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लोकनायक 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म कल्याणक: तिथि के अनुसार चैत्र शुक्ल तेरस के दिन आता है जन्म कल्याण, इस बार यह 10 अप्रैल को 


जैन धर्म के24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म कल्याण इस बार 10 अप्रैल को देश ही नहीं समूचे विश्व में धूमधाम से मनाया जाएगा। 2623 वर्ष पूर्व क्रांति की मशाल थामे भगवान महावीर का जन्म वैशाली गणराज्य के कुंड गांव में पिता सिद्धार्थ के यहां चैत्र शुक्ल तेरस के दिन माता त्रिशला के गर्भ से हुआ था। भगवान महावीर जी के जन्म कल्याणक को लेकर देशभर में धार्मिक उल्लास का माहौल है। श्रीफल जैन न्यूज की विशेष श्रृंखला में आज उपसंपादक प्रीतम लखवाल के संकलन और संयोजन में पढ़िए यह खास पेशकश…


इंदौर। सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय और ब्रह्मचर्य का शंखनाद करने वाले लोकनायक जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म कल्याण इस बार 10 अप्रैल को देश ही नहीं समूचे विश्व में धूमधाम से मनाया जाएगा। 2623 वर्ष पूर्व क्रांति की मशाल थामे भगवान महावीर का जन्म वैशाली गणराज्य के कुंड गांव में पिता सिद्धार्थ के यहां चैत्र शुक्ल तेरस के दिन माता त्रिशला के गर्भ से हुआ था। भगवान महावीर जी के जन्म कल्याणक को लेकर देशभर में धार्मिक उल्लास का माहौल है। दिगंबर जैन मंदिरों में विशेष रूप से तैयारियां की जा रही हैं। तीर्थंकर महावीर नामक महाकाव्य में वर्णित है कि लोक नायक या युग पुरुष की प्राप्ति के लिए युग को, समाज को सदियों तक साधना करनी होती है। तब जाकर सूर्य के समान तेजस्वी युग पुरुष क्रांति दूत के रूप में जन्म लेते हैं। अपने समकालीन सामंतशाही, रूढ़िवादिता, धर्मांधता, सामाजिक कुरीतियां, समाजद्रोही तत्वों का डटकर सामना करते हैं। तब देश में दिग्दिगंत में धर्म और शांति का विजय नाद अनुगूंजित हो उठता है। यही तथ्य भगवान महावीर के साथ भी चरितार्थ हुए। भगवान महावीर का समस्त जगत 2624वां जन्म कल्याणक मना रहा है। भगवान महावीर के रूप में ऐसा नक्षत्र उदित हुआ कि युग बीत गए। शताब्दियां व्यतीत हो गईं किन्तु वह नक्षत्र आज भी जाज्वल्य मान है। यहां यह कहना आवश्यक है कि जाति-पाति, भेदभाव के चलते मध्ययुगीन राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्था एवं धार्मिक आडंबरों का बहुत योगदान रहा। इस युग में राजागण सांसारिक सुखों को पाने के लिए शरीर को अमर बना रहे थे और देव मंदिर सुरति क्रियारत स्त्री-पुरुषों के चित्रों से सज्जित हो रहे थे। इन्हीं परिस्थितियों में भगवान महावीर ने प्राणि मात्र के कल्याण के लिए अपने प्रयत्नों से उच्चतम विकास कर सकने का आस्थापूर्ण मार्ग प्रशस्त कर अनेकांतवादी जीवन दृष्टि पर आधारित स्याद्वादवादी कथन प्रणाली से बहु धर्मों को प्रत्येक कोण, दृष्टि एवं संभावना से उसके वास्तविक रूप में जान पाने का मार्ग बदलकर सामाजिक जीवन की शांति के लिए अपरिग्रह और अहिंसा का संदेश दिया था। इतिहास प्रसिद्ध तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर का जीवन दर्शन आज भी समूचे विश्व में वंदनीय है और पूजनीय है।

भगवान महावीर ने दुनिया को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया 

भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें तीर्थंकर थे। भगवान महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व वैशाली गणराज्य के क्षत्रिय कुंड में क्षत्रिय परिवार हुआ था। 30 वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्म कल्याण के पथ पर निकल गए। 12 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने। जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुणिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्म दिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल एकम को निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता हैं। जैन ग्रंथों के अनुसार समय-समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है। जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते हैं। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गई है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेदभाव जिस युग में बढ़ गया। उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया।

भगवान महावीर के पंचशील सिद्धांत 

तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए। जो हैं अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) ,ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्याद्वादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत महाव्रती सिद्धांत दिए। महावीर के सर्वाेदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएं नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं। इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें, जो हमें स्वयं को पसंद हो। यही महावीर का ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धांत है।

भगवान महावीर का जन्म

भगवन महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के कुंडग्राम में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहां चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था। ग्रंथों के अनुसार उनके जन्म के बाद राज्य में उन्नति होने से उनका नाम वर्द्धमान रखा गया था। जैन ग्रंथों के अनुसार 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करने के 250 वर्ष बाद भगवान महावीर का जन्म हुआ था।

भगवान महावीर का विवाह

भगवान महावीर का विवाह यशोदा नामक सुकन्या के साथ हुआ था और कालांतर में प्रियदर्शिनी नाम की कन्या उत्पन्न हुई। जिसके युवा होने पर राजकुमार जमाली के साथ विवाह हुआ।

भगवान महावीर का साधना काल

भगवान महावीर का साधना काल 12 वर्ष का था। दीक्षा लेने के बाद भगवान महावीर ने जिनकल्पी श्रमण की कठिन चर्या को अंगीकार किया। श्वेतांबर संप्रदाय जिसमें साधु श्वेत वस्त्र धारण करते हैं के अनुसार भी महावीर दीक्षा के बाद कुछ समय छोड़कर निर्वस्त्र रहे और उन्होंने केवल ज्ञान की प्राप्ति भी। जिन कल्पी अवस्था में ही की। अपने पूरे साधना काल के दौरान महावीर ने कठिन तपस्या की और मौन रहे। इन वर्षों में उन पर कई उपसर्ग भी हुए। जिनका उल्लेख कई प्राचीन जैन ग्रंथों में मिलता है।

केवल ज्ञान और उपदेश

जैन ग्रन्थों के अनुसार केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद, भगवान महावीर ने उपदेश दिया। उनके 11 गणधर (मुख्य शिष्य) थे। जिनमें प्रथम इंद्रभूति थे।

भगवान महावीर ने बताए पांच व्रत

सत्य:- सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।

अहिंसा:- इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पांच इंद्रियों वाले जीव) हैं। उनकी हिंसा मत कर। उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो। यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।

अचौर्य – दूसरे की वस्तु बिना उसके दिए हुए ग्रहण करना जैन ग्रंथों में चोरी कहा गया है।

अपरिग्रह:- आवश्यक चीजों का उपयोग ही किया जाए।

ब्रह्मचर्य:- महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जैन मुनि, जैन साध्वी इन्हें पूर्ण रूप से पालन करते हैं, इसलिए उनके महाव्रत होते हैं और श्रावक, श्राविका इनका एक देश पालन करते हैं। इसलिए उनके अणुव्रत कहे जाते हैं।

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