आचार्य श्री वर्धमान सागरजी महाराज ने रविवार की प्रातः बेला में पूज्य आचार्य श्री ने अपने हाथों से केश का लोचन किया। जैन समाज की महिलाओं ने वैराग्य पूर्ण भजन गाकर केशलोचन की तपस्या की। अनुमोदना की। इंदौर से पढ़िए राजेश पचोलिया की खबर…
इंदौर। आचार्य श्री वर्धमान सागरजी महाराज का प्रवास धर्म नगरी पारसोला में चल रहा है। जहां धर्म प्रभावना हो रही है। रविवार की प्रातः बेला में पूज्य आचार्य श्री ने अपने हाथों से केशो का लोचन किया। केशलोच एक साधना है। एक तपस्या है। स्वयं के हाथों से अपने बालों को घास फूस की तरह उखाड़ना सहज नहीं होता। यह एक महान तपस्वी एवं दिगंबर संत ही कर सकता है। मुनि स्वावलंबी होते हैं और उनकी चर्या सिंह के समान होती है। इसलिए बाल हटाने के लिए किसी का सहारा नहीं लेते। केशलोचन परिषह सहन करने के लिए भी ज़रूरी होता है। उस दिन मुनि निराहार रहकर उपवास रखते हैं।
केशलोच दिगंबर साधु का मूल गुण
केश लोचन के बारे में संघ के मुनि श्री हतेंद्र सागर जी ने चर्चा में बताया कि प्रत्येक दिगंबर साधु को 2 माह से 4 माह की अवधि के भीतर के केशलोचन करना अनिवार्य है। केशलोच दिगंबर साधु का मूल गुण है।
केशलोचन के माध्यम से शरीर से राग और मोह दूर होता है।
जैन साधु अहिंसा धर्म के महाव्रती होते हैं
केश लोचन की प्रक्रिया में मुनिश्री ने बताया कि केश लोचन करते समय केवल राख का उपयोग किया जाता है। जैन धर्म अहिंसा प्रधान धर्म है। बालों का लोचन अगर नहीं किए जाएं तो उसमें छोटे-छोटे जीवों की उत्पत्ति होने की संभावना होती है। जैन साधु अहिंसा धर्म के महाव्रती होते हैं। बाल हाथों से इसलिए उखाड़े जाते हैं कि बालों को कटिंग करने के लिए सेविंग कराने के लिए अन्य द्रव्य की आवश्यकता होती है। जैन साधु अपरिग्रही होते हैं। इसलिए जैन साधु अपने हाथ से केशलोचन करते हैं।
केश लोच से शरीर से ममत्व दूर होता है
बाल सौंदर्य का प्रतीक हैं। इससे राग और आकर्षण होता है। केश लोच से शरीर से ममत्व दूर होता है। केश लोचन के समय तप,संयम,धैर्य के साथ धर्म की प्रभावना होती है। केश लोचन देखकर अनुमोदना करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। कर्मों की निर्जरा होती है। इस अवसर सभी साधु उपस्थित रहे। इस अवसर पर अनेक महिलाओं ने वैराग्य पूर्ण भजन गाकर केशलोचन की तपस्या की। अनुमोदना की। राजस्थान के अनेक नगरों से आचार्यश्री को अपने नगर में आगमन करने भक्तगण आकर श्रीफल भेंट कर रहे हैं।
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