मुनि श्री पूज्य सागर जी की 48 दिन की मौन साधना पूरी
प्रतापगढ़ । अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज की 48 दिन की मौन साधना प्रतापगढ़ में आचार्य श्री सुन्दर सागर जी महाराज के सानिध्य में आज यानी मंगलवार 20 सितंबर को पूरी हो गई। मुनि श्री मौन साधना 12 वर्ष पहले शुरू हुई थी। इस बार इसका 13 वा वर्ष था। उन्होंने श्रवणबेलगोला से यह साधना शुरू की थी। धीरे धीरे इसके नियम आदि बढ़ते गए। इस अवधि में मुनि श्री ने 48 दिनों में 38 दीन तो अन्न का त्याग किया और निरन्तर दस निर्जला उपवास किए।आइए जानते हैं कैसी रही उनकी साधना और कैसा रहा उनका अनुभव
मुनि श्री कैसी चर्या रहती थी आपकी इस साधना के दौरान ?
इस दौरान सुबह 3:30 बजे से साधना शुरू होती थी। भक्तमर ,सहस्त्रनाम आदि के पाठ के बाद, पंचामृत अभिषेक, महा शान्तिधारा,गुरु मंत्र की साधना ,जल धारा, हवन और अर्घ्य आदि चलते थे।
इस अवधि में स्वाध्याय के लिए क्या किया या लिखा ?
60 विषय प्राचीन शास्त्रों से निकाले हैं और इन्हें बच्चों, बड़ो के लिए 60 से अधिक पाठ के रूप में लिखा है। धार्मिक और सामाजिक लेख लिखे हैं।
साधना का उद्देश्य क्या था ?
जिस उद्देश्य से साधना चल रही है वह पुनः पूरा हुआ। जिनशासन देवी कुछ क्षण के लिए आई और कुछ निर्देश देकर चली गईं।
इसमे कोई चमत्कार नही है। कई प्राचीन शास्त्रों में, वर्तमान में कई आचार्य के पास भी जिन शासन देवी देवता आते है। मैं अकेला नही हूं। कई और भी सन्त साधक है जिनके पास यह देवी देवता आए होंगे।
क्या निर्देश दे कई जिन शासन देवी ?
मुझे इस सशक्ति का उपयोग धर्म की प्रभावना और श्रावकों की सुरक्षा करने का कह कर चली गई ।
मौन रहने का अनुभव कैसा रहा ?
मौन में जो अनुभूति होती है वह और कहीं संभव नही है। इसमे अपने से संबधं जुड़ता है और व्यक्ति दूसरों से दूर होता है ।चिंतन, मनन और लेखन के लिए यह सब से ज्यादा उपयुक्त है। यह स्वयं से जुड़ने का अवसर देता है।
इस दौरान आपने जो पढ़ा उसके बारे में कुछ बताइए ।
राम का जीवन चरित्र पढ़ा। आधुनिकता से जोड़ कर देखता हूं तो जो कुछ चिंतन आया उसका कुछ अंश आप से साझा करूंगा। असल में व्यक्ति ,समाज , देश में संस्कार, संस्कृति की नदी प्रवाहित करनी है तो प्राचीन इतिहास का अध्यनन बचपन से करवाना अत्यंत आवश्यक है ।
यह कैसे हो पाएगा ?
1000 बार पढ़ें, सोचें, समझें और फिर चिंतन कर 100 शब्द लिखें तब ही भारतीय संस्कृति, संस्कार और स्वयं, समाज, परिवार और देश को कुछ दे पाएंगे। अगर ऐसा नही किया तो हमारा लिखा कहीं संस्कृति, इतिहास को लुप्त न कर दे ।
आप लिखने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं।
किसी से सम्बन्ध मधुर बनाए रखने के लिए वार्ता के बजाए लिख कर संवाद करें तो एक दूसरे को अधिक समझ पाएंगे। कहा भी जाता है बाण का लगा घाव तो भर सकता पर शब्दों का घाव भर नही सकता ।
संसार का उद्देश्य क्या होना चाहिए?
व्यापार, पढ़ाई, विवाह का उद्देश्य भोग नही धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार होना चाहिए। तभी टेंशन मुक्त परिवार होगा और गरीबी दूर होगी।
युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ें ?
युवा पीढ़ी को डराकर नहीं समझा कर धर्म से जोड़ना होगा। उसे शास्त्र (पुस्तक) पढ़ाकर नही, अनुभव के आधार पर धर्म से जोड़ना होगा और अनुभव लेने के लिए संतो के पास छोड़े। पुस्तक पढ़ने के बाद उस पर तर्क हावी हो जाएगा और श्रद्धा कम हो जाएगी। मेरा तो मानना है कि सामाजिक स्तर पर और सरकार के स्तर हमें डिग्री से ज्यादा अनुभव के आधार पर जोर देना चाहिए और लोगों को काम सिखाना चाहिए l इससे व्यक्ति स्वावलंबी और स्वाभिमानी बनेगा।
आरक्षण के संबंध में आपके क्या विचार हैं?
समाज,परिवार देश की स्थिति को सुधारने के लिए पढ़ाई आदि कि सुविधाओं पर आरक्षण हो सकता है पर काम योग्यता के आधार पर मिले । आरक्षण से बुद्धि को तीक्ष्ण नही किया जा सकता पर सुविधा देकर बुद्धि को तीक्ष्ण किया जा सकता है ।
धर्म की रक्षा करने के लिए क्या किया जाए?
धर्म और धर्मात्माओं को सुरक्षित रखने के लिए, भगवान के उपदेश को सुरक्षित करने के लिए उसे हर मनुष्य के आचरण में उतारना जरूरी है। कागज आदि पर लिखा कई वर्षो तक सुरक्षित किया जा सकता पर आचरण में जो बात उतार दी जाए वो अनादि काल के लिए सुरक्षित हो जाती है। महाबीर आज नहीं हैं पर उनके उपदेश आज हमारे आचरण में हैं।