मुंबई में आयोजित जैन समाज की एतिहासिक आक्रोश रैली में लाखों की संख्या में लोग आए । लोगों की संख्या को देखकर साधु-संतों के चेहरे पर धर्म रक्षार्थ आए लोगों को देखकर सन्तुष्टि का भाव था लेकिन मंच पर आपाधापी की स्थितियां बनी रही । मुंबई आयोजन में कई बार मंच पर से साधु-संतों को लोगों से बार-बार कहना पड़ा कि मंच पर ज्यादा लोग न आएं अन्यथा जहां साधु-संत बैठे हैं वो मंच गिर भी सकता है । कई बार उलाहना दी गई कि क्या आप लोग चाहते हैं कि आपके गुरुजन जिस मंच पर बैठे हैं वो गिर जाए ? कार्यक्रम में संचालन कार्य में भी अव्यवस्थाएं देखी गई । मंच पर उद्घोषणा करने वाले प्रमुख व्यक्ति की जगह बोलने आए मेहमानों ने अपनी और से वक्ताओं के नाम बुलाने शुरु कर दिए ।
पारस जैन लुहाड़िया और संजय जैन में पहले कौन बोले, इसे लेकर मंच पर ही गतिरोध पैदा हो गया । बाद में, संचालक ने स्थितियों को भांपते हुए आर्यिका माताजी प्रज्ञाजी से संबोधन का आग्रह कर विपरीत बन रही परिस्थितियों को टाल दिया । कार्यक्रम के बाद लोगों में चर्चा रही कि जैन समाज की एकजुटता की बात अगर मंच पर ही कामयाब नहीं हुई तो फिर कैसे सही संदेश जाएगा । हालांकि सम्मेद शिखर जी मुद्दा ऐसा है जिसमें जैन समाज नेतृत्व नहीं बल्कि स्थान के प्रति संवेदनशील है । इसीलिए कोई भी नेता आगे आएगा, जैन समाज उसके पीछे खड़ा हो जाएगा ।
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