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किसी भी कार्य को मत समझो छोटा-बड़ा

 सम्मेदशिखर जी. राजकुमार अजमेरा । मौन पूर्वक सिंहनिष्कडित व्रत करने वाले विश्व के प्रथम आचार्य श्री अन्तर्मना आचार्य श्री 108 परम पूज्य प्रसन्न सागर जी महाराज की मौन साधना 21 जुलाई, 2021 से प्रारंभ हुई थी, जो 28 जनवरी, 2023 तक जारी रहेगी। 496 उपवास और 61 दिन आहार ग्रहण करने वाले गुरुदेव की मौन वाणी को परम पूज्य सौम्य मूर्ति मुनि 108 पीयूष सागर जी महाराज ने जुबानी देते हुए बताया कि आलस्य और उत्साह में बहुत अंतर है, आलस्य यानी सांप को दूध पिलाना और उत्साह यानी गाय को घास खिलाना।

सांप दूध पीकर जहर उगलता है और गाय घास खाकर पंचामृत देती है। मन के थक जाने, शरीर को लाचार करने और कुछ भी करने को बार-बार टालते रहने की प्रवृत्ति को आलस्य कहते हैं। ध्यान रखना, आलस्य एक समय तक तो अच्छा लगता है, लेकिन बाद में जब समय का मूल्य समझ में आता है तो पछताने के अलावा कुछ नहीं बचता। इसलिए अपने किसी भी कार्य को छोटा-बड़ा मत समझो, सिर्फ जुनून और जोश से करते रहो। सफलता और विफलता की चिंता छोड़ो, बस जोश और जुनून को मरने नहीं दो। अनावश्यक नकारात्मक सोच और विचारों को कचरे के डिब्बे में डालकर कार्य में संलग्न हो जाओ।

जुनून और जोश को बरकरार रखने के लिए रोज 30 मिनट योगाभ्यास, ध्यान, व्यायाम करो और 15 मिनट ताजी धूप में शरीर को सेको। फिर देखो सफलता कैसे नहीं मिलती और आलस्य कैसे नहीं भागता। यह जानकारी कोडरमा मीडिया प्रभारी राज कुमार अजमेरा और विवेक गंगवाल ने दी।

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