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दस दिनों से मुनिश्री के मुखारविंद से धर्म गंगाः जो अपनी आत्मा से दूर ले जाने का काम करें उसे पुद्गल कहते हैं-मुनिश्री पूज्य सागरजी महाराज


अंतर्मुखी मुनिश्री पूज्य सागरजी महाराज के सानिध्य में प्रतिदिन आदिनाथ पुराण का वाचन हो रहा है। मुनिश्री पूज्य सागरजी महाराज ने पुद्गल विषय पर अपना ध्यान आकर्षित करते हुवे कहा की जो हमें दिखाई रहा है वो पुद्गल है। जिसका हम अहसास कर पाए वो पुद्गल कहलाता है। पढ़िए सनावद से सन्मति जैन काका की यह पूरी खबर…


सनावद। नगर में विराजमान मुनिश्री पूज्य सागरजी महाराज के द्वारा प्रतिदिन अलग-अलग विषयों पर धर्म की चर्चा की जा रही है। आज कीे सभा का शुभारंभ भगवान महावीर के चित्र के समकक्ष चेतना गोधा, मीना बाकलीवाल, निर्मला पाटोदी के द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया। मंगला चरण संगीता पाटोदी के द्वारा किया गया।

पूज्य सागरजी महाराज द्वारा पुद्गल का वर्णन

इस अवसर पर मुनिश्री पूज्य सागरजी महाराज ने पुद्गल विषय पर अपना ध्यान आकर्षित करते हुवे कहा की जो हमें दिखाई दे रहा है वो पुद्गल है। जिसका हम अहसास कर पाए वो पुद्गल कहलाता है। पुद्गल के बीस गुण होते है। जो दिखाई दे रहा है, जो सुनाई दे रहा है, अहसास हों रहा है, वो सब पुद्गल का पर्याय है और ये सब यहीं अशुभ कर्मों के बंध का कारण है। जो अपनी आत्मा से दूर ले जाने का काम करें उसे पुद्गल कहते है।

पुद्गल के भेद

पुद्गल शब्द का अर्थ है रूप, रस, गंध, पूर्ण सारी चारों गुण पाये जाते हैं। पुद्गल के दो भेद हैं परमाणु और स्कंध। पुद्गल में स्निग्ध और रूक्ष गुण पाये जाने से तथा परस्पर आकर्षण शक्ति के कारण जुड़ने से स्कंध बनते हैं। पुद्गल शब्द का अर्थ पूरण और गलन हैं। अर्थात जो परस्पर परमाणुओं के संयोग और वियोग से बनता हैं, पुद्गल है कहलाता है। जिस हृदय में रूप, रस, गंध, पूर्ण सारी चारों गुण पाये जाते हैं। पुद्गल द्रव्य कहलाता है। पुद्गल द्रव्य मूर्तिक हैं। पुद्गल के दो भेद हैं-परमाणु और स्कंध। विज्ञान के अनुसार वायु, पानी, अग्नि, पृथ्वि, मन सभी पुद्गल हैं।

पाटनी परिवार को आहारचर्या का सौभाग्य 

आज मुनिश्री पूज्य सागरजी महाराज की आहारचर्या का सौभाग्य लवीश पाटनी परिवार को प्राप्त हुआ। मुनिश्री पूज्य सागरजी महाराज की वाणी का रस पान करने के लिए इस अवसर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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