बंधुओं…इस माह हम जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती मनाने जा रहे हैं। आज से हजारों-लाखों वर्ष पूर्व इन तीर्थंकरों ने जो शिक्षाएं और उपदेश मानव और समाज का दिए, उनकी प्रासंगिकता आज भी है और इसीलिए इन तीर्थंकरों के जयंती पर्व मनाना ना सिर्फ आज भी सार्थक है, बल्कि कई मायनों में बहुत जरूरी भी है।
भगवान आदिनाथ और भगवान महावीर ने अपने-अपने युगों में उन युगों की आवश्यकताओं के अनुसार उपदेश दिए। भगवान आदिनाथ ने छह विद्याओं और 72 कलाओं को ज्ञान कराया तो भगवान महावीर ने समाज को सही दिशा देने के लिए पांच सिद्धांत दिए, लेकिन हम देखते हैं कि इन शिक्षाओं और सिद्धांतों की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। समाज जीवन मंे आज हम जो स्थितियां देखते हैं, उन्हें देखते हुए लगता है कि आज इन जयंती पर्वों को पहले से भी ज्यादा जोर-शोर से मनाने की आवश्यकता है। भगवान आदिनाथ की पुरूषार्थ की शिक्षाओं का महत्व कभी कम नहीं हो सकता और इसी तरह भगवान महावीर के अंहिसा और अपरिग्रह के सिद्धांतों की आज सबसे ज्यादा जरूरत महसूस हो रही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि महावीर की तुलना में अहिंसा का दूसरा सबसे बड़ा शिक्षक कोई नहीं है। इन जयंती पर्वो को धूमधाम से मना कर हम समाज को इन शिक्षाओं और उपदेशों के महत्व से परिचित कराते हैं। यह एक ऐसा अवसर है जब जैन धर्म के बारे में अन्य धर्मों के लोगों को पता चलता है। भगवान आदिनाथ और भगवान महावीर की शिक्षाएँ हमें जीवन की कठिनाइयों से जूझना, सकारात्मकता बनाए रखना और उम्मीद न खोना सिखाती हैं। उनका पूरा जीवन कठिन तपस्या के माध्यम से प्राप्त आत्मज्ञान का एक उदाहरण है। ऐसे में इन जयंती पर्वों को मना कर हम समाज में इन सद्विचारों को आगे बढ़ा सकते हैं।
ये जयंती पर्व अन्य सांप्रदायिक सद्भाव और विचारों को बढ़ावा देते हैं। यह हमें मनुष्यों और अन्य प्राणियों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यह हमें मानवता का मूल चरित्र सिखाते हैं। इन तीर्थंकरों ने जो भी उपदेश दिए, उनके मूल में प्रेम, सत्य और अहिंसा है। यही कारण हैं कि इनके जयंती पर्व सिर्फ जैन समुदाय नहीं, बल्कि पूरी मानव जाति और समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं, इसलिए इन जयंती पर्वों को हमें पूरे उत्साह, उमंग और उल्लास के साथ मनाना चाहिए।
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