श्रुत आराधना वर्षायोग के दौरान समोसरण मंदिर में प्रवचन
न्यूज़ सैजन्य- राजेश जैन दद्दू
इंदौर। वे महापुरुष होते हैं जो अपना भी कल्याण करते हैं और पर का भी कल्याण करते हैं। परोपकारी लोगों की विशेषता होती है कि वे परोपकार में ही अपना चित्त लगाते हैं। जिस प्रकार वृक्ष अपना फल नहीं खाते, बादल कभी अपना जल नहीं पीते, यह उसकी महानता है। उसी प्रकार परोपकारी व्यक्ति अपनी संपत्ति, अपने वैभव को स्वः कल्याण के साथ-साथ पर-कल्याण में लगाकर अपनी महानता का परिचय देते हैं।
यह उद्गार मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने रविवार को श्रुत आराधना वर्षायोग के दौरान समोसरण मंदिर, कंचनबाग में प्रवचन देते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि धन, शरीर, मकान, स्त्री, पुत्र, मित्र, और भोजन इनसे राग मत करो। अज्ञानी जीव इन्हें अपना मानकर इनसे राग और अपनी आत्मा से द्वेष करता है। यह सब पर-द्रव्य हैं, स्वः द्रव्य तो केवल तुम्हारी आत्मा है जो तुम्हारे साथ जाएगी। यदि राग, मोह करना ही है तो स्वः द्रव्य आत्मा से करो और बहिरात्म भाव में मत जीओ, अंतर आत्म भाव में जीते हुए अपना मोक्ष मार्ग प्रशस्त करो।
मुनि श्री सहजसागरजी ने भी प्रवचन देते हुए कहा कि अपनी प्रवृत्ति परोपकार एवं आत्मा को संभालने में लगाओ, शरीर को सजाने में नहीं। धर्मसभा का संचालन अजीत जैन ने किया।