मैं बड़ी दुविधा में हूं। अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी में चल रहा महामस्तकाभिषेक महोत्सव आज संपन्न होगा, लेकिन विचारणीय प्रश्न है कि आयोजनकर्ता समिति ने साधुगण एवं आम श्रद्धालु को इस पुण्योत्सव से वंचित रखा। समापन से पूर्व कुछ दिन के लिए अगर साधु एवं श्रावकों को भी इस महान अवसर का लाभ मिलता तो बेहतर होता, लेकिन दुख की बात है कि समिति ने अपने निर्णय पर पुनः विचार नहीं किया। ना अपनी गलती को स्वीकार किया ना ही इस संबंध में कोई स्पष्टीकरण दिया कि आखिर जन जन के महावीर को जन से ही दूर क्यों कर दिया।
यह महोत्सव 24 वर्ष बाद हुआ और फिर 24 वर्ष बाद होगा, ऐसे में पता नहीं कितने ही लोग होंगे जिन्हें भविष्य में कभी यह पुण्य अवसर प्राप्त नहीं होगा। यह चिंता का भी विषय है कि आखिर हमारी धर्म और संस्कृति की रक्षा की जिम्मेदारी समाज के जिन अग्रणी लोगों पर है वही ऐसे आयोजनों में आम श्रद्धालु को नजर अंदाज करेंगे तो भावी पीढ़ी धर्म से कैसे जुड़ेगी। वह महावीर के सिद्धांतों को कैसे जान पाएगी। वीतरगी भगवान के दर्शन और अभिषेक का जरिया धन, वैभव, शक्ति और अधर्म होगा तो धर्म की जड़ें भला कैसे मजबूत हो पाएंगी।
मैं बड़ी दुविधा में हूं कि आखिर ऐसे क्या कारण रहे जो समिति अपने नजरिए को बड़ा कर इस आयोजन में अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को शामिल नहीं कर सकी। श्रावक को इस महोत्सव में शामिल नहीं हो पाने की कितनी वेदना है, यह समझने और एहसास करने की जरूरत है। क्या यह पाप बंध का कारण नहीं होगा।
मैं यह सोच कर बड़ी दुविधा में हूं कि जिन भगवान महावीर के दर्शन के लिए सर्व समाज उमड़े आता है, उनका दर्शन अभिषेक उनके सिद्धांतों के अनुयायी भी न कर सकें। क्या साधुगण भी इसके लिए पात्र नहीं समझे गए। जो महोत्सव आमजन और साधुजन की उपस्थिति से और अधिक भव्य और गरिमा पूर्ण हो सकता था उसे इतना सीमित कर क्या हासिल हुआ।
जो समारोह ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल कर स्वर्णाक्षरों में लिखा जाता उसे आलोचना का विषय क्यों बना दिया गया। आम श्रावक अभिषेक नहीं कर पाता लेकिन देख और चरण स्पर्श का अवसर तो प्राप्त कर ही सकता था। इतनी जिद्दी और हठ उचित नहीं कहा जा सकता कि समिति अपने निर्णयों पर पुनर्विचार ही नहीं कर रही।
चलो हम मानते हैं कि आप की कोई मजबूरी होगी कि यह सब संभव नहीं था, लेकिन इसका कारण सार्वजनिक किए जाने की जिम्मेदारी तो समिति की ही है, ताकि लोगों के मन की पीड़ा का समाधान हो। अगर कमेटी अपनी समस्या नही बता रही है तो इसका अर्थ है की वह अहंकार में है कि वो चाहेंगे जैसा करेंगे। यह स्थिति कदापि धर्म को जन जन तक नहीं पहुंचा सकेगी। महावीर मंदिर से बाहर नहीं आ सकेंगे, जिसकी पूरी दुनिया को जरूरत है।
‘भगवान महावीर का शिष्य श्रेणिक दुविधा में’ के पुराने क्रम भी पढ़े
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