशम से होती है ।
मोह काम जोड़ने का, दूसरे से सम्बंध स्थापित करने का है । जब ये कम होगा तो इच्छाएं कम होगीं और इससे सम्बंधित जो भी चार कषाय कम होंगीं, नों कषाय कम होंगीं । जब इससे सम्बन्ध न हो तब तक आप हँस नहीं सकते, रो नहीं सकते, प्रेम नहीं कर सकते ।
सम्बन्ध सम में होता है, पर यहां विषय में बंध है इसलिए दुख है, सम में हो जाये तो सुख हो जाता है।“
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