सूत्र वाक्य छोटे होते हैं लेकिन उनका निर्माण बडे़ अनुभवों के आधार पर होता है। महापुरुषों ने जो कुछ भी कहा, सूत्रात्मक ही कहा। सूत्र वाक्य ही सूक्तियां कहलाती हैं। चिन्तन से सूत्रों का अर्थ खुलता है। धर्म के अन्तिम संचालक, तीर्थ के प्रवर्तक, चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी हुए हैं। यद्यपि वह मुख्यतया आत्मज्ञ थे, अपने निजानन्द में लीन रहते थे, फिर भी वह सर्वज्ञ थे। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज की पुस्तक खोजो मत पाओ व अन्य ग्रंथों के माध्यम से श्रीफल जैन न्यूज लाइफ मैनेजमेंट नाम से नया कॉलम शुरू कर रहा है। इसके तीसरे भाग में पढ़ें श्रीफल जैन न्यूज के रिपोर्टर संजय एम तराणेकर की विशेष रिपोर्ट….
तीसरा सूत्र
प्रेम करो, प्यार नहीं:
प्रेम किसी से भी, प्यार किसी एक से
वस्तुतः प्रेम किसी से भी किया जा सकता है या उस पर लुटाया जा सकता हैं। प्यार किसी एक से किया जा सकता हैं। यह एक-दूसरे के प्रति शारीरिक आकर्षण भी हो सकता है। वह पत्नी या प्रेमिका ही हो सकती है। यह प्रेम का सबसे आम प्रकार है और यह दो लोगों के बीच एक मजबूत आकर्षण और जुड़ाव की भावना को संदर्भित करता है।
प्रेम मुक्त रहना चाहता है
एक व्यक्ति ने एक तोता पाल रखा था। तोता और उस व्यक्ति का आपस में बहुत प्रेम था। एक दिन तोते ने पिंजऱा खुला देखकर बाहर निकलने का मन बनाया और उड़ गया। उस व्यक्ति को जब यह पता चला तो उसे बहुत दुःख हुआ और सोचने लगा कि आदमी तो ठीक जानवर भी धोखा देता है। उसे प्रेम से पीड़ा होने लगी।
प्रेम निर्बंध हो किया जा सकता है
एक बार वह व्यक्ति गाँव से आ रहा था। रास्ता बहुत लम्बा था। थककर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। वह उदास था और उसी समय वह तोता आया, उसके कंधे पर बैठ गया। उससे प्रेम की बातें की। उस व्यक्ति का मन प्रसन्न हो गया। उसे वापस अपने शहर की ओर जाना था। सो वह चलने के लिए तैयार हुआ। तोते ने उसे प्रेम से फल लाकर दिए और उन फलों से उसकी भूख भी दूर हो गई। उस व्यक्ति ने तोते की बहुत प्रशंसा की और प्रेम दिया। तभी तोता उड़कर चला गया। वह तोता उस आदमी को संदेश दे रहा था कि बंधन में रहकर ही प्रेम नहीं होता है, निर्बन्ध होकर भी प्रेम किया जा सकता है।
एक बार प्रेम और प्यार मिले तो प्यार ने प्रेम से पूछा तुम क्या करते हो ? तो प्रेम ने बड़ी मासूमियत के साथ कहा ‘मैं उन आँखों में खुशी लाता हूँ जिनमें तुम आँसू छोड़ जाते हो।‘
– प्रेम गेम की तरह स्फूर्ति और आनन्द देता है और प्यार तेज बयार (हवा) की तरह झोंका दे जाता है।
– प्रेम श्वांस की तरह जीवन में समा जाता है, प्यार खांसी की तरह जीवन को दुखा जाता है।
– प्रेम असीमित होता है और प्यार सीमित ।
– प्रेम खुले आकाश की तरह कहीं से भी आ सकता है। प्यार का एक निश्चित दरवाजा होता है।
– प्रेम हवा की तरह वहां तक बहता है, जहां तक आकाश है और प्यार आकाश में गुब्बारे की तरह तब तक बहता है जब तक उसमें हवा है।
– प्रेम घनात्मक है, प्यार धनात्मक है।
– प्रेम चित्र को फ्रेम की तरह कस देता है और प्यार चित्र की तरह फ्रेम में कस जाता है।
धन का आकर्षण प्यार के सहारे।
एक अमीर लड़की की मुलाकात एक लड़के से हुई। देखने में खूबसूरत, अमीर खानदान का, पढ़ा लिखा और व्यवहारिक भी। लड़के ने उसे घर पर बुलाया। घर देखकर उसको लगा कि उसके पिता बहुत अमीर हैं उसका प्यार लड़के से और बढ़ गया। बात शादी की हद तक पहुँची। दोनों एक-दूसरे से शादी की बात पर अपने माता-पिता की ओर से भी निश्चित हो गए। माता-पिता ने उनके प्रेम में बाधा नहीं डालने के मन से सगाई की तारीख पक्की की। इसी बीच एक दिन लड़की को पता चला कि उसका प्रेमी जिस घर में रहता है, वह तो किराये का है, उसका मालिक कोई और है। लड़की का मन बदल गया और धीरे-धीरे बहाना बनाकर लड़के को बायकाट कर दिया। जब लड़के ने उससे कारण पूछा तो उसने नहीं बताया और लड़का एक दिन मानसिक रूप से असंतुलित हो गया। यह वह प्यार है जो धन के आकर्षण से आकर्षित होकर हुआ था।
तुलनात्मक परिचय:-
– प्यार हाथ की कलाई में बंधी घड़ी की कीमत और डिजाइन देखता है जबकि सच्चा प्रेम समय देखता है।
– प्यार में केवल सूरत दिखती है, प्रेम में सूरत के साथ सीरत भी दिखती है।
– प्रेम एक हवा है, जो सदा बहती है और प्यार एक ज्वर है, जो उतावलेपन से शुरू होता है और बर्बादी पर समाप्त होता है।
– प्रेम एक एहसास है, प्यार एक अफसोस है।
– प्रेम सबसे किया सकता है, प्यार एक से ही हो पाता है।
– प्रेम निभाने में एहसास नहीं होता, जबकि प्यार निभाने में एहसास और एहसान दोनों होते हैं।
-प्यार उसी से करो जिसे तुम चाहते हो और प्रेम उससे करो, जिसे तुम नहीं भी चाहते हो।
– प्रेम के द्वार से गुजरोगे क्षमा स्वागत करेगी, शान्ति बधाई देगी लेकिन प्यार के द्वार पर तुम भिखारी बने खड़े रहोगे, गम की रात, आँसुओं की सेज तुम्हें सजा देगी ।
मेरे मित्र ! विराट सोचो सम्राट बनो।
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