जैन धर्म के दूसरे तीर्थंकर भगवान अजितनाथ का मोक्ष कल्याणक महोत्सव श्री महावीर जिनालय में मनाया गया।श्री महावीर जिनालय चुंगी नाका रोड अंबाह पर 13 अप्रैल चैत्र शुक्ल पंचमी को जैन धर्म के दूसरे तीर्थंकर अजित नाथ भगवान के मोक्ष कल्याणक दिवस पर निर्वाण लाडू चढ़ाया गया।पढ़िए अजय जैन की रिपोर्ट …
अम्बाह।श्री महावीर जिनालय चुंगी नाका रोड अंबाह पर 13 अप्रैल चैत्र शुक्ल पंचमी को जैन धर्म के दूसरे तीर्थंकर अजित नाथ भगवान के मोक्ष कल्याणक दिवस पर निर्वाण लाडू चढ़ाया गया। जानकारी देते हुए प्रवीण जैन पुणे ने बताया कि आज जैन धर्म के दूसरे तीर्थंकर भगवान अजितनाथ का मोक्ष कल्याणक दिवस है। इसी उपलक्ष्य में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है,
अपने तेज से जीत लिया था सूर्य का तेज
आयोजन में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए पंडित विमल जैन शास्त्री ने बताया कि भगवान् आदिनाथ के मोक्ष चले जाने के बाद जब पचास लाख करोड़ सागर वर्ष बीत चुके थे तब द्वितीय तीर्थंकर का जन्म हुआ था । इनकी आयु भी इसी अन्तराल में सम्मिलित थी। जन्म होते ही, सुन्दर शरीर के धारक तीर्थंकर भगवान् का देवों ने मेरूपर्वत पर जन्माभिषेक कल्याणक किया और अजितनाथ नाम रखा। इन अजितनाथ की बहत्तर लाख पूर्व की आयु थी और चार सौ पचास धनुष शरीर की ऊँचाई थी ।अजितनाथ भगवान के शरीर का रंग सुवर्ण के समान पीला था ।उन्होंने बाहरी और अंतर के समस्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली थी। जब उनकी आयु का चौथा भाग बीत चुका तब उन्हें राज्य प्राप्त हुआ ।उस समय उन्होंने अपने तेज से सूर्य का तेज जीत लिया था। एक लाख पूर्व कम अपनी आयु के तीन भाग तथा एक पूर्वागं तक उन्होंने राज्य किया।उसके बाद आज ही के दिन चैत्र शुक्ल पंचमी के दिन जब चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र पर था, तब प्रात:काल के समय प्रतिमायोग धारण करने वाले भगवान् अजितनाथ ने मुक्तिपद प्राप्त किया था
किया गया विसर्जन पाठ
वही इस अवसर पर शनिवार सुबह श्री महावीर जिनालय में सभी लोग बेदी के समक्ष पहुंचे एवं मंगलाअष्टक का पाठ प्रारंभ कर श्रीजी को पांडुशिला में विराजमान किया। सभी ने रजत कलशों से भगवान का प्रासुक जल से अभिषेक किया।तत्पश्चात चमत्कारिक रिद्धि सिद्धि सुख शांति प्रदाता शांति धारा की गई। शांति धारा कराने का सौभाग्य प्रवीण जैन पुणे को प्राप्त हुआ।शांति धारा उपरांत आरती कर भगवान अजीत नाथ का पूजन व निर्वाण कांड पढ़ कर सभी उपस्थित धर्म प्रेमी बंधुओ ने निर्माण लाडू चढ़ाया। अंत में विसर्जन पाठ किया गया।
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