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दिगंबर जैन मुनियों को प्राप्त होती हैं जैन धर्म की 64 रिद्धियां : अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज ने कहा की रिद्धियों को प्राप्त करने के लिए ज्ञान की नहीं, तप और संयम की आवश्यकता

धरियावद@अशोक कुमार जेतावत । रिद्धियों को प्राप्त करने के लिए ज्ञान की नहीं, तप और संयम की आवश्यकता होती है। जैन धर्म में 64 रिद्धियों का वर्णन है। शास्त्रों में भी कहा गया है कि इन रिद्धियों की प्राप्ति तप और संयम से ही होती है। ये रिद्धियां दिगम्बर जैन मुनियों को प्राप्त होती है। जैसे आकाश में गमन करना, अग्नि में चलना, जल में चलना आदि ये सब रिद्धियां होती हैं।

इसके अलावा किसी भी ग्रन्थ का एक अक्षर या एक पद भी देख लिया जाए तो उस सम्पूर्ण ग्रन्थ की विवेचना और व्याख्यान करने की रिद्धि प्राप्त होती है। यहां तक भी कहा गया है कि एक बीज-पद ग्रहण करने से सम्पूर्ण सूत्र का विचार किया जा सकता है।
ये विचार अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज ने शनिवार को धार्मिक शिक्षण कराते हुए श्रावक-श्राविकाओं के समक्ष प्रकट किए।

मुनिश्री ने कहा कि दिगम्बर जैन साधुओं के शरीर स्पर्श मात्र से कई असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं। यह सब रिद्धियों का ही प्रभाव होता है। दूसरी कई रिद्धियां हैं, जिनका वर्णन जैन शास्त्रों में किया गया है। ऐसी रिद्धियों को प्राप्त करने के लिए संयम और तप की आवश्यकता रहती है। इसके लिए सभी को प्रयत्न और पुरुषार्थ करना चाहिए। धार्मिक शिक्षण में उपस्थित श्रावक अशोक कुमार जेतावत ने बताया कि दिगम्बर जैन मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज दिगम्बर जैन नसियां जी मन्दिर (धरियावद ) में विराजमान हैं।

मुनि श्री संघ सान्निध्य में प्रतिदिन प्रातः 7.30 बजे से जलाभिषेक, पंचामृत अभिषेक, शान्तिधारा और नित्य नियम पूजन, 9 बजे जैन संस्कारों पर कक्षा शिक्षण, 10 बजे आहार चर्या, दोपहर बाद 3 बजे से पद्मपुराण ग्रन्थ का स्वाध्याय, सायंकाल 7 बजे से श्रीजी की आरती और 7.15 से 8 बजे रात्रि को पुन: जैन धर्म के सिद्धान्तों पर श्रावक-श्राविकाओं का शिक्षण और सांयकाल 7 से 8 बजे तक संघस्थ क्षुल्लक 105 श्री अनुश्रमण सागर जी महाराज द्वारा बालक- बालिकाओं के धार्मिक शिक्षण की पाठशाला नियमित रूप से चल रही है।

जिसमें पुण्यशाली बालक- बालिका, श्रावक-श्राविकाएं यथायोग्य धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होकर पुण्यार्जन कर धर्म लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

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