भगवान मल्लिनाथ जी जैन धर्म के उन्नीसवें तीर्थंकर हैं। इनका मोक्ष कल्याणक 4 मार्च को मनाया जाएगा। फाल्गुुन शुक्ल पंचमी के तिथि को भगवान ने 500 साधुओं के संग सम्मेद शिखर पर निर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त किया था। इस दिन देश भर के दिगंबर जैन समाज के मंदिरों, चैत्यालयों में अभिषेक, शांतिधारा, निर्वाण लाडू चढ़ाने सहित अन्य विधान और पूजन आदि किए जाएंगे। श्रीफल जैन न्यूज की विशेष श्रंखला के तहत आज भगवान मल्लिनाथ जी के मोक्ष कल्याणक पर उपसंपादक प्रीतम लखवाल की यह प्रस्तुति पढ़िए…
इंदौर। भगवान मल्लिनाथ जी जैन धर्म के उन्नीसवें तीर्थंकर हैं। इनका मोक्ष कल्याणक 4 मार्च को मनाया जाएगा। फाल्गुुन शुक्ल पंचमी के तिथि को भगवान ने 500 साधुओं के संग सम्मेद शिखर पर निर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त किया था। इस दिन देश भर के दिगंबर जैन समाज के मंदिरों, चैत्यालयों में अभिषेक, शांतिधारा, निर्वाण लाडू चढ़ाने सहित अन्य विधान और पूजन आदि किए जाएंगे। भगवान श्री मल्लिनाथ जी ने हमेशा सत्य और अहिंसा का अनुसरण किया और अनुयायियों को भी इसी राह पर चलने का संदेश दिया। इससे जैन धर्म की नींव को आधार मिला। जैन धर्म भारत वर्ष का प्राचीन धर्म है। इसी धर्म में तीर्थंकरों की अगली पंक्ति में भगवान श्री मल्लिनाथ जी का स्थान सर्वोपरि है। इनका जन्म मिथिलापुरी के इक्ष्वाकुवंश में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी को अश्विन नक्षत्र में हुआ था। माता का नाम रक्षिता देवी और पिता का नाम राजा कुंभराज था। इनके शरीर का वर्ण नीला था जबकि, इनका चिन्ह कलश था। इनके यक्ष का नाम कुबेर और यक्षिणी का नाम धरणप्रिया देवी था।
भगवान श्री मल्लिनाथ जी स्वामी के गणधरों की संख्या 28 थी
जैन धर्मावलंबियों के अनुसार भगवान श्री मल्लिनाथ जी स्वामी के गणधरों की संख्या 28 थी। जिनमें अभीक्षक स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। तीर्थंकर भगवान श्री मल्लिनाथ जी ने मिथिलापुरी में मार्गशीर्ष माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को दीक्षा की प्राप्ति की थी और दीक्षा के बाद 2 दिन बाद खीर से इन्होंने प्रथम पारणा किया था। दीक्षा के बाद एक दिन-रात तक कठोर तप करने के बाद भगवान श्री मल्लिनाथ जी को मिथिलापुरी में ही अशोक वृक्ष के नीचे कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी। भगवान श्री मल्लिनाथ जी ने हमेशा सत्य और अहिंसा का अनुसरण किया और अनुयायियों को भी इसी राह पर चलने का संदेश दिया। उनका यह संदेश आज भी प्रासंगिक होकर जैन धर्म अनुयायियों के लिए प्रेरणास्पद है। भगवान मल्लिनाथ जी ने फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को 500 साधुओं के साथ सम्मेद शिखर पर निर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त किया था।
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