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भगवान महावीर के निर्वाण दिवस पर श्रीफल जैन न्यूज की विशेष प्रस्तुति -4 : भगवान महावीर ने दिया है स्त्री को अबला नहीं, सबला बनने का संदेश


भगवान महावीर के दिव्य संदेश में हर वर्ग के लिए ज्ञान है। प्रेरणा है। उन्होंने नारी के ब्रह्म तेज का स्मरण करवाते हुए अपना महत्वपूर्ण संदेश देकर नारी को सशक्तीकरण के लिए प्रेरित किया। प्रायः देखने में आता है कि नारी का अपमान, शीलभंग, हिंसा आदि हो रही है। ऐसे में नारी के लिए भगवान का यह संदेश बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। पढ़िए दीपावली यानी भगवान महावीर के निर्वाण दिवस पर श्रीफल जैन न्यूज की विशेष आलेखों की शृंखला में चतुर्थ आलेख…


इंदौर। जैन समाज में भगवान महावीर के संदेशों का बड़ा महत्व है। भगवान महावीर ने जहां पुरुषों को कई बातें अपने संदेश के माध्यम से समझाई हैं। महावीर स्वामी ने नारियों को भी महत्वपूर्ण स्थान और सम्मान प्रदान करते हुए अपने संदेशों के माध्यम से जागृत किया है। भगवान महावीर की दृष्टि में नारी मानव ही नहीं मानवता की जन्मदात्री है, क्योंकि मानवता की आधार रूपा नारी ही संपूर्ण उदात्त गुणों की अधिष्ठात्री है। भाव संवेदनाओं के क्षेत्र में नारी हमेशा पुरुष से आगे रही है। नारी के सुव्यवस्थित समाज की परिकल्पना निरर्थक ही नहीं निराधार भी है। भगवान कहते हैं कि नारी शक्ति का पुंज है। समाज की रीढ़ है तथा इसी शक्तिपुंज से समाज और देश संरक्षण पाता है।

महावीर का कहना है कि नारी में वह सामर्थ्य है कि वह विश्व का पथ प्रदर्शन कर सकती है। नारी की शक्तियों का जिक्र करते हुए भगवान ने कहा कि नारी कभी यह कभी न सोचें कि मैं अबला हूं, अशक्त हूं, निर्बल हूं। उसका जीवन तो अपमानों, अरमानों, अभियानों और बलिदानों से भरा है। नारी के ब्रह्म तेज के समक्ष सदैव देवर्षियों, ऋषियों और दैविक शक्तियों ने भी अपने घुटने टेके हैं। यह संदर्भ इसलिए कि भारतीय संस्कृति में दीपावली के पर्व के दौरान शक्ति की ही आराधना और उनकी महत्ता को प्रतिपादित करने का अवसर मिलता है। नारी के सामर्थ्य को कम नहीं आंकना चाहिए, क्योंकि अमर कहलाने वाले देवताओं के मस्तक तक झुके हैं।

सती सुलोचना, अंजना, चंदना, सीता, सोमा इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। ‘महावीर समय के हस्ताक्षर’ पुस्तक में उपाध्याय गुप्तिसागर मुनि ने नारी शक्ति का उदाहरण देते हुए रामायण का एक प्रसंग बताया है। इसमें कहा गया है कि रावण अपने राजमहल में अपनी देह पर भस्म मल रहा था। मंदोदरी ने देखा तो टोका-हे देव! आप यह क्या कर रहे हैं? रावण बोला- हे प्रिये! आज मैं एक दैदीप्यमान दिव्य स्त्री रत्न को चुराने जा रहा हूं। उसके ब्रह्म तेज से मेरी काया और आकाश गामिनी विद्या भस्म हो जाएगी। इसलिए इनकी रक्षा के लिए मैं शरीर पर भस्म मलकर गलिन बना रहा हूं। किंचित कुपित मंदोदरी ने कठोर कमल नाल से ताड़ित करते हुए कहा कि जिस दिव्य रत्न के स्पर्श मात्र से आपकी देह और विद्या भस्म हो जाएगी। क्या उस दिव्य रत्न से प्रचंड तेज से लंका का वैभव और परिवार स्वाहा नहीं हो जाएगा? आप उसे लाकर क्यों सर्वनाश को न्यौता दे रहे हो? पर हठी कब मानने वाला था।

वह सीता जैसी आग को चुरा लाया। उसका क्या परिणाम हुआ? संसार जानता है। शीलवती नारियों की यश गाथाएं आज भी विश्व इतिहास के अंतरिक्ष में सूर्य की भांति दमक रही है। निःसंदेह नारियों की शक्ति अपार है, बस उन्हें पहचानकर अपनी शक्तियों का संचय कर दानवी ताकतों का सामना करने के लिए तैयार होना होगा। भगवान महावीर के संदेश में भी यही निहित है।

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