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भगवान आदिनाथ ने दिखाया आध्यात्मिक दर्शन, आत्म कल्याण का मार्ग: जैन जीवन शैली को माना जा रहा विज्ञान सम्मत 


प्रथम तीर्थंकर युग प्रवर्तक भगवान आदिनाथ ने असी, मसी, कृषि, शिल्प, वाणिज्य, विद्या सहित विश्व और जन कल्याणकारी तथा आत्म कल्याणकारी शिक्षाओं से मानव जाति को उपकृत किया। उनके बाद 23 तीर्थंकर भगवानों ने उसी मोक्ष परंपरा से सबको उपदेशित किया। यह शाश्वत मोक्ष परंपरा उतनी ही प्रासंगिक है। इंदौर से पढ़िए स्वप्निल जैन की यह विशेष प्रस्तुति…


इंदौर। यह तो सर्वविदित है कि श्रमण जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकर सभी राजकुल में जन्म लेते हैं और क्षत्रिय होते हैं। प्रथम तीर्थंकर युग प्रवर्तक भगवान आदिनाथ ने असी, मसी, कृषि, शिल्प, वाणिज्य, विद्या सहित अनेक विश्व, जन एवं आत्म कल्याणकारी शिक्षाएं प्रदान कर संपूर्ण मानव जाति को तो उपकृत किया। साथ ही प्रत्येक जीव पर करुणा का भाव रखकर जीवन जीने का मार्ग भी दिखाया। वर्तमान युग में जब संपूर्ण मानव जाति भटकाव की ओर अग्रसर है। ऐसे में भगवान आदिनाथ की शिक्षाओं के माध्यम से अनेक जन कल्याणकारी कार्यों को आगे बढ़ाया जा सकता है। श्रमण जैन दर्शन में चौबीस तीर्थंकर भगवान की शाश्वत परंपरा होती है। जैन आध्यात्मिक दर्शन में आत्मकल्याण का भाव सर्वोपरि होता है। भगवान आदिनाथ ने आत्म कल्याण के मार्ग को अपनाकर मोक्ष प्राप्त करने के धर्म की शाश्वत परंपरा को चरितार्थ कर संपूर्ण जगत को उपदेश प्रदान किए।

उनके बाद 23 तीर्थंकर भगवानों ने उसी मोक्ष परंपरा से सबको उपकृत किया। आज भी यह शाश्वत मोक्ष परंपरा उतनी ही प्रासंगिक है और जैन संत तीर्थंकरों के मार्ग को अपनाकर उनके उपदेशों को जन जन तक पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं। अंतिम तीर्थंकर भगवान वर्धमान महावीर ने सारे जगत को कई कुरीतियों से मुक्ति प्राप्त करने के उपदेश दिए। वर्तमान समय में जैन दर्शन द्वारा बताई सूक्ष्म अहिंसा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। जैन जीवन शैली को विज्ञान सम्मत माना जा रहा है।

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