मुनिश्री सुधासागर जी महाराज अपने प्रवचनों में जैन समाज को हर दिन जीवन मूल्यों, कर्तव्यों और धर्म के प्रति सद्भावना रखने के संदेष दिए जा रहे हैं। सागर में विराचित मुनिश्री यहां हर रोज प्रवचनों के माध्यम से अपनी बात कह रहे हैं। इसका लाभ श्रद्धालुजन बहुत खूब ले रहे हैं। मुनिश्री ने रविवार को श्रावकों को समयसार का महत्व समझाया। सागर से पढ़िए राजीव सिंघई यह खबर…
सागर। सबसे पहले व्यक्ति को अपना स्वयं का मूल्यांकन करना चाहिए कि मैं कितना मूल्यवान हूं। एक नीति है कि जो व्यक्ति दुनिया की नजरों में गिर जाए उसको उठाया जा सकता है लेकिन, जो व्यक्ति स्वयं की नजरों में गिर जाए वो कभी उठ नहीं सकता। ऐसा कोई कार्य नहीं करना है, जिससे तुम खुद अपनी नजरों में गिर जाओ, तुम खुद किसी से हाथ मिलाने या किसी के साथ बैठने लायक न रहो। मैं अब इस दुनिया में जीने लायक नहीं हूं, ऐसा परिणाम जिस कार्य को करने के बाद आए। सबसे पहले अपनी जिंदगी को ऐसा कार्य करने से बचाना। सोच लेना तुम अपनी जिंदगी में जो करने जा रहे हो, क्या वो करने के बाद तुम किसी के साथ आंख मिला सकोगे? मत करो धर्म से मोह लेकिन, स्वयं की जिंदगी से तो मोह करो। यह तुम तभी कर पाओगे जब तुम समझोगे कि तुम्हारी जिंदगी तुम्हारी दृष्टि में कितनी मूल्यवान है, इसी का नाम समयसार है।
ज्ञान गुण ज्यादा ताकतवर है
पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल की शक्ति सबको एक तरफ रख दिया जाए और जीव द्रव्य की अकेले ज्ञान गुण को एक तरफ रख दिया तो ज्ञान गुण उससे भी ज्यादा ताकतवर है। अकेले एक गुण की बात कर रहे, अभी दर्शन गुण बाकी है। ज्ञान गुण ही हमारा जब प्रकट होता है तो ये सारा तीन लोक एक तारे के समान टिमटिमाता है। यानी ज्ञान इतना बड़ा है कि ऐसे तीन लोक अनंत आ जाए तो भी वह जानने में शक्ति रखता है, ऐसा अनमोल है मेरा ज्ञान, एक गुण अनमोल है।
एक हिम्मत ही है- मैं अनमोल हूं
समयसार पढ़ने का सबसे बड़ा फायदा है कि हमें अपनी खुद की जिंदगी अनमोल लगने लग जाती है। तुम अपनी संपदा का मूल्यांकन करके कहते हो कि हम लखपति, करोड़पति है और हमने समयसार पढ़ने के बाद जाना कि हम त्रिलोकपति हैं तभी तो समयसार पढ़ने वाला आध्यात्मी सब कुछ मिटा देता है लेकिन आत्मा को नहीं मिटने देता। मुनिराज कैसे उखाड़ देते है केशलोच, कैसे रह जाते हैं गर्मी के दिनों में एक टाइम भोजन पानी में, किस हिम्मत के बल पर अंतराय कर देते हैं, कुछ नही एक ही मात्र हिम्मत है- मैं अनमोल हूं। मैं दो रोटियों में अपनी आत्मा नहीं बेचूंगा।
सावधानी जरूरी है…
तुम्हारे घर में यदि चोर घुस जाए और बहुत सारे लोग हो तो तुम अच्छे से नींद लेना और हो सके तो खर्राटे लेना चालू कर देना, धन तो चला जाएगा लेकिन, जिंदगी बच जाएगी और यदि चाबी मांगने तुम्हें जगा ले तो तुरंत उसको चाबी बता देना, तू जिसके लिए आया है जा नहीं तो वह मारेगा, पीटेगा प्राण भी ले सकता है, वहां कोई तुम्हारी सुनने वाला नहीं है, तुम अकेले हो परिवार हो और वह खूंखार है।
तुम्हारा पूजन है शुद्ध समयसार
तुम्हारा जो पूजन है, शुद्ध समयसार है, बल्कि समयसार पढ़ना थ्योरी है ओर प्रैक्टिकल है। कहने में आ रहा है कि मैं भगवान के दर्शन कर रहा हूं सत्य ये है कि मैं अपनी आत्मा का दर्शन कर रहा हूं। आर्ष परंपरा वह दर्पण है, जिसमें तुम्हारे चेहरे के दाग दिखते हैं, जिनको अपने दाग बुरे लगते है वह दर्पण से दूर हट जाए, दर्पण तो दाग दिखायेगा, साधु वही है जो तुम्हारे चेहरे के दाग दिखायेगा। जब कोई तुम्हारे दोष निकाले तो तुम्हे ऐसा लगे कि मेरे अहोभाग्य है कि कम से कम इसने मेरी बुराई तो बताई ये ज्ञानी का लक्षण है, जाओ एक न एक दिन तुम्हारे दोष निकल जाएंगे और यदि लगे कि तुमने मेरे दोष क्यों निकाले, समझना अभी तुम्हारा संसार में बहुत भटकना है, यही तुम्हारे विनाश का कारण है।
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