सागर में विराजित मुनिश्री सुधासागरजी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित किया। इसमें उन्होंने मानव वृत्ति के बारे में जैन धर्म के अनुयायियों को सजग किया। पढ़िए राजीव सिंघई की सागर से यह खबर…
सागर। कुछ आत्माएं इतनी पवित्र होती है कि वे स्वयं जहां पर अपना जीवन का अस्तित्व स्थापित करती हैं वो भी पवित्र बन जाता है। विपरीत आत्माएं भी होती है, जिनके कारण से पवित्र भी अपवित्र बन जाता है। स्वयं अपवित्र होना गलत नहीं है लेकिन, ऐसी अपवित्रता कि दूसरों को भी अपवित्र कर दंे। सागर में विराजित मुुनिश्री सुधासागर जी महाराज ने धर्म सभा में अपने प्रवचन में यह बात कही। उन्होंने कहा कि स्वयं अंधकार में रहना बुरा नहीं है लेकिन, ऐसी दशा कि दूसरों के भी दीपक बुझा दंे। अपने जीवन को निकृष्ट तरीके से जीते हैं कई लोग लेकिन, यह विनाश नहीं है लेकिन, कुछ निकृष्ट ऐसे होते हैं जिनके कारण दूसरे भी निष्कृष्ट हो जाते हैं। रोना बुरा नहीं है लेकिन, कुछ लोग ऐसे रोते हैं कि दूसरों को भी रुला देते हैं।
क्रोध खतरनाक होता है
ऐसा क्रोध सबसे ज्यादा खतरनाक होता है जो क्रोध स्वयं करेगा और नाश दूसरे का करेगा। दूसरे की खुशी को छीनेगा। ऐसे क्रोधी, ऐसे पापी दुर्गति के पात्र होते हैं। अपने बचाव के लिए झूठ बोलना कोई बड़ा पाप नहीं है लेकिन, ऐसा झूठ बोले जिससे दूसरे का विनाश हो जाए। यह झूठ दुर्गति का कारण बनता है। इच्छा के विरुद्ध किसी की जिंदगी बर्बाद करके अपनी वासना को पूर्ण करना ये पाप है, दुर्गति का कारण है। सम्यक दृष्टि को कमाने का भाव आता है लेकिन, दूसरे की जिंदगी छीनकर नहीं।
झूठ से जिंदगी बर्बाद होती है
मिथ्या दृष्टि और सम्यक दृष्टि के पाप में इतना ही अंतर होता है, मिथ्यादृष्टि दूसरों को पापी बनाकर के भी पाप करता है, सम्यक दृष्टि पाप तो करता है लेकिन, दूसरे को पापी बनाकर पाप नहीं करता। सम्यक दृष्टि व्यसन मुक्त होता है। झूठ बोलने की छूट रख लो, यदि त्याग नहीं कर सकते तो बस एक छूट रख लो, ऐसा झूठ नही बोलूंगा जिससे दूसरे की जिंदगी बर्बाद हो जाए तो भी तुम्हारा जीवन प्रशंसनीय बन जाएगा। चोरी करना है अपने माल को छुपाओ लेकिन, दूसरे के रखे हुए माल को चोरी मत करो। तुम नहीं ले सकते हो ब्रह्मचर्य व्रत तो कम से कम एक नियम ले लो कि हम दूसरे के संयम को भंग करने का भाव नहीं करेंगे।
शरण में आए को गंदा न करो
क्या संदेश देता है यह सुआ सूतक, क्या है इसका मनोविज्ञान? इसका मोटिवेशन लो, यानी संसार में जन्म लेने वाला व्यक्ति इतना पापी है कि उसको जो शरण देगा उसको भी गंदा कर देगा। गंदा होने में इतना पाप नहीं है लेकिन, जो तुम्हारी शरण में आए उसे भी गंदा कर दो, ये सबसे बड़ा पाप है। जिस मां ने नियम लिया था कि मैं भगवान के दर्शन के बिना पानी नहीं पियूंगी, 45 दिन तक उसे बिना दर्शन के खाना पड़ता है। कितना बड़ा अंतराय बांधा तूने, क्यों हुआ ऐसा कि तुमने पाप तो किया है लेकिन, दूसरे को भी पापी बना दिया। तुमने रात में तो खाया लेकिन, रात्रि के भोजन के त्यागी को भी दोष लगाया। तुमने उसे कुल को कलंकित किया है जिस कुल में कभी रात में पानी भी नहीं पिया जाता था, उस कुल में रात में खाया है।
नियम तुमने पाल लिया तीर्थंकर के कुल में जन्म लोगे
जो तुम्हारा अंश, वंश है उसका मूल स्रोत है ऋषभदेव का वंश, ऋषभदेव के वंशज हो तुम। दुनिया पाप करती है लेकिन, वह ज्यादा पापी नहीं है। जैन कुल में होकर कि तुम जब तुम रात में खाओ, गुटखा खाओ, शराब पियो, गलत कार्य करो तो तुम तीर्थंकर के कुल को कलंकित कर रहे हो, तुम्हे माफ नहीं किया जाएगा। तुम पाप इसलिए नहीं करना कि तुम्हारे पाप से तुम्हारी कुल और जाति बदनाम होती है, यदि यह नियम तुमने पाल लिया तो एक दिन तुम तीर्थंकर के कुल में जन्म लोगे।
गुरु अच्छे और शास्त्र भी अच्छे
मेरे गुरु बहुत अच्छे हैं, मेरे भगवान बहुत अच्छे है, मेरे शास्त्र बहुत अच्छे हैं, इसलिए मैं यह पाप नहीं कर सकता क्योंकि, ऐसा करने से मेरा जैन धर्म बदनाम हो जाएगा। धर्म की खातिर तुम पाप छोड़ दो, अपने खातिर नहीं तो अगला जन्म भी जैन कुल में पक्का है। इसको मन वचन का ऐसे पालन कर लिया। अगले भव में उस कुल में जन्मोगे जिस कुल में कोई तीर्थंकर में जन्मेगे, जिस कुल से कोई मुनिराज बनेंगे।
रात में खा रहे हो, ये उल्लू बनने की निशानी
तीर्थंकर के जन्म लेने पर किसी को सूतक नहीं लगता, उन्होंने एक ही संकल्प किया होगा कि मैं कितना भी पाप करूं लेकिन, ऐसा पाप नहीं करूंगा जिस कारण से मां-बाप को बदनाम होना पड़े, उनको शर्मिंदा होना पड़े, ये जन्म जन्मांतर की कहानी है। तुमने वो भगवान पाए हैं जो कभी खाते ही नहीं है फिर भी जिंदा रहते हैं और ऐसे भगवान के भक्त होकर तुम रात में खा रहे हो, तुम्हारे गुरु दिन में एक बार लेते हैं और तुम अभक्ष्य खा रहे हो, रात में खा रहे हो, ये है तुम्हारे उल्लू बनने की निशानी।
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