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44 वर्ष से दिगम्बरत्वधारी निर्यापक मुनि समयसागरजी बनेंगे आचार्यश्री : शरद पूर्णिमा को ही जन्मे हैं श्रीमंती के लाल शांतिनाथ


संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के समाधिस्थ होने के बाद दिगम्बर जैन जगत को नवीन आचार्य के रूप में मुनिश्री समयसागरजी महाराज का मिलना तय है। 27 अक्टूबर 1958 शरद पूर्णिमा को जन्मे श्री शांतिनाथ अष्टगे की जन्मभूमि सदलगा, कर्नाटक है। 8 मार्च 1980 को सिद्धभेत्र द्रोणगिरिजी में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आयार्यश्री विद्यासागरजी महाराज से दीक्षित प्रथम शिष्य मुनिश्री समयसागरजी महाराज विगत 44 वर्ष से दिगम्बरत्व की साधना में तल्लीन हैं। पढ़िए राजेन्द्र जैन महावीर की विशेष रिपोर्ट…


सनावद। संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के समाधिस्थ होने के बाद दिगम्बर जैन जगत को नवीन आचार्य के रूप में मुनिश्री समयसागरजी महाराज का मिलना तय है। 27 अक्टूबर 1958 शरद पूर्णिमा को जन्मे श्री शांतिनाथ अष्टगे की जन्मभूमि सदलगा, कर्नाटक है। 8 मार्च 1980 को सिद्धभेत्र द्रोणगिरिजी में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आयार्यश्री विद्यासागरजी महाराज से दीक्षित प्रथम शिष्य मुनिश्री समयसागरजी महाराज विगत 44 वर्ष से दिगम्बरत्व की साधना में तल्लीन हैं। जो भी उन्हें जानता है, वह यह जानता है कि निरंतर अपने आप में रमण करने वाले, शास्त्र अध्ययन करने वाले मुनिश्री समयसागर जी हैं, जिनमें आमजनों को आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज दिखाई देते हैं।

दिगम्बर धर्म के ध्वजाधारी

श्रीमंती माता व श्री मल्लप्पा अष्टमें के पुत्र-पुत्रियों में सबसे छोटे पुत्र शांतिनाथ देश के सबसे बड़े संघ की बागडोर संभालकर दिगम्बरत्व को नेतृत्च प्रदान करेंगे। उस मां के सौभाग्य के कल्पना ही की जा सकती है, जिसने छह बच्चे (चार पुत्र, दो पुत्री) को जन्म दिया। वे सभी दिगम्बर धर्म के ध्वजाधारी बने हैं। सर्वप्रथम आचार्यश्री विद्यासागरजी (जन्म नाम विद्याधर), मुनिश्री योगसागरजी (जन्म नाम अनंतनाथ), मुनिश्री समयसागरजी (जन्म नाम शांतिनाथ), एक मात्र घर को संभालने वाले श्री महावीरप्रसाद का मन भी घर में कैसे लगता, वे भी मुनिश्री उत्कृष्टसागरजी के रूप में दीक्षित हो गए। इतना ही नहीं श्री मल्लप्पाजी व श्रीमंतीजी ने भी मुनिश्री मल्लिसागरजी व आर्यिका समयमति माताजी के रूप में दीक्षा लेकर समाधि को धारण किया।

मराठी में हुई लौकिक शिक्षा

निर्यापक श्रमण समयसागरजी महाराज ने लौकिक शिक्षा हाईस्कूल तक मराठी माध्यम में पूर्ण की है। आप 2 मई 1975 से आचार्यश्री के संघ में ब्रह्मचर्य लेकर सम्मिलित हुए। फिर क्षुल्लक, ऐलक बनकर पांच वर्षों तक आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज से अध्ययन कर उनके प्रथम शिष्य होने का गौरव प्राप्त किया। उनके चरण पथ अनुगामी मुनिश्री समय सागरजी महाराज भी मीठा, नमक, दही, फल, मिठाई आदि के त्यागी हैं। निर्णायक मुनिश्री समयसागरजी महाराज ज्ञान-ध्यान में लग्न हैं। उनमें अध्यात्म के प्रति जबरदस्त जागरूकता है। हमेशा अंतरंग में रहकर धर्मसाधना करना उनका लक्ष्य रहा है। वर्ष 2018 में उन्हें प्रथम निर्यापक श्रमण घोषित किया गया था।

संपूर्ण संघ पहुंच रहा है कुंडलपुर

आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के द्वारा 131 मुनिदीक्षा, 172 आर्यिका दीक्षा, 22 ऐलक दीक्षा, 90 क्षुल्लक, क्षुल्लिका दीक्षा के साथ लगभग चार सौ से अधिक दीक्षाएं दी गईं। अनेक भैया-दीदी ब्रह्मचर्य अवस्था में हैं व हजारी प्रतिमाधारी हैं। आचार्यश्री के रूप में पूज्य समयसागरजी महाराज 16 अप्रैल 2024, मंगलवार को दिगम्बर जैन तीर्थ कुण्डलपुर, म.प्र. में सर्व संघ की उपस्थिति में पद ग्रहण करेंगे। संपूर्ण संघ उनके एक इशारे पर कुण्डलपुर पहुंच रहा है। यह आचार्यश्री के संघ की अभूतपूर्व विशेषता है। जैन शासन में आचार्य पद की महत्ता 28 मूलगुगों के साथ 36 मूलगुणों पर आधारित है। 36 मूलगुणों के साथ आचार्य पद नेतृत्व का प्रतीक है।

करेंगे जिन शासन को गौरवान्वित

वर्ष 2024 बहुत ही महत्वपूर्ण वर्ष है, यह वर्ष अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी का 2550वां निर्वाण वर्ष है। चारित्र चक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागरजी महाराज का आचार्य पदारोहण शताब्दी वर्ष भी है। जैन समाज ने इस वर्ष बहुत खोया है फिर भी कालचक्र की गति तो गतिमान है। आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के उत्तराधिकारी के रूप में उन्हीं के प्रथम शिष्य पूज्य समयसागरजी महाराज के प्रति हम सभी बहुमान व्यक्त करते हुए कामना करते हैं कि दिगम्बरत्व की ध्वजा की आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने जितना ऊंचा उठाया है, उसी अनुरूप निर्यापक श्रमण, समयसागरजी महाराज एक श्रेष्ठ आचार्य के रूप में प्रतिष्ठापित होकर जैन संस्कृति के उन्नायक आचार्य होकर अनेकों जीवों के कल्याण का निमित्त बनकर जैन शासन को गौरवान्वित करेंगे।

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