सुप्रसिद्ध सिद्धक्षेत्र कुंडलपुर में मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज ने बतलाया एक समझदार बालक हमारे पास आकर एक प्रश्न पूछता है महाराज दूध शाकाहारी है या मांसाहारी? हमने कहा आयुर्वेद आदि वेदों में मांस को आहार नहीं कहा है । मांस का भक्षण किया जाता है । विस्तार से पढ़िए जय कुमार जलज हटा और राजेश रागी बकस्वाहा की रिपोर्ट
सुप्रसिद्ध सिद्धक्षेत्र कुंडलपुर में मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज ने कहा मांस को आहार मानना गलत है । शाक को ही आहार की संज्ञा प्राप्त है । दूसरा प्रश्न हमने उस बालक से पूछा कि ऐसी जिज्ञासा आखिर आई कहां से ? तो उसने बताया कि वह कृषि विज्ञान का छात्र है और उसके शिक्षक ने उसे बताया कि दुग्ध का निर्माण रक्त से होता है। चूकि रक्त मांस है और इसलिए दुग्ध भी मांस है ।
जब हमारे सामने उसने यह बतलाया तो बड़ा आश्चर्य लगा कि आज क्या सिखाया पढ़ाया जा रहा है । ऐसी शिक्षा भारतीय सनातन संस्कृति को नष्ट करने वाली है । भारतीय संस्कृति में गौ को माता कहा जाता है। उसे पूजन व आदर की दृष्टि से देखा वह माना जाता है । उससे प्राप्त पदार्थ अमृत्तुल्य माने जाते हैं । बहुमूल्य माने जाते हैं और आज कुछ नूतन विज्ञान के जानकार उस अमृत्तुल्य दुग्ध को विषतुल्य मांस( रक्त )घोषित करना चाहते है । यह उनकी महा अज्ञानता है और इसका प्रचार प्रसार वे इस अज्ञान को फैलाने में रात दिन लगे रहते हैं । हमारा बस उन नूतन वैज्ञानिकों से इतना सा कहना है कि घी का निर्माण दुग्ध से होता है । दुग्ध से घृत निर्माण की एक प्रक्रिया है ।दूध से दही ,दही से नवनीत ,नवनीत से घृत। यह पूरी प्रक्रिया स्पष्ट रूप से देखी जानी जाती है। आप हमें दूध दें और हम इस प्रक्रिया के द्वारा आपको घृत बनाकर दिखला सकते हैं । परंतु दुनिया में ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है जिससे रक्त से दुग्ध का निर्माण हो सके ।अगर आपके पास है तो दिखलाये । यह त्रिकाल असंभव है । जिस प्रकार आम्र वृक्ष पर बबूल नहीं आम ही आता है । उसी प्रकार दुग्ध से तो घृत की उत्पत्ति होती है। परंतु रक्त से दुग्ध की उत्पत्ति त्रिकाल असंभव है ।ऐसी भ्रामक जानकारी का प्रचार प्रसार क्यों किया जा रहा है ।इसके पीछे उनका उद्देश्य क्या है ।यह स्पष्ट समझना होगा ।आयुर्वेद आदि ग्रंथों में दुग्ध का विशेष महत्व बताकर उसे संपूर्ण आहार कहा है। भारतीय सनातन विज्ञान में कृषि विज्ञान और आहार विज्ञान एक महत्वपूर्ण विषय है ।कई लोगों का यह भी कहना है कि यह दुग्ध गाय के बच्चे को ना देकर उसका उपयोग करना यह अन्याय है ।
उन्हें कृषि विज्ञान का एवं आहार विज्ञान का अधूरा ज्ञान है। कृषक पशुपालक को राजा के समान कहा है ।जिस प्रकार राजा अपनी प्रजा का हित चाहता है उसी प्रकार वह गोपालक भी हमारी गायों का हित चाहता है। अगर पूरा दूध गाय के बच्चे को पिला देगा तो वह बच्चा मर भी सकता है । अत: वह कुशलता के साथ अपना कार्य करता है ।
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